आल्हाबला
ओहि घटनाकेँ
कमसँ कम ५५ वर्ष भेल होएत । हम मोसकिलसँ दस वर्षक रहल होएब । जतबे जोरसँ हम आल्हा
सुनबाक प्रयास करी ततबे सतर्कतासँ हमर बाबूजी ओकर विरोध करितथि आ जँ पता लागि जानि
जे हम ओतए गेल छी तँ तुरंत ओतए पहुँचि हमरा ओहिठामसँ लेने अबितथि । ओहि समयमे
हुनकर ई सभ करबाक एकमात्र उद्येश्य रहनि जे हम पढ़ी-लिखी, आओर किछु
नहि करी । मोनकेँ एमहर-ओमहर नहि लगाबी । मुदा आल्हाक प्रति हमर आकर्षण ततेक
जबरदस्त छल जे हम कहुना-ने-कहुना ओतए जेबाक ब्योंत कइए ली । कैकबेर सफल रही,कैकबेर
पकड़ा जाइ । मुदा तेँ आल्हा सुनबासँ बाज नहि आबी ।
असलमे ओहि
समयमे गाम-घरमे मनोरंजनक साधन बहुत सीमित रहैक । आइ-काल्हि जकाँ टेलेवीजन,मोबाइल
नहि रहैक । सीनेमा,रेडिओ नहि रहैक । तखन तँ मनुक्ख मनोरंजन सद्यः निर्माण
करैत छल जाहिमे शारिरिक संलिप्तता बहुत बेसी रहैत छलैक । लोक छोटो-छोटो बातसभमे मनोरंजनक जोगार
कए लैत छल । कोनो बड़का आयोजन वा बहुत रास
खर्चक प्रयोजन नहि होइत छलैक । तेँ
गाम-घरमे आल्हा गाएब,नटुआक नाच देखब ,वा रामलीला देखब बहुत
लोकप्रिय मनोरंजन होइत छलैक । आमक मासमे
लोक दू-तीन मास कलममे मचानपर बिता लैत छल । आमक रखबारीक संगहि पिकनिक करबाक आनंद
सेहो होइत छलैक । हाटक दिनक कहिओ काल
बीड़ी कंपनीक प्रचारक हेतु नटुआसभ फिल्मी गाना गाबि-गाबि लोककेँ आकर्षित करैत छल आ
रहि-रहि कए बीड़ीक वर्षा कएल जाइत चल । एहि तरहें लोककेँ बीड़ी पीबाक अभ्यस्त कए
ओकर बिक्री बढ़ाओल जाइत छल । एहने माहौलमे
तत्कालीन ग्रामीण समाजमे मनोरंजनक सस्ता आ सर्वसुलभ साधनमेसँ एकटा छल आल्हा
सुनब ।
इसकूलसँ
कैकबेर हमसभ कोनो बहाना बना कए पहिने छुट्टी लए लैत छलहुँ । एकतारासँ पैरे झटकारि
कए चलैत जखन जमुआरीसँ आगा बढ़ी तँ कैकबेर ढोलपर पड़ैत थाप सुनाइत । पैर अपने-आप
आओर फुर्तीसँ आगा बढ़ए लागैत छल । घर पहुँचि
झोड़ा राखि चोट्टे पहुँचि जाइत छलहुँ । कतए? जतए आल्हा
भए रहल होइत । गर्मी मासक गाम-घरक एकटा सहज मनोरंजन छल आल्हा । आल्हा गेनिहार
नटकेँ बेसी तामझाम नहि होइत छलैक ,
मात्र एकटा ढोल । बेसीकाल असगरे ओ ढोलकेँ पीटि-पीटि परोपट्टाक लोककेँ जमा कए लैत
छल । एकाध बेर ओकरा संगे एकटा सहायक सेह देखिऐक । मुदा कमे काल ।
ढोलक थापक
प्रतिध्वनि सुनि ई अंदाज लागि जाइत छल जे कतए जेबाक अछि । थोड़बे कालमे हम ओहि
दलानपर पहुँचि जाइत छलहुँ। ओहिठामक माहौले फराक
रहैत छल । सौंसे दलान लोक भरल रहैत छल । सभक मोनमे प्रसन्नता भरल देखाइत । आल्हाबला
ओहिठामक हीरो होइत छल । हमरा सन-सन नेनासभक हेतु तँ ओ बहुत आदरणीय व्यक्त छल ।
कारण जकरे देखितिऐक ओएह आल्हाबलाक गुनगान करैत भेटैत । आखिर नेना तँ नेने भेल ।
अल्हा गाबए
बला सामान्यतः अधबएसु होइत छल । कुल जमापूँजी एकटा ढोल । सामान्यतः असगरे गबैत छल
। हँ जखन ओ तावमे अबैत छल आ जोशमे ढोलपर थापपर थाप पीटैत छल तँ ओकर छवि देखएबला
रहैत छल । लगैत छल जेना हनुमानजीक साक्षात अवतार होअए । जखन जोशीला भाव प्रकट करैत
ओ सुर-तान धरैत छल तँ लागए जे ओ ढोलपर आब छरपत तँ ताब । कैकबेर
एकटा ठेहुन ढोलपर राखि ओ भावपुर्ण मुद्रामे गबैत-गबैत मूरीकेँ
जोर-जोरसँ पटकैत छल । कानपर एकटा हाथ राखि सभक ध्यान आकर्षित करैत छल-“बाबू सुनो हमारी बात,एकदिन
की नहीं लड़ाई गाबत बिति जाइ बरहमास.... “। ओकर
संगीतमय अभिनयक मनमोहक कथोपथनसँ समस्त श्रोतागण मंत्रमुग्ध रहैत छलाह । पूरा दनान
मिस परैत रहैत छल । केओ टससँ मस नहि होइत । बाह
रे कलाकार! साँझ होबएसँ
पहिने आल्हा समाप्त होइत छल । कैकबेर अड़ेर चौकपर तकरबाद ओ देखाइत । नेनासभ बहुत
आदरभावसँ ओकरा देखैत आ ओकरासँ
गप्प-सप्प करबाक चेष्टा करैत छल ।
आल्हा
सुनबाक हेतु उपस्थित लोकसभ एकदम बकोध्यान
लगओने आल्हाबलाक संगे भावात्मक रूपसँ एकाकार भए जाइत छलाह । लगबे नहि करैत जे एतेक
लोक ओतए जमा छथि । एहि तरहेम दससँ पनरह दिन धरि
ई कार्यक्रम चलैत । अंतिमदिनक कार्यक्रममे अगिला कार्यक्रमक सूचना देल जाइत जे काल्हिसँ फलना बाबूक ओहिठाम आल्हाक
कार्यक्रम होएत । लोकसभ अपना ओहिठाम आल्हा करेबाक हेतु लाइन लगओने रहैत छलाह । हमसभ नेनामे सोचिऐक जे आल्हाबला कतेक योग्य आदमी अछि । सभटा
आल्हा ओकरा कंठाग्र रहैक । केकबेर
सुनिऐक जे ब्रह्माक लड़ाई जल्दी नहि गाओल जाइत छैक । ओकरा गेलासँ गाम-घरमे झगड़ाक
संभावना रहैत छैक ,आदि,आदि । कहि नहि ई कतेक सत्य रहैक । जे
रहैक,से रहैक मुदा एतबा तँ निश्चित सही रहैक जे आल्हा गायन ओहि समयमे
गाम-घरक लोकसभक हेतु मनोरंजनक प्रमुख साधन छल । गर्मीक
मौसममे दुपहरिआ काटबाक ई बढ़ियां जोगार छल । संगहि
आल्हाबलाकेँ गुजर सेहो भए जाइत छलैक ।
बादमे कैक साल धरि ओ आल्हाबला हमर गाम नहि आएल। पता लागल जे ओ अपन डेराक
लगीचेमे रहनिहार कोनो महिलाक संगे नेपाल दिस भागि गेल । की भेल,नहि
भेल मुदा फेर कहिओ ओकर ढोलक थाप हमरा नहि सनाएल । हमहु पढ़बाक हेतु गामसँ
बाहर चलि गेलहुँ । मुदा गाममे दोसर,तेसर आल्हाबला अबिते रहल आ आल्हा
होइते रहल ।
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