मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

गुरुवार, 28 जून 2018

कलनाबला बाबा




कलनाबला बाबा

मिथिलांचलमे रहनिहार साइते किओ एहन हेताह जे कलनाबला बाबाक नाम नहि सुनने होथि । अत्यंत साधारण लिवास मे निरंतर प्रसन्न ओ कलना मे कतेको साल सँ रहैत छलाह। ओहि समयमे हम कालेजक विद्यार्थी रही। परीक्षा भए गेल रहए । गामपर खाली रही । नौकरी ताकबाक प्रयासमे बहत चिंतित रही । मोन बेचैन रहैत छल । हमर मित्र स्वर्गीय विश्नुकांत मिश्र(लाल बच्चा) बहुत  आस्थावान लोक छलाह । हुनकासंग कए पैरे दुनू गोटे कलना विदा भेलहुँ । 
सुनने रहिऐक जे बाबा बहत नियम निष्ठासँ रहैत छथि । जौं हुनका लेल किछु प्रसाद लए जा रहल छी तँ बहुत पवित्रता पूर्वक लए जेबाक रहैत छल । रस्तामे यत्र-कुत्र नहि हेबाक चाही,अन्यथा कहाँदनि अनिष्ट भए जाइत छल । हम सभ तँ खाली हाथे जाइत  रही तँ चिन्ताक बात नहि रहए ।
कलना बाबा केँ दर्शन हेतु पहिलबेर हम अपन मित्र लालबच्चाक संगे गेल रही। रस्ताभरि पैरे-पैरे गप्प-सप्प करैत हम दुनू गोटे दूपहरिआमे ओहिठाम पहुँचलहुँ । बाबा  नान्हिटा फूसक घरमे रहथि। ओहिमे बाँसक फट्टक लागल छल । एक-दू गोटे आओर ओहिठाम बैसल रहथि। बाबा अत्यंत सहज रूपमे सभसँ गप्प-सप्प करैत छलाह । गप्पक क्रममे ओ कहलाह
एकटा सेठ एकबेर हुनका लग आएल आ कहलक जे भगवान झुठ छथि। हम ओकरा कहलिऐक जे तोँही झुठ छैँ ।" 
ओ कहथि जे हुनका लग लोक कबुला कए लैत अछि आ ओकर अनुपालन नहि करैत अछि जाहि कारणसँ ओकरा अनिष्ट होइत अछि । कैटा भक्त हुनका लेल प्रसाद अनैत छलाह। ताहि काजमे बहुत संयम ओ स्वच्छताक प्रयोजन रहैत छल । बाबाक कहब रहनि जे जौँ क्यो हुनका हेतु अशुद्ध बस्तु अनैत अछि तँ ओकरा अपने अनिष्ट भए जाइत अछि । ताहि प्रसंगे ओ कैटा उदाहरणसभ देलथि ।
कलनाबला बाबा सँ हमरा तीन बेर भेँट भेल । दू बेर तँ हुनके कलना आश्रम पर आ एक बेर ओ हमरा ओहिठाम आएल रहथि तखन । दुनू बेर कलना हम अपन मित्र लालबच्चाक संगे पैरे गामसँ कलना गेल रही ।
एकबेर हम जखन बाबाक दर्शनक हेतु गेलहुँ तँ रस्तामे मोनमे भेल जे बाबाक एतेक नाम सुनैत छिअनि ,किछु सद्यः देखतिऐक । बाबाक ओतए हम दुनूगोटे पहुँचलहुँ तँ बाबा कहलाह जे आइ रहि जाह । हमसभ हुनकर आज्ञानुसार रुकि गेलहुँ । रातिमे सामनेक पोखरिक घाटपर हम सभ सुति गेलहुँ।अर्धरात्रिमे देखैत छी जे एकटा बाँस हीलि रहल अछि आ ओकर फुनगीपर धोती सुखा रहल अछि । डर भए गेल जे की बात छैक? उठिकए ठाढ़ भेले रही की देखैत छी जे लगेमे बाबा हँसि रहल छथि आ हुनकर हाथमे धोती छनि । बाबा किछु-किछु कहबो केलाह ।
एकबेर हमर अनुज(सुरेन्द्र नारायण मिश्र) बाबाकेँ अपना ओतए चलबाक हेतु आग्रह केलखिन । बाबा मानि गेलाह । कारसँ बाबाक संगे हमहुँ रही । बाबाक सिपहसलारसब सेहो रहथि । बाबा पहिने गिरजा स्थान गेलाह । ओहिठाम माताक दर्शन केलाह । फेर कार गाम विदा भेल । गाम पहुँचलाक बाद ओ हमरा ओहिठाम चौकीपर बैसलाह । कोनो ओछाओन नहि ओछबए देलखिन। अखरा चौकी पड़ बाबा पड़ल-बैसल रहलाह । ताबे तँ सौंसे गामक लोकक करमान लागि गेल । ततके भीड़ जमा भए गेल जे माइकसँ ओकरा शांत कएल गेल । माइकेपर बाबा किछु उपदेश देलाह । सभकेँ आशीर्वाद देलखिन । हमर अनुज(सुरेन्द्र नारायण मिश्र) केँ आशीर्वाद देलखिन जे तोरा बेटा होइ ,से सत्य भेल । हुनका दूटा पुत्र तकर बाद जन्म लेलखिन । कतबो कहल गेलनि ओ किछु नहि खेलथि आ थोड़ेकालक बाद कारसँ आपस चलि गेलाह ।
 बाबाक देहपर मात्र एकटा धोती रहैत छल जकरा ओ ठेहुनधरि पहिरने रहैत छलाह । लोककेँ देखि कए ओ अद्भुत निर्मल हँसी हँसैत छलाह । खेबाक कोनो चिंता नहि रहैत छलनि। नान्हिटा खोपड़ीमे माटिपर बाबा पड़ल वा बैसल रहैत छलाह । ओतहुँ लोक अपन स्वार्थसँ आन्हर भेल हुनका तंग केने रहैत छल ।

हौ बाबा ! किछु करहक ने...।

जखन बड़ तंग कए दैन तँ कहथि-"का कहली? की भैल?"। मुदा जकरा ओ बाक दए दैत छलाह से जरुर उद्धार भए जाइत छल । बाबाक कहब रहैत छलनि जे जँ क्यो किछु कबुला करैत छथि तँ काज सिद्धि भेलापर ओकरा तुरंत पालन करक चाही अन्यथा अनिष्ट होइत अछि।
बाबाक आश्रममे कतेको गोटे रहैत छलाह वा अबैत-जाइत रहैत छलाह। ओहिठाम रहनिहार लोकसभ एकहि साँझ अपनेसँ रान्हि भोजन पबैत छलाह । जखन ओसभ बहुत गोहराबथि तँ बाबा हँसैत कहितथिन –“ ठीक ,बनाब भोजन । भोजन जहन बनि कए तैयार भए जाए तखन बाबाक आज्ञा चाहै छल जाहिसँ ओ सभ भोजन शुरु करथि । बाबा किछु बजबे नहि करथि । लैह ,आब तँ बड़का विपत्ति । भोजन पड़सल धैल अछि आ बाबाक आदेशक प्रतीक्षा भए रहल अछि । बाबाके ओ सभ गोहरा रहल छथि । बाबा बड़ छगुन्तासँ हुनकासभकेँ देखथि । जखन ओसभ बाबाकेँ आग्रह करैत-करैत थाकि जाथि तखन ओ कहि दितथि -"शुरु करह" । एहि तरहेँ बाबा हुनका लोकनिक धैर्यक परीक्षा लैत छलाह । तकरबाद बाबा ओहिठाम बैसल ओकरासभकेँ खाइत देखि बहुत प्रशन्न होइत छलाह ।
बाबाक आश्रममे किछु गोटे  निरन्तर रहैत छलाह । किछु गोटे अबैत जाइत रहैत छलाह। खिछुगोटेतँ मात्र पेट पोसबाक हेतु ओतए पड़ल रहैत छलाह । कैटा  भक्त बाबा लेल कंबल वा आन-आन चीज-वस्तु अनितथि । बाबा ओकरा छुबितो नहि छलाह । आस-पास रहनिहारसभ  ओहि वस्तुसभकेँ लुझि लैत छलाह । बाबा आश्चर्यचकित भए देखैत रहैत छलाह ।
बाबाक दरबारमे पैघ सँ पैघ लोकसभ अबैत रहैत छलाह । जौँ बाबाकेँ इच्छा नहि होनि तँ हुनकर पट खुजिते नहि छल । जाबे बाबा जीबैत रहलाह,ओहि परिपट्टाक लोकक अपन आशीर्वादसँ कल्याण करैत रहलाह । बिना कोनो लोभ लालच केँ संपूर्ण जीवन ईश्वरक आराधनामे  लगा देलाह । हुनक निधनसँ एकटा महान संत एहि संसारसँ  मुक्त भए गेलाह संगहि बहुतरास लोकक मोनमे अथाह श्रद्धा छोड़ि गेलाह। हुनका शत-शत प्रणाम!






रविवार, 24 जून 2018

पं० परमानन्द झा( संस्मरण)



पं० परमानन्द झा( संस्मरण )



लोक एहि दुनियाँमे अबैत अछि,चलि जाइत अछि मुदा ओकर कएल काज ओकरा जिबैत रखैत अछि । कतेको व्यक्ति एहि संसारमे एहने भेला अछि जे अपन संघर्षसँ अपन जीवनमे एकटा नव दृष्टान्त उपस्थित केलाह आ हुनका गेलाक बादो लोकसभ हुनक कृतित्वक चर्च कए गौरवक अनुभव करैत छथि । एहने लोकमेसँ छलाह हमर ग्रामीण-स्वर्गीय पण्डित परमानन्द झा ।
हमसब जखन नेने रही तँ हुनका कतेको बेर पैरे अबैत -जाइत देखिअनि । पैरे चलब ओहि समयमे कोनो अजगुतक गप्प  नहि छलैक । मुदा ओ पैरे -पैरे मुजफ्फरपुर साक्षात्कर देबए चलि जाइत छलाह । लौटि कए ओहिना दन-दन करैत रहैत छलाह । कहिओ हुनका बैसल ,आराम करैत नहि देखलिअनि । दिन -राति ओ किछु-ने-किछु करैत भेटताह । व्यर्थ आडंवर किंवा प्रदर्शन करबामे हुनका कोनो रुचि नहि छल । सौंसे  दुनियाँ जँ खिलाफ भए जाए आ हुनका लगतनि जे ओ सहीपर छथि तँ ओ अपन निश्चयपर अडिग रहैत छलाह । 
सत कहल जाए तँ एहन कर्मठ लोक बिरलैके देखएमे अबैत अछि । खेत कोरब,धान रोपब ,धान काटब ,दाउुन करब सँ लए कए इसकूलमे मास्टरी करब फेर विद्यार्थीसभ केँ ट्युशन करब,ततबे नहि पंडिताइ करब,सभटा काज ओ एकसुरे करैत रहैत छलाह। हमसभ जखन नेना रही तँ हुनके घरक पाछा ब्रम्ह स्थानमे हमर सभक इस्कूल छल । ओतए हमसभ पढ़ए जाइत छलहुँ । कै दिन पानि पीबाक हेतु हुनका ओहिठाम आबि जाइत छलहुँ। जखन कखनो ओतए जइतहुँ ओ निरंतर काजमे व्यस्त रहैत छलाह । छोट-छीन फूसक घरमे अपन साधनामे लागल रहैत छलाह । कोनो काज करबासँ हुनका परहेज नहि छल । लोक की कहत से हुनका सुनबाक समय नहि छल । जे अपना ठीक बुझाइन से ओ करथि,जकरा जे मोन हो से कहैत रहए।हाथी चलए बजार,कुत्ता भुकए हजार |”
जीवन भरि ओ घोर संघर्ष करैत रहलाह । कठोर परिश्रम ओ मितव्यितासँ गामक आस-पास चिकन जमीन-जाएदाद बनओलनि । अड़ेरचौकपर सेहो बहुत कीमती जमीन ओ कीनलथि। सुनबामे आएल जे अट्ठारह बीघा जमीन ओ अपना जीवनमे मेहनति एवम् इमान्दारीसँ कीनलथि । एतबे नहि जाहिठाम एकटा मामूली फूसक घर छल ओतहि पता नहि कतेको कोठरीक घर बना देलथि । ओहिठाम गेलापर अहाँकेँ चारू कात घरे-घर देखएमे आएत। गाम-घरमे जकरा पोखरिआ-पाटन कहैत छैक,ताही तरहक हुनकर ग्रामीण आवास अछि । आ से सभटा मेहनतिसँ केलाह,कोनो ककरो वइमानी नहि,अपितु अपन विद्या ओ वुद्धिसँ निरन्तर समाजकेँ सेवा करैत उपार्जन केलाह ।  ओ निट्ठाह कर्मयोगी छलाह। कखनो बैसल नहि रहितथि। कोदारि पारवसँ लए कए इसकूलक मास्टरी धरि  ओ जीवन पर्यन्त करैत रहलाह। अगहन मासमे माथपर धानक बोझा लदने सीताराम-सीताराम कहैत डेगार दैत अपन धानक खेतसँ खरिहान धरि अबैत-जाइत हम हुनका देखिअनि  । जकरा जे बाजक होइक से बाजए,हुनका लेल धनिसन ।
ओ खाली धने अर्जित करैत रहलाह से बात नहि,अपितु घनघोर संघर्ष कए विद्योपार्जन सेहो केलाह । कतेको विषयमे आचार्य केलाह। फेर अंग्रेजी माध्यमसँ सेहो उच्च शिक्षा प्राप्त केलनि ।  बहुत दिन धरि रहिका उच्च विद्यालयमे संस्कृतक शिक्षक रहलाह आ प्रधानाध्यापकक पद धरि प्रोन्नति प्राप्त केलनि । धर्म ओ अध्यात्मक सेहो हुनका बहुत नीक जानकारी छलनि । कतेकोठाम धार्मिक सभा सभमे प्रवचन सेहो करैत छलाह । दड़िभंगामे संत -समागममे प्रवचन करैत हमहुँ हुनका सुनने रही । ओहि समयमे हम ओतए सी० एम० कालेजमे पढ़ैत रही ।
कतेको दिन हमसभ हुनका साइकलपर इंटा बन्हने,आ स्वयं ओकरा गुरकबैत पैरे-पैरे चलैत देखिअनि । कहिओ सीमेन्टक बोरा,कहिओ बाउल,कहिओ इंटा ओही साइकिल पर ढ़ो-ढ़ोक ओ पक्का मकान बना लेलथि । एहन धुनकेँ पक्का,कर्मठ ओ संकल्पक धनी व्यक्ति डिविआ लए कए तकनहुँ नहि भेटि सकत ।
व्यक्तिगत जीवनमे कै बेर हुनका प्रतिकूल परिस्थितिक सामना करए पड़ल,तथापि ओ धैर्यपूर्वक जीवनयात्रामे लागल रहलाह । आस-पासक गामक बहुत रास लोक हुनकार अध्यात्मिक चेला छल । हुनकासँ मंत्र लेने छल । हुनका प्रति श्रद्धाक भाव रखैत छल आ हुनक मृत्युसँ बहुत दुखी भेल छल ।
आब ओ एहि दुनियाँमे नहि छथि । खिछु साल पूर्व एकाएक हुनकर किडनी खराप भए गेल । मास दिनक भीतरे ओ मार्च २०१४मे चलि गेलाह। ओहि समय हुनकर बएस अस्सीसँ उपरे रहल होएत। मृत्युसँ किछुमास पूर्वे हम गाम गेल रही तँ हुनकासँ भेंट भेल रहए । ओ पूर्णतः स्वस्थ लगैत छलाह । अपितु  बरी काल धरि अध्यात्मिक विषयपर अपन मंतव्य दैत रहलाह । हमर माएसँ सेहो गप्प करैत रहलाह । तकर किछुए दिनक बाद हुनक मृत्युक समाचार भेटल । आश्चर्यमे पड़़ि गेलहुँ ।
हुनक देहावसानसँ गामेक नहि अपितु परोपट्टाकेँ एकटा अपूर्णीय क्षति भेल । कर्मठता एवम् सफल संघर्षक  एहन जीवंत उदाहरण भेटब बहुत मोसकिल काज अछि । हुनका हमर शत-शत प्रणाम !


सोमवार, 18 जून 2018

डा० सुभद्र झा(संस्मरण)


डा० सुभद्र झा(संस्मरण)





इलाकाक चर्चित व्यक्तित्व छलाह-डा० सुभद्र झा । धोती,मिरजइ सन कुर्ता पहिरने अत्यन्त सरल, साधारण लिबासमे डाक्टर साहेब अड़ेर हाट चौकपर बरोबरि देका जएतथि । गप्प-सप्पमे ओ अपन बिचार अति स्पष्टतासँ रखैत छलाह ।ताहि क्रममे जौं कने-मने विवादो भए गेल किंवा क्यो कटाक्षो कए देलक दँ कोनो बात नहि ।
मिथिलेटा नहि,अपितु समस्त भारतवर्षमे तत्कालीन विद्वान लोकनिमे हुनकर प्रतिष्ठा छलनि । हुनकर विषयमे किछु कहब आ लिखब कठिन काज अछि तथापि स्मरणमे किछु घटना अछि जे लिखि रहल छी ।
घटना सन् १९६५-६६ ई० क थिक । नवतुरियासभ गाममे एकटा पुस्तकालय स्थापित करए चाहैत चलाह । किछु दिनक प्रयासक वाद किछु पोथी ,किछु पैसा चंदा भेल । किछु आलमारी सेहो बनाओल गेल । तकर बाद भेलैक जे ओकर उद्घाटन कएल जाए। उद्घाटन के करताह ? आपसी विचार- विमर्शक बाद डा० सुभद्र झाक नाम पर आम सहमति भेल । डा० सुभद्र झा किछु दिन पूर्व सेवा निवृत भए गामे रहए लागल छलाह । आ यदा-कदा हमर गामक चौकपर अबैत-जाइत देखा जाइत छलाह । उद्घाटन कार्यक्रममे डा० सुभद्र झाकेँ सेहो किछु कहबाक आग्रह कएल गेल । बहुत दुराग्रह कएलापर ओ बजबाक हेतु तैयार भेलाह ।संक्षिप्त भाषणक क्रममे ओ कहलनि जे एहि इलाकामे अनुसंधानक हेतु पर्याप्त सामग्री यत्र-तत्र पसरल अछि । ओकरासभ केँ एहन पुस्कालयमे सुरक्षित राखल जा सकैत अछि । संगहि कबीरदासपर उपलव्ध सामग्रीक उल्लेख करैत ओ कहलाह जे एहि बातक प्रमाण अछि जे कबीरदास मैथिल छलाह आ मैथिलीमे कतेको रचना कएलनि अछि ।
१९७३ ई०मे लगभग एक मास डा० सुभद्र झाक राँची स्थित आवास पर रही। तखन ओ योगदा सतसंग विद्यालयक प्राचार्य रहथि । ओही परिसरमे प्राचार्यक निवासमे ओ  रहैत छलाह। हुनका संगे परिवारक आर सदस्य नहि छल । घरक काज करबाक हेतु एकटा नौकर छल । भोजन ओ स्वयं बनबैत छलाह ।
प्रातःकाल भात-दालि-आलूक सन्ना बनाबथि। रातुक भोजनक व्यवस्था सेहो तखने कए लेथि। रातिमे बेसी काल आँटाक चोकरकेँ दूधमे उसनि कए खाइत देखिअनि । रातिमे सूतबासँ पूर्व ओ नियमित रूपसँ पढ़ैत छलाह ।साँझमे तिन-चारि गोटे बैसि कए शास्त्र चर्चा करैत छलाह।एक दिन साँझमे डाक्टर साहेबक संग कतहु जाइत रही ।रिक्साबला सब जतेक पाइ मांगै,से देबाक हेतु ओ तैयार नहि होथि ।रिक्सातकैत-तकैत अन्ततः सौंसे रास्ता बिति गेल ।
एक दिन एहिना संगे टहलैत रही तँ साईबाबाक चर्चा उठल । ओ हुनकर बहुत प्रशंसा करथि आ कहथि जे साईबाबा सरिपहुँ सिद्ध पुरुष छथि जकर हुनका प्रत्यक्ष अनुभव तखन भेल रहनि जखन ओ बाबाक आश्रममे सिरडी गेल रहथि । कहलाह जे आश्रममे हुनका पहुँचते देरी बाबा हुनकर मोनक प्रश्नक उत्तर देबय लगलखिन । आरो कएकटा प्रसंगसभ ओ सुनओलथि ।
योगदा सतसंग महाविद्यालय नवे बनल छल । डाक्टर साहेब पूर्ण तत्परतासँ ओहि विद्यालयक विकासमे  लागल रहैत छलाह । परिसरमे आश्रमक आबास होइत छल । चारूकात गाछ सभक बीचमे बनल भाषण मंडपसभ । ओही परिसरमे एकदिस आश्रम छल जाहिमे एक दिन माँ आनन्दमयी आयल रहथि । हम डाक्टर साहेबक संगे ओतए रही । माँ आनन्दमयीक अबितहि पूरा हाँलमे शांति पसरि गेल । ओ किछु बजली नहि । चुपचाप सभगोटे ध्यान केलक।कोनो भाषणबाजी नहि भेल ।
एकदिन डाक्टर साहेबक डेरापर आंगनमे ठाढ़ रही । हमरा देखि डाक्टर साहेब गंभीर भए गेलाह आ कहला जे नीकसँ पहिरल-ओढ़ल करह । जीवनमे सफलताक हेतु एहिसभकेँ बहुत महत्व अछि । ताहीक्रममे कहलाह जे एही कारणे ओ कएक बेर उच्च पदसभक चयनमे पछड़ि गेलाह यद्यपि ओ पदक हेतु पूर्ण योग्य रहथि ।
डाक्टर साहेबक दोसर पुत्र भास्करजी इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे जर्मन भाषाक व्याख्याता छलाह । हुनकर डेरापर डाक्टर साहेब अबैत -जाइत रहैत छलाह । सन्१९८३ ई० क गप्प अछि । एकदिन हम हुनका दुनू गोटेकेँ नोत देने रहिअनि । दुनूगोटे कोनो कारणसँ आगा-पाछा भए गेलाह । डा० झा पहिने चलल रहथि । भाष्करजी पाछू चललाह आ डेरापर पहुँचि कए बहुत परेशानीमे रहथि जे आखिर ओ कतए चलि गेलाह । हमसभ गोटे हुनका ताकए लगलहुँ । कतहु नजरि नहि आबथि । रातुक समय छल । भोजनमे विलंब भए रहल छल । ताबत थोड़े कालक बाद मकानक नीचासँ ओ जोर-जोरसँ हमर नाम लए कए चिकरि रहल छलाह।हमरा सभकेँ जानमे जान आएल । पता लागल जे ओ हमर डेरा तकैत-तकैत धोबी घाट चलि गेल रहथि । हमर मकान मालिक धोबी छल आ तकरे अनुमानमे ओ धोबी घाट चलि गेल छलाह ।
डाक्टर साहेब अति अध्ययनशील छलाह । जखन कखनो फुरसतिमे रहितथि तँअध्ययन करए लगितथि । एकदिन प्रातः एगारह बजे इलाहाबाद मे भाष्करजीक डेरा पर गेलहुँ । डाक्टर साहेब ओतहि रहथि । कहलाह जे हम एगारह घंटासँ निरन्तर पढ़ि रहल छी । मैथिलीमे शव्दकोशक निर्माणमे लागल छलाह। एकदिन हम डाक्टर साहेबक संगे इलाहाबादमे कतहुँ जाइत रही । रस्तामे पुछलिअनि जे भगवान छथि कि नहि? ओ उत्तर देलनि जे ई कहब तँ कठिन अछि जे भगवान छथि कि नहि परन्तु जौँ भगवान छथि तँ बहुत बइमान छथि,कारण दैत ओ कैटा उदाहरण देलनि । जेना पेटमे बच्चा किएक मरि जाइत छैक ? आखिर ओ जन्मसँ पूर्वे की गलती केलक ?आ जौँ गलती केलक तँ जनमि कए ओकरा भोगए । गप्पक क्रममे ओ कहलाह जे सम्प्रति जीबैत लोकमे बिहारमे संस्कृतक सभसँ पैघ विद्वान छथि ।
साहित्य अकादमीक तत्कालीन अध्यक्ष डा० सुनीति कुमार चटर्जीक ओ बहुत प्रशंसा करथि आ कहति जे हमरा लेल ओ भगवाने छलाह । डाक्टर साहेबक संगे एकदिन टहलैत रही। गप्पक क्रममे ओ अपन प्रवासक दौरान भेल दू गोट घटनाक चर्चा कएलनि । डाक्टर साहेब ट्रेनसँ कतहुँ जाइत रहथि । कोनो टीसनपर गाड़ी रूकल तँ डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्नन ओहिमे सवार भेलाह ।डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्नन  बैसबाक हेतु घुसबाक हेतु कहलखिन।डाक्टर सुभद्र झा अड़ि गेलाह एवम् डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्नन केँ जगह नहि देलखिन ।राँचीमे गप्पक क्रममे एकदिन डाक्टर साहेब कहलाह जे ओ  पुस्तकालयमे नौकरी करैत रहथि । ओही क्रममे हुनकासँ जे श्रष्ठ पदपर अधिकारी छलाह से हुनकासँ किछु गलत काज कराबए चाहैत छलाह।ओ से करबाक हेतु सहमत नहि भेलाह । ताहिसँ कुपित भएकए ओ अधिकार हिनका बहुत तंग करैत छलनि । डाक्टर साहेबकेँ पता रहनि जे ओ अधिकारी गलत काज करैत अछि। चुपचाप ओकर गलत काज बला कागजातक प्रतिलिपि ओ रखैत गेलाह । पुस्तकक क्रय-विक्रय मे ओ अधिकारी बहुत हेरा-फेरी केने छलाह,जकर कागजी सबूत डाक्टर झा लग छलनि ।बादमे एहि बातक आरोप भेल एवम् जाँचक बाद ओ अधिकारी दोषी साबित भेल । अपनाकेँ बचाबक हेतु ओ चाहलक जे पुस्तकालयकेँ जे क्षति भेल रहैक से आपस करी मुदा ओकर परिवारक लोक पैसा आपस नहि कएलक । एहिबात सभसँ दुखी ओ भयभीत भए  ओ आत्महत्या कए लेलक।
डाक्टर झा सँ जे  कनी-मनी हमरा संपर्क भेल ओकरा संयोग कहि सकैत छी । बच्चेसँ हम हुनकर नाम सुनैत रही । सौँसे इलाकामे ओ चर्चाक विषय रहथि आ छोटसँ पैघ लोकक संपर्कमे सहजतासँ अबैत छलाह । ओ धुनक पक्का छलाह । जाहि काज मे लागि जाथि तकरा पूर्ण करबाक हेतु प्राण-प्रणसँ जुटि जाथि । हुनका अपन गाममे गाछ सब रोपबाक इच्छा रहनि। कहि नहि,कतए-कतएसँ आनिकए सालक साल ओ आमक गाछ रोपैत रहलाह ।
हुनक प्रतिभा ओ  विद्वताक वर्णन करबाक कोनो आवश्यकता नहि बुझा रहल अछि।आडम्वर रहित जीवन शैली एवम् अतिशय सहज व्यवहारक संग स्पष्टवादिताक लेल ओ सभ दिन मोन पड़ताह । धोती-कुर्ता पहिरने, पैरे खेतक आरिए-आरिए चलैत-चलैत पता नहि ओ निरन्तर कोन चिंतनमे ध्यानमग्न रहैत छलाह । अपन मौलिकता एवम् अपन बातकेँ दृढ़तासँ रखबाक लेल ओ सभ दिन मोन पड़ैत रहताह ।


शुक्रवार, 15 जून 2018

सफलताक रहस्य


सफलताक रहस्य

एहि दुनियाँमे क्यो एहन लोक नहि भेटताह जे अपन अधलाह चाहैत होथि,अपितु सभ एही प्रयासमे लागल रहैत छथि जे संसारक अधिक सँ अधिक सुख-सुविधा हमरा भेटए,सभ मनोकामना पूरा होअए,बाल-बच्चा सुखी रहए। एही प्रयास मे हमसभ निरंतर लागल रहैत छी । एहिमे किछु गलत नहि छैक मुदा समस्या तखन होइत अछि जखन सभ प्रयास केलाक बादो मनोवाँछित फल नहि भेटैत अछि। एहि परिस्थितिमे कतेको गोटौ निराश भए जाइत छथि, प्रयास छोड़ि दैत छथि आ कतेकोबेर अनुचित रस्ता सेहो अख्तियार ए लैत छथि ।
कै बेर एहन होइत अछि जे हम कोनो काजमे बर्खोसँ लागल रहैत छी आ जखन लक्ष्य एकदम लगीच रहैत अछि तँ थाकि कए,निराश भए अपन प्रयासकेँ सिथिल कए दैत छी किंबा आधा-अधूरा  छोड़ि दैत छी । परिणाम अनुकूल कोना होएत ?से नहि होइत अछि, तँ विधाताकेँ दोख देबए लगैत छी । दुनियाँमे ज्यादातर असफल लोक आत्म-चिंतन करबाक बजाए अपन असफलताकेँ हेतु दोसर केँ जिम्मेदार ठहराबए लगैत छथि । मुदा ताहिसँ की होएत?  
कोनो प्रकारक काजक सफलताक हेतु जरूरी अछि जे हमर समस्त शक्तिक रचनात्मक उपयोग हो,एकहि संगे दसठाम हाथ देलासँ किछु नहि भए सकैत अछि। कखनो किछु,कखनो किछु जँ करैत रहब तँ बानर बला हाल भए जाएत जे जाही डारिपर जाइत अछि ओकरा दोसर डारि बेसि हरियर लागए लगैत अछि । एकरा लोक कहैत अछि-बनरकूद। कहबाक तात्पर्य अछि जे सबसँ पहिने अपन गंतव्यक निर्धारण करबाक चाही आ तकर बाद संपूर्ण शक्तिसँ ओकरा प्राप्त करबाक प्रयास करबाक चाही ।
एकटा बात तँ तय अछि जे सफलताक कोनो लघुपथ नहि भए सकैत अछि। आइ धरि जे क्यो व्यक्ति सफल आदमीमे सुमार कएल जाइत छथि तिनक जिनगीसँ ई बात बुझल जा सकैत अछि । अपना देशक भूतपूर्व राष्ट्रपति कलाम साहेब अखबार बेचि कए पेट भरैत छलाह। वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी महोदय नेन्नामे चाह बेचैत छलाह । एतेक विपन्नता अछैत ओ सभ अद्वितीय कोना भए गेलाह? ई सोचबाक विषय थिक ।एहन कम लोक होइत छथि जे सुविधाक अंबारमे जनमिओ कए पैघ- पैघ काज कए यशस्वी होइत छथि । पैघ उद्येश्य जँ रखने छी तँ ताहि प्राप्त करबाक हेतु तेहने सघन प्रयासो चाही। अर्जुन जकाँ सभकिछु बिसरि मात्र पंक्षीक आँखिपर ध्यान केंद्रित हेबाक चाही आ जँ भीम भाइ जकाँ एकहिबेर सभ किछु देखए लागब तखन की भेटत? फोकला!
महान उपलव्धिक हेतु तेहने कड़गर मेहनति करए पड़ैत अछि । तेहने दृढ़ संकल्पक संग दिन-राति एक करए पड़ैत छैक । एहन नहि भए सकैत अछि जे हल्लुक परिश्रमसँ उत्कृष्ट उपलव्धि भए जाइक। अंग्रेजीमे एकटा कहाबत छैक जे "If wish be the horses, poor ride the first" कहक माने जँ इच्छे केलासँ होइक तँ गरीबे सबसँ पहिने घोड़ा चढ़ए । इच्छाक संग-संग प्रयत्नो तेहने  घनघोर हेबाक चाही ।
जेठक दुपहरिआमे जखन रौदसँ मोन आकुल भए जाइत अछि तखन होइत छैक जे कहुना गाछक छाहड़िमे चली। जखन पिआससँ मोन बेकल भए जाइत अछि तखन इच्छा होइत छैक जे हे भगवान! कहुना कतहुँसँ पानि भेटए। तखन लोक ई नहि देखए लगैत अछि जे पानि डबड़ाक अछि कि गंगाजल । केहनो पानि अमृत लगैत अछि । तहिना जीवनक संघर्षक तपिससँ मोन जखन व्याकुल भए जाइत अछि तँ  लोक थाकल-ठेहिआएल कहि उठैत अछिः हे भगवान! आब अहीं पार लगाउ ! संघर्षक समयमे भगवानपर विश्वास बड़का शक्ति दैत अछि । काज करैत रहू आ फलक चिंता हुनका पर छोड़ि दिअ,इएह बात भगवान गीतामे बारंबार कहने छथि ।एहि काज करबाक शक्ति बढ़ैत अछि ।कने-मने असफलतासँ निराशा नहि होइत छैक आ अन्ततः सफलता तँ भेटिते अछि।
मनुक्खक मोनमे परमात्माक बास होइत अछि । तेँ जँ ओ सही प्रयास करए तँ किछु दुर्लभ नहि रहि सकैत अछि । ताहि हेति जरूरी थिक जे लक्षयक प्रति पूर्ण समर्पण होइक । आधा-अधुरा मोनसँ कएल गेल प्रयाससँ सिद्धि नहि भए सकैत अछि । ई बात अक्सर देखल गेल अछि जे हम  उत्तम सँ उत्तम फल चाहैत छी ,जकरा ककरो लग किछु  नीक छैक से हमरा लग किएक नहि रहत? हमसबसँ औअल किएक नहि रहब? से सभतँ ठीक,मुदा जखन प्रयास करबाक गप्प होइत अछि तँ हम पाछा रहि  जाइत  छी।
रामकृष्ण परमहंससँ एकबेर क्यो पुछलकनि जे भगवानक दर्शन कोना होएत? ओ ओहि व्यक्तिकेँ पानि मे डूबा देलखिन आ पुछलखिन जे आब की चाही? ओ चिचिआए लागल-किछु नहि चाही,बस हमरा पानिसँ निकालु । ओकरा तुरंत पानिसँ निकालल गेल । पानिसँ बाहर अबितहिँ ओकरा कहलखिन जे जहिना पानिमे डुबि गेलाक बाद तोरा खाली पानिसँ बाहर हेबाक इच्छा रहि गेलह आओर किछु नहि सुझाह तहिना जखन भगवान केँ प्राप्त करबाक हेतु एकाग्र हेबह तँ ओहो भेटि जेथुन। एहने खिस्सा एकलव्यक अछि । गुरु द्रोणाचार्य द्वारा शिक्षा नहि देबाक निर्णयसँ आहत ओ गुरुक प्रतिमा बैसाए दिन-राति साधना करए लगलाह आ अपन लक्ष्यकेँ पाबि तेहन निपुण धनुर्धर भए गेलाह जे द्रोणाचार्यो घबरा गेलाह आ ओकरासँ अंगूठा मांगबाक नीचता कए गेलाह।
सफलताक कुंजी थिक,आत्मविश्वास । स्वामी रामतीर्थ एकबेर घोर झंगलसँ जाइत रहथि कि एकटा बाघ हुनका सामने आबे गेल । मुदा ओ बिना बिचलित भेनहि ओहि बाघक आँखिमे घुरैत रहलाह आ बाघ अपन रस्ता बदलि लेलक।स्वामीजीक आत्मविश्वाससँ बाघोकेँ रस्ता बदलि लेबाक हेतु विवश कए देलक। जौँ हमरा विश्वास अछि जे हम ई काज  कए सकैत छी तँ बुझि लिअए काज हेबे करत । देर-सवेर भए सकैत अछि,मुदा होएत।
मानव जब जोर लगाता है,पत्थर पानी हो जाता है।

जीवनमे सफल आदमीमे एकटा गुण सभठाम देखबामे आएत जे एहन लोकक रुखि सकारात्मक होइत अछि,ओ दोसरकेँ टंगघिच्चु नहि करैत छथि ,अपितु अपन समस्त शक्तिसँ लक्ष्यकेँ प्रप्त करबाक हेतु लागल रहैत छथि । असफलतासँ ओ निराश भए बैसि नहि जाइत छथि अपितु आओर जोड़सँ काजमे लागि जाइत छथि । एहने दृढ़ संक्लपी व्यक्ति कठिन सँ कठिन काज केँ सरल बना लैत छथि आओर सफलताक पराकाष्ठाकेँ प्राप्त करैत छथि ।









बुधवार, 6 जून 2018

अशांतस्य कुतः सुखम्


अशांतस्य कुतः सुखम्

जीवनमे सभ किछु भेटलाक बादो कखनहुँ काल लोकक मोन होइत रहैत अछि जे कोनो एहन ठाम चली जाहिसँ मोन निचैन भए जाए,सभ किछु बिसरि किछु दिन शांतिसँ बिताबी  आ झंझटिसभकेँ कात कए दी । कखनो-कखनो चिज वस्तुसभ  व्यर्थ लागए लगैत छैक ,होइत छैक जे कहुना ओहिसभसँ पिंड छोड़ाबी किंवा किछु एहन कए ली जे निश्चिंत भए सूति सकी । से किएक होइत छैक?
सबदिन हमसब अपन धीया-पुताक सुख-सुबिधाक हेतु काज करैत रहैत छी।समाजमे,अपन लोक-बेदक बीचमे मान-संमान हो,हमरा श्रेष्ठ बुझल जाए,अनकासँ हम सेसर रही,एही लफड़ासभमे जीवनक मूल्यवान समय चलि जाइत अछि आ अंतमे हाथ अबैत अछि फोकला। मनुक्खक मोहवंधन ततेक मजगूत होइत अछि जे ओ अंत -अंत धरि ओकरे फाँसमे फँसल मेहिआ बड़द जकाँ बहैत रहि जाइत अछि आओर एकदिन मुट्ठी बन्हने एहि दुनियाँसँ प्रस्थान कए दैत अछि । सभ किछु ठामहिँ रहि जाइत अछि ।क्यो एकर अपवाद नहि रहैत अछि ।

आया है सो जाएगा, राजा-रंक फकीर ।

एक सिंघासन चढ़ि चले, एक बंधे जंजीर ।।

एकबेर एकटा महिलाकेँ लकबा मारि देलकै । ओ अस्पतालमे भर्ती रहथि । बाजल नहि होनि। कै दिनक प्रयासक बाद हुनका कनी-मनी होश भेल । कहुनाक मुँहसँ आवाज फुटलैक । होश होइतहि पहिल बात ओ इएह बाजल जे सूदि वसूलल गेल कि नहि ? सोचियौ ,जे टाकासँ केहन मोह छलेक ओकरा ! जान जाए पर छलैक , अस्पतालक आपत्तिकालीन विभागमे भर्ती छल , हैथ-पैर सुन्न भेल छलैक ,मोसकिलसँ कहुनाक आवाज फुटलैक तँ सभसँ पहिने की बाजल ? इएह थीक माया । ई जनितो जे सभटा एतहिँ रहि जाएत, लोक अंत-अंत धरि टाका बटोरबामे,लूट-खसोटमे लागल रहैत अछि । तखन शांति कतएसँ होएत ?
एकटा राजाक महल लग एकटा लोहार दिन-राति खट-खट करैत रहल छल । राजा एहि बातसँ तंग भए गेलाह । कोनो उपायसँ चाहथि जे एहि खट-खटीकेँ बंद कराबी । एक दिन ओ ओहि लोहारकेँ बजओलथि।लोहार डरा गेल । ओकरा नहि बूझएमे अबैक जे ओकरासँ कोन अपराध भेल जे ओकरा राजा बजा रहल छथि ।  खैर! ओ राजासँ भेँट करए पहुँचल । ओकरा देखिते राजा कहलखिन जे तोरा जतेक टाका चाही से लए लएह मुदा ई खटर-पटर बंद करह । राजाक बात काटत के ? ओ राजासँ यथेष्ट टाका लेलक आ ओहि दिनसँ अपन काज केनाइ बंद कए देलक । काज बंद तँ कए देलक मुदा ओकरा तहिआसँ निन्ने नहि होइक। की करए ? कतेको राति करोट बदलैत बीति गेलैक । एहिसँ ओ ततेक तंग भए गेल जे होइक जे जान चलि जाएत । हारि कए ओ राजाक ओतए दौड़ल गेल आ जे टाका लेने छल से आपस कए प्रार्थना करए लागल जे ओकरा अपन काज फेरसँ शुरु करबाक  आज्ञा देल जाइक  । राजा छगुंतामे पड़ि गेलाह । पुछलखिन जे बात की थिक,ओ किएक टाका आपस कए रहल अछि? लोहार कहलकैक-"सरकार! जहिआसँ काज छोड़लहुँ,हमर सुख चैन हरा गेल । हमरा माफ कएल जाए , हम अपन पहिलका जीवन जीबए चाहैत छी । ओहीसँ हमरा शांति भए सकैत अछि । राजा ओकर समस्या बूझि गेलाह आ ओकर बात मानि  लेलाह। तकर  प्रातेसँ ओ लोहार अपन काज शुरु केलक । ओहि राति ओ  बहुत चैनसँ सूतल । फेरसँ वएह ठक-ठकी सूनिकए राजा बहुत जोरसँ हँसलाह । ई कथा बहुत लोककेँ बूझले होएत,मुदा एहिमे बहुत गंभीर शिक्षा भरल अछि । धन-संपत्तिसँ  सुख चैन नहि भेटि सकैत अछि। लोभ-लालचसँ नहि,अनकर हक मारि लेलासँ नहि अपितु परिश्रमपूर्वक उपार्जित धनसँ जीवन-यापन केनेसँ मोनमे शांति भेटि सकैत अछि। 
समस्या अछि जे लोकसभ सभ किछु बूझितो एतेक फिरसान किएक रहैत अछि जखन कि क्यो से चाहैत नहि अछि? कारण सहजे ताकल जा सकैत अछि । अधिकांश व्यक्ति अनकर सुखसँ दुखी रहैत छथि । ओ किएक बढ़ि रहल अछि,ओकर मकान हमरासँ पैघ किएक छैक,ओकर बच्चा कतहुँ पढ़लकैक अछि,ओ सभतँ सभ दिन हमरासभसँ दव रहल आब कतएसँ पैघ भए जाएत ? एहीठाम हम मारि खाइत छी । जँ हम सकारात्मक सोच- बिचार राखी,अनको उपलव्धिसँ प्रशन्न हेबाक भाव राखी तँ निश्चय हमरा प्रशन्न हेबाक बेसी अवसर भेटि सकैत अछि । छै ने सत बात?
नान्हिटा जीवनकेँ के कोना बिताबए चाहैत अछि से बात बहुत हद धरि ओकरेपर निर्भर करैत अछि। समयतँ बीतिए जाएत चाहे जेना बीता लिअ,हँसिकए बीता लिअ चाहे कानि कए । असलमे कोनो घटना विशेष ककरा पर केहन प्रभाव करत से ओकर प्रवृतिपर निर्भर करैत अछि । ई ओहिना भेल जेना एकटा गिलास मे आधा पानि भरल अछि तँ क्यो कहत जे आधा पानि खतम भए गेल,तँ क्यो कहत जे एखन तँ आधा पानि बाँचले अछि,चिंता कथीक? एकटा अपन मकान बनलासँ कतेक खुशी होइत छैक । तहिना जँ अनको मकानसँ हम  खुश हेबाक प्रवृति विकसित कए ली तँ नित्य -निरंतर प्रशन्नताक वरखा होइत रहत एहिमे कनिको शंका नहि ।
चमक-दमक मे रहनिहार अनेको लोककेँ देखलासँकै बेरि मोनमे होइत छैक जे ई बहुत भाग्यवान अछि, बेस  मौजमे जीवि रहल अछि । मुदा ई बात कै बेरि कपोल -कल्पना साबित होइत अछि । कतेको फिल्मी कलाकार आत्महत्या करैत छथि । जौं धन-संपत्ति,ओ सामाजिक प्रतिष्ठासँ लोक सुखी रहैत तँ वएह सभ रहितथि। मुदा से असलियत मे नहि अछि । 
लोक दिन-राति पूजा -पाठ करैत रहैत अछि,कथी लेल ? जाहिसँ मनोकामना पूरा होअए,अधिकांश  लोकक संग ई बात फिट बेसैत अछि,परिणाम होइत अछि जे  पूजा करितो काल हम शांत नहि रहि पबैत छी। हम गाममे कै बेरि पूजा करैत काल लोककेँ चिकड़ैत-भोकरैत देखने छी,महादेवपर जलढ़री करैत काल अनका शरापैत सुनने छी,  कबुला-पाँती करैत तँ के-के ने देखने होएत । जखन  माथमे एतेक ओझर लए कए पूजा-पाठ कएल जाएत तँ  शांति कोना भेटि सकत ? भेटत-अहीँ कहू ? इएह थिकैक समस्याक जड़ि।
यद्यपि आयु बढ़िते जाइत अछि, लोकक मोह घटिते नहि अछि । सभकिछु हमरे भए जाएत से कतहुँ संभव होइक! ई जीवन अपूर्णतासँ भरल अछि । सभ किछु नहि भेटि सकैत अछि । तखन मर्जी अहाँक अछि जे हाय! हाय ! करैत रही किंवा जे किछु अदिष्टसँ भेटल तकरा सहर्ष स्वीकार कए संतुष्ट रही ।
ई बात तँ बूझि गेलिऐक जे शांतिसँ रही,एकर बहुत नफा छैक,मुदा शांति प्राप्त कोना भए सकैत अछि? ताहि हेतु की कएल जाए? की नहि कएल जाए? असलमे  उपदेश देलासँ किंबा किताबमे पढ़ि लेलासँ शांति प्राप्त नहि कएल जा सकैत अछि । ई तँ जीवन कला थिक एवम् निरंतर अभ्यासेसँ प्राप्त कएल जा सकैत अछि । तथापि किछु बात मोटा-मोटी जँ ध्यानमे राखल जाए तँ बहुत रास झंझटिसँ बँचल जा सकैत अछि आओर ओही अनुपातमे शांत जीवन बिताओल जा सकैत अछि।मोनमे संतोखक भाव एवम् अनावश्यक प्रतिस्पर्धासँ बचबाक चाही। आवश्यकताकेँ सीमित करबाक चाही । आय ओ व्ययमे संतुलन हेबाक चाही आ सभसँ जरूरी अछि जे मोनमे लोक कल्याणकारी भावना विकसित करबाक चाही । जे बात अपना नीक नहि लगैत अछि,से अनका संग नहि करी ।  अनकर उपलव्धिसँ ओहिना प्रशन्न होइ जेना अपनसँ । अनकर निंदासँ बची। परिवारमे सभक उचित महत्व दी । खाली अपने बात चलओनिहारकेँ अन्ततोगत्वा निराशा हाथ लगैत अछि । शांतिक हेतु जरूरी थिक जे मन कल्याणकारी विचारसँ ओत-प्रोत हो। दोसरक हितकारी भावना हो । जहिना हम अपन प्रगति चाहैत छी ,तहिना अनको लेल सोचियैक । से सभ जौँ हमर मोनमे रहत तँ निश्चय हम शांति ओ आनंदक अनुभव कए सकैत छी ।  तखने सुखी रहि सकैत छी ।
गीतामे कहल गेल अछि जे जकर शांति नहि तकरा सुख कतए?

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।

न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।