मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मंगलवार, 13 मई 2025

डाक्टर योगानन्द झा

 


डाक्टर योगानन्द झा

“अन्यायोक कोनो सीमा होइत अछि।”

ई शब्द थिक मैथिलीक प्रसिद्ध विद्वान लेखक,समालोचक आदरणीय डाक्टर श्री योगानन्द झाजीक जे ओ फोनपर हमरा किछु साल पूर्व कहने रहथि। हुनकर इसारा  केमहर छल से सोचल जा सकैत अछि।असलमे ओ पहिल व्यक्ति छलाह जे स्वेच्छासँ हमर पोथीपर समीक्षा लिखलनि।उपरोक्त गप्पक किछु दिनक बाद ओ स्पीडपोस्टसँ अपन हाथसँ लिखल हमर उपन्यास,मातृभूमिक समीक्षा पठओने रहथि। कहलथि जे हमर पोथीसभ पढ़ैत रहलाह अछि। बहुत दिनसँ ओहिपर लिखबाक सोचि रहल छलाह। मातृभूमि उपन्यासपर समीक्षा लिखि कए बहुत दिनसँ अपने लग रखने रहथि।इच्छा छलनि जे ओकरा हमरा हाथे मे देताह।परन्तु, दिल्ली दिस अएबाक संयोग नहि बनि रहल छलनि।तेँ ओ आब डाके सँ पठा रहल छथि।बादमे ओ हमर उपन्यास,बदलि रहल अछि सभ किछुक समीक्षा सेहो लिखलनि जे अनेक पत्रासभमे छपल छल।

 सन् २०१८मे आदरणीय डाक्टर योगानन्द झाजी दिल्ली आएल रहथि। हमरा फोनो केलाह।हम हुनकासँ भेंट करबाक लेल सभास्थल(इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र ) गेबो केलहुँ। मुदा ओ कार्य्रक्रममे व्यस्त रहथि, भेंट नहि भए सकल।हम एक घंटा ओतए रहि वापस भए गेल रही। बादमे हुनकासँ फोनपर कैक बेर गप्प-सप्प होइत रहल।हम जखन कखनहु हुनका अपन किताब पठबिअनि तँ ओ तकर पहुँचनामा अबस्स सूचित करथि।ओ समय-समयपर कैक बेर किताब पढ़ि अपन पाठकीय प्रतिक्रियासँ सेहो अवगत करबैत रहलाह।

आदरणीय डाक्टर योगानन्द झाजीसँ पहिल बेर साक्षात भेंट भेल मार्च २०२४मे जखन कि हम दरभंगा किछु काजसँ गेल रही।हुनकासँ भेल हमर प्रथम भेंटक चर्चा हम कतहु आन लेखमे कए चुकल छी,तेँ पुनरावृति नहि करैत एतबे लिखि रहल छी जे हुनका बारेमे जे हमर श्रद्धा आ सिनेह छल से ओहि भेंटक बाद आर मजगूत भए गेल।हम हुनकर विनम्रता,मैथिलीक प्रति अनुरागकेँ नहि बिसरि सकैत छी।  ओ बेर-बेर ई बात दोहरओलनि जे पोथीसभ मोफतमे नहि बाँटबाक चाही। मोफतमे भेटल वस्तुक लोक महत्व नहि दैत छैक।एहन पोथीकेँ लोक नहि पढ़ैत छैक।संगे लेखकक आर्थिक क्षति तँ होइते छैक। मुदा लेखको की करए?किताब छपि कए आबि गेल छैक। ओकर बंडलसभ घरक सीमित स्थानकेँ छेकने जा रहल छैक।गृहस्वामिनी फराके चिचिआ रहल छथि। खरचा तँ जे भेल से भेबे कएल ,ऊपरसँ अनेक तरहक परेसानी से होइत रहैत अछि। तेँ किछु आर खरचा कए किताबसभ पार्सल द्वारा संभावित पाठक धरि पहुँचाओल जाइत अछि। मुदा तकर परिणाम?नहि चर्चा करब बेसी नीक।

हम कैक बेर अपन पोथीसभक बंडल पार्सलसँ हुनका पठा दैत छलिअनि।ओ ओहि पोथीसभकेँ चुनिन्दा लेखक,समीक्षक लोकनिकेँ दैत छलखिन आ आग्रह करैत छलखिन जे  तकर पहुँचनामा हमरा जरूर देथि।बहुत गोटे से केबो केलनि।आदरणीय शशिबोध मिश्र ‘शशि’जी तँ हमर उपन्यास,लजकोटरपर समीक्षो लिखलनि आ बादमे जखन दिल्ली अएलाह तँ भेंटो केलनि।मुदा बहुत रास विद्वान लोकनि जिनका हमर पोथी ओ देलखिन ,अपन पाठकीय प्रतिक्रिया नहि दए सकलथि। एक बेर किछु कार्यवश योगानन्द बाबू पटना गेल रहथि तँ ओहिठामक तीनटा प्रमुख मैथिली पुस्तक विक्रेतासभसँ भेंट कए हमर उपन्याससभ देलखिन आ आग्रह केलखिन जे हमर पोथीसभक विक्रयक उचित व्यवस्था करथि। मुदा से सभ किछु नहि भेल। ओ सभ किछु तेहन संकतो नहि देलनि।एमहर किछु दिनसँ एकगोटेक  फोन जरूर आबि रहल अछि। देखा चाही जे तकर किछु सार्थक परिणाम आबि सकत कि नहि।

पाँच अप्रेल २०२५क मधुबनीमे सगर राति दीप जरए कार्यक्रम हेबाक रहैक। उम्मीद रहए जे ओहिठाम योगानन्द झाजीसँ सेहो भेंट हेबे करत। मुदा ओ ओतए  नहि भेटलथि। तखन  दू दिनक बाद हुनकासँ भेंट करबाक लेल कबिलपुर,लहेरिआसराय स्थित हुनकर घरपर गेलहुँ। दूपहरक बारह बजेक आस-पासक समय रहैक। हम हुनका ओहिठाम करीब घंटा भरि छलहुँ। ओहि बीचमे ओ कैकटा स्थानीय साहित्यकारलोकनिकेँ हमर आगमनक बारेमे कहलखिन,मुदा ओ सभ कतहु आर व्यस्त छलाह। दरभंगामे आयोजित किछु साहित्यिक कार्यक्रमसभक जनतब सेहो हुनका मारफत भेटल।आर कैक तरहक गप्प-सप्प भेल।जलखै,चाह-पान तँ भेबे केलैक,पोथीक आदान-प्रदान सेहो भेलैक। बाहरमे रिक्सा बला प्रतीक्षा कए रहल छल। ओकरा रोकि लेने रहिऐक कारण ओहि रौदमे ओकरा बिना चलब मोसकिल छल। तेँ कनी जल्दीए हुनकासँ बिदा लेलेहुँ। ओ हमरा बहुत पटकी धरि अरिआति देलथि।

दूबर-पातर,सरल अत्यन्त साधारण लिबासमे योगानन्द बाबू व्यवहारमे अद्भुत विनम्र छथि।अपनत्व भाव तँ भरल रहैत छनि। हुनकासँ गप्प कए लगैत रहैत अछि जेना खाँटी,सुच्चा मैथिलसँ मुखातिब छी। मैथिलीक साहित्यक आकाशक चमकैत सूर्य थिकाह आदरणीय योगानन्द झाजी। हुनकर एक-एक रचना,आलेख,समीक्षा,शोध निवंध पाठकपर अमिट चाप छोड़ैत अछि। तकर मूल कारण थिक जे ओ जे किछु लिखैत छथि से गंभीर अध्ययनक बाद आ पूरा मनोयोगपूर्वक, ऊपर -झापर किछु नहि।तेँ पाठक हुनकर रचनासभकेँ पढ़ि कए सोचबाक लेल विवश भए जाइत छथि।

एक बेर फेर एहन सुच्चा मैथिलीप्रेमीसँ भेंट भेल से हमर सौभाग्य।ईश्वर एहन महान व्यक्तित्वसँ मिथिलाकेँ भरि देथि से प्रार्थना।

योगानन्द बाबूसँ भेल भेंट विषयक अपन आलेखक लिंक जखन हम फेसबुकपर देलिऐक तँ किछु विद्वान लोकनिक बहुत मार्मिक आ प्रेरक प्रतिक्रिया आएल जकरा उद्धृत कए रहल छी-

प्रोफेसर (डाक्टर) श्री भीमनाथ झा-

“वास्तवमे श्री योगा बाबूक प्रति जे भावना अपने व्यक्त कयल अछि, से शत-प्रति-शत यथार्थ थिक। ओ लोके हीरा छथि।”

आदरणीय श्री लक्ष्मण झा ‘सागर’-

“योगानन्द झाजी मैथिली साहित्यक अनमोल खजाना छथि!!”

आदरणीय श्री नन्द कुमार राय-

“मैथिली भाषा आ साहित्यक एकान्त साधक, लोक साहित्यक मर्मज्ञ विद्वान, प्रसिद्ध अनुवादक, समीक्षक आ सभसँ बढ़ि सहृदयी व्यक्तित्वक धनी योगानन्द झा मैथिली साहित्यक ओ अनमोल रत्न छथि जनिक माँ मैथिलीक प्रति कर्तव्यनिष्ठाकेँ लेखनीक माध्यमसँ कथमपि जगजियार नहि कएल जाए सकैछ।”

https://www.facebook.com/photo?fbid=3820619828213000&set=a.1388340294774311

 

रबीन्द्र नारायण मिश्र

‍१२।०५।२०२५

 

 

 

 

 

 

 

 



 

 

 

 

 

 

 


गुरुवार, 1 मई 2025

प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झा

 

प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झा

पछिला कतेको  सालसँ आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीसँ हमरा संपर्क अछि।हम हुनका अपन कोनो पोथी पठओने रहिअनि। ओ ओहि पोथीकेँ तुरंत पढ़ि हमरा फोन केलनि  आ अपन सकारात्मक प्रतिक्रिया देलनि। तकर बाद तँ हम हुनका अपन किताबसभ नियमित पठबति रहलिअनि।  ओ ओकरा पढ़ि फोनपर अपन प्रतिक्रिया दैत रहलाह।ताहि संगे बड़ी काल धरि गप्प-सप्प,हास्य-व्यंग होइत छल। ओ सदिखन प्रसन्न आ आनन्दपूर्ण अवस्थामे रहैत छलाह। सभसँ प्रभावित करबाक बात तँ ई रहैत छल जे सभ तरहेँ संपन्न आ एतेक वरिष्ठ रहितहु हुनकामे अहंक कनीको  लवलेश नहि रहैत छनि। हुनकर सहज आ सरल व्यवहारसँ के नहि प्रभावित भए जाएत?स्वाभाविक छल जे हुनका प्रतिए हमर आदर बढ़ैत गेल।हुनकर बात-व्यवहार हमरा बहुत आकृष्ट केलक ।हुनकर सकारात्मक रुखि आ उत्साहवर्धनसँ हमरा  सृजनशील रहबाक  प्रेरणो भेटैत रहल। हम जे निरंतर आ नियमित  लिखैत रहलहुँ अछि ताहिमे हुनकर बहुत योगदान छनि। ओ हमर पठाओल  किताबसभ पढ़ैत रहलाह आ पढ़लाक बाद अपन मंतव्य दैत रहलाह जे बहुत लाभकारी सिद्ध  भेल।

हम मैथिलीमे लिखल अपन पोथीसभ हुनके नहि,अपितु अनेक विद्वान,मैथिलीक प्रोफेसर ,लेखक,समीक्षक लोकनिकेँ पठबैत रहलिअनि अछि। ओहिमे बहुत कम लोक छथि जे पार्सल पहुँचलापर पहुचनामो देथि,पढ़बाक  तकर बाद अपन प्रतिक्रिया देबाक बात तँ छोड़ू। मुदा किछु गोटे एकर अपवादो छथि, जाहिमे आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीक नाम हमरा दृष्टिमे औअलि अछि। कारण किछु गोटे शुरूमे जरूर उत्साह देखओलनि,मुदा बादमे ओ हिलओलो,डोलओलोपर किछु नहि केलथि। मैथिली पाठक लोकनिक मध्य एहन संवादहीनता निश्चित रूपसँ बहुत दुखद अछि। आखिर पोथी तँ पाठकेक लेल लिखल जाइत अछि। यदि पाठक ओकरा पढ़थि,ओहिपर अपन मंतव्य स्पष्टता आ इमान्दारीसँ राखथि तखन तँ बाते किछु आओर होइत। मुदा से अछि नहि। परिणाम अछि जे किछु लोक जे अंट-संट लिखि दैत छथि आ जिनका किछु लोकक वरदहस्त प्राप्त छनि,सएह चलैत रहैत अछि।एहन परिस्थितिमे साहित्यिक जगतमे खास कए मैथिलीमे इन्द्रकान्त बाबू सन लोकक उपस्थिति बहुत माने रखैत अछि,बहुत आवश्यको अछि।

हमरे नहि अपितु अनेक नव,अज्ञात रचनाकारकेँ उत्साहित करबाक लेल माननीय इन्द्रकान्त बाबू सभ दिन मोन राखल जेताह। हम हुनकर एहि गुणक अनुशंसा,प्रशंसा अपन परिचित दूटा रचनाकार(कवि राज किशोर मिश्रजी आ आदरणीय कामेश्वर चौधरीजीसँ केने रहिअनि। ओहो सभ हुनकर संपर्कमे अएलथि। हुनके सभक सेहो बहुत नीक  अनुभव भेलनि। ई अछि हुनकर उदार आ जीवंत व्यक्तित्वक आभा जकर सानिध्यमे जे केओ गेलथि से निश्चित रूपसँ प्रभावित भेलथि,आनन्द उठओलथि आ लाभान्वित भेलथि।

इन्द्रकान्त बाबू कोरोना कालक समयमे २०२२मे दिल्ली आएल रहथि। ओ हमरा सूचितो केलनि,मुदा हमरा मोनमे कोरोनाक ततेक भय छल जे हुनका लग जेबाक साहस नहि भेल।ओ मास दिन लगीचेमे नोएडामे रहि कए वापस पटना चलि गेलथि ।हमरा बादमे एहि बातक बहुत अफसोच भेल रहए।

“भेंट करबाक चाहैत छल,जे होइतैक,देखल जइतैक।”-मोनमे सोचाए। मुदा जानक डर मामुली नहि होइत अछि, से भुक्तभोगीए कहि सकैत छथि। कोरोना तेहन आतंक पसारने छल जे सालक-साल संपूर्ण विश्वकेँ हिला कए राखि देलक,हमर कोन कथा?

अपन नोएडा-दिल्ली प्रवासक समयमे इन्द्रकान्त बाबू निरंतर संपर्कमे रहलाह। किछुओ नव बात होइतैक तँ अबस्से कहितथि।ओ कहथि जे कोना हुनकर सोसाइटीमे बूढ़सभक मध्य  प्रसिद्ध भए गेल छथि,कोना ओ हुनका लोकनिकेँ अपन कविता पाठसँ प्रभावित केलनि। अनेक तरहक समाचारसभ कहैत रहलथि। हुनकासँ भेंट नहि भेल,मुदा मोनमे ई निर्णय भए गेल जे पटना जाए जतेक जल्दी संभव होएत  हुनकासँ अबस्स भेंट करबनि।

समय बीतैत गेल,मुदा पटना जेबाक कार्यक्रम नहि बनि सकल। आखिर एहि बेरक ग्राम यात्राक बीचमे किछु दिनक लेल पटना जेबाक कार्यक्रम बनओलहुँ।फगुआसँ पहिने ‍१० मार्च २०२५ कए पटना पहुँचलहुँ। ओहिसँ एक दिन पहिने इन्द्रकान्त बाबूक फोन आएल छल। हम अपन संभावित कार्यक्रमक बारेमे कहलिअनि। ओ कहलाह-

“बहुत नीक समाचार देलहुँ। हमहूँ बहुत उत्सुक छी,अपनेसँ भेंट करबाक लेल। मुदा एगारह तारीख कए हम एकटा उपनयनक क्रममे बाबा वैद्यनाथ धाम जाएब आ  बारह तारीख कए लौटब।तकर बाद अबस्स भेंट भए सकत। ओना बारहो तारीख कए साँझक बाद भेंट भए सकत कारण हम ताधरि लौटि गेल रहब। ”

सभ बातक ध्यानमे रखैत हम तेरह तारीख कए हुनकासँ भेंट करबाक कार्यक्रम बनओलहुँ। ताहिसँ पूर्व हुनका फोन केलिअनि। ओ एक-दू बजेक अएबाक आग्रह केलनि।हम दू बजे एकटा आटोसँ हुनकर    डेरापर बिदा भेलहुँ। आटो चालक मुसलमान छलाह,मुदा रहथि बहुत नीक। ओ इन्द्रकान्त बाबूक राजेन्द्र नगर,पटना स्थित घरक लगीच धरि पहुँचा देलनि। मुदा तकर बाद हमसभ एमहर-ओमहर बौआए लगलहुँ।तकर कारण छल जे हमरा हुनकर घरक सही ठेकाना नहि छल। ने हम हुनकासँ से पुछि सकलिअनि। हमरा लग हुनकर डाक पता छलहे आ ओहि पतापर हम कैक बेर किताबसभ पठा चुकल छी। मुदा पार्सल आ मनुक्खमे फरक होइत छैक। आसपासक रोडक जनतब नहि रहबाक कारण हम करीब घंटा भरि बौआइति रहि गेलहुँ। एहि बीचमे हम हुनका अनेक बेर फोन केलिअनि। मुदा ओ फोन उठेबे नहि करथिन। फोनक घंटी बजैत-बजैत बंद भए जाइक। हम हुनकर दोसर मोबाइल नंबरपर फोन केलहुँ,हुनकर दिल्ली स्थित पुत्रक मोबाइलपर फोन केलहुँ। किछु आर गोटेकेँ सेहो फोन केलिअनि। मुदा सभ प्रयास व्यर्थ साबित भेल। हम आब बहुत परेसान भए गेल रही। लगपासमे केओ हुनकर घरक हुलिआ नहि बताबए। भेल जे आब वापस अपन डेरा लौटि जाइ कि एतबेमे हुनकर फोन आबि गेल।हुनकर ध्यान मोबाइल फोनमे हमर अनेक मिसकालपर गेलनि।ओ स्वयं हमर  पहुँचबामे भए रहल विलंबसँ चिंतित छलाह-

“रस्ता भुतला गेलिऐ की?”

“हमसभ लगीचे मे कतहु छी,मुदा अहाँक घर नहि ताकि पाबि रहल छी।”

“हमरा अंदाज लागि गेल। भारतीजी घंटा भरिसँ अहाँक प्रतीक्षा करैत-करैत चलि गेलाह। कोनो बात नहि।अहाँ फोन वाहन चालककेँ दिऔक।”

हम फोन वाहन चलाककेँ दैत छी। ओ रस्ताक सही जनतब हुनकासँ लेलक आ  पाँच मिनटक भीतरे हमरा अपन गंतव्य लग पहुँचा देलक।हम आटोसँ उतरैत छी तँ देखैत छी जे इन्द्रकान्त बाबू स्वयं गंजी-धोती पहिरने सड़कक कातमे हमर स्वागतमे ठाढ़ छथि। हुनकर बेचेनी स्पष्ट देखल जा सकैत छल। हम आटो बलाकेँ किराया दैत छी आ   अपन सामानसभक संगे हुनका पाछू-पाछू बिदा भए जाइत छी।सामनेमे रेलक आवागमन देखल जा सकैत छल।असलमे ओ स्थान राजेन्द्र नगरे रेल टीसनक पछुआर थिक।हम सामान सहित हुनकर भूतल स्थित घरमे हुनके संगे पहुँचैत छी।

भूतलपर स्थित हुनकर निवासपर  पहुँचतहि हमरा पाग,डोपटा पहिरा कए ओ स्वागत करैत छथि। हुनकर पौत्र तकर वीडियो बनबैत छथि,फोटो खिचैत छथि। तकर बाद ओ अपन लिखित पुस्तकसभ दैत छथि। हमहूँ अपन नवीनतम उपन्यास,यज्ञसेनी,हुनका देलिअनि। सभ घटनाक फोटो हुनकर खिचलथि,तकरासभकेँ बादमे   हमरो मोबाइलपर पठा देलथि। कहि नहि सकैत छी ,कतेक अपनत्व भाओसँ ओ हमरा स्वागत केलनि। रसगुल्ला,गुलाब जामुन,पेरा,खजूर खाउ,जतेक खाउ ,टेबुलपर राखल अछि। संगे हुनकर ओहूसँ बेसी मधुर व्यवहारसँ आनन्दक वर्षा भए रहल छल। करीब दू घंटा हम ओतए रहलहुँ। ओही बीच कामेश्वर चौधरीजीक फोन दिल्लीसँ आबि गेलनि। फोनपर भेल हुनकर वार्तालापपसँ सोनामे सुगंध लागि गेल। आब साँझ पड़ि रहल छल। हम हुनकासँ आशीर्वाद लए डेरा वापस बिदा भेलहुँ। ओ फेर हमरा सड़क धरि अरिआति देलनि। हुनकर विनम्रता आ सिनेहसँ हम अभिभूत छलहुँ। रस्ता भरि हुनकर ध्यान अबैत रहल।

फेसबुकपर हम आदरणीय प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ  भेंटक जनतब देलिऐक तँ अनेक विद्वानलोकनिक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देखबामे आएल जाहिमे सँ किछु एहिठाम उद्धृत कए रहल छी-

आदरणीय प्रोफेसर भीमनाथझा-

भाग्यशाली तँ अहाँ छीहे। तकर एक प्रमाण ईहो। 'मिथिलाक रवीन्द्र'सँ सम्मानित हैब सामान्य बात नहि भैलै। ताहूमे एहि रंगदिवसपर...। हम तँ हिनका 'सर्वतंत्रस्वतंत्र' बुझै छियनि, महामहोपाध्यायोसँ पैघ। भविष्यमे हमरो लोकनि द' लोक कहत, जँ कहत तँ यैह जे ईहो सभ 'इन्द्रकान्त युग'क थिका।”

आदरणीय प्रोफेसर रमण झा

“बहुत -सुन्दर! आदरणीय इन्द्रकान्त बाबू स्वयं विद्वान छथि आ विद्वानक सम्मान करए जनैत छथि-

विद्वानेव हि जानाति विद्वज्जन परीश्रमम्।

न हि वन्ध्या विजानाति गर्भिणी प्रसवव्यथाम्।।

दुनू साहित्यकारकेँ बधाइ आ शुभकामना!

आदरणीय विनोदानन्द झा

“आदरणीय इन्द्रकान्तजीक ई विनम्रता सभकेँ भावुक कऽ दैत अछि। बधाइ।

(https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=pfbid027E4AdNnvDK32X15nkHrNZv3fPVudZSGpHMyo2vH38JCymy1pb34U8hwDFJQkLfw6l&id=100007950603547&rdid=JHtSnPJf4yfbcwqP#)

भेंट-घाँटक क्रममे आदरणीय प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ हुनके रचित किछु कवितासभ सुनबाक सुअवसर भेटल। कविताक किछु प्रमुख पाँति छल-

बूढ़ छी

बुढारी मे

उर्जावान छी

आँखि कान ठीक अछि

पढ़ै छी

लिखै छी

कवि सम्मेलनमे गरजै छी

हार्ट हमर अछि बड़ मजगूत

कते बूढाकेँ

हम मरैत देखने छी

हम डरै नहि छी

कन्हा दै छी

प्रसन्न रहै छी

हमरा ने कोनो बिमारी अछि

आइ काल्हि रह रहाँ हाइब्लडप्रेसर

लो बल्डप्रेसर आ डाइबीटीज

लोक सब केँ तंग करैए

मुदा हमरासँ कोसो दूर रहैए

हम खूब प्रेमसँ पनतुआ रसगुल्ला

चाभैत रहैत छी

आनन्दक जीवन बितबै छी।

(हम बूढ़ छी पृष्ठ ६०)

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बूढ़ छी

बुढ़ारी जीवन

जीबैक सलुक

हम जानै छी,

धिया-पुताक

सब बात हम मानै छी

बंशी बजबै छी

बाँसक नहि

चैनक बंशी

जखन जे दैए

खाए लै छी

नहि दैए

लोटा भरि पानि

पीब लै छी

ढ़ेकार करै छी

ककरो विरोधमे

किछु नहि बाजै छी

हमर बिरोधमे बाजैए

सुनियो कए अन्ठबै छी

सुखमय जीवन जीबै छी

(हम बूढ़ छी, पृष्ठ ८८)

ऊपरोक्त पाँतिसभमे आदरणीय इन्द्रकान्त झाजीक जीवनमे संतुष्टि भाओ आ वृद्धावस्थोमे जीवंतता बनओने रहबाक गूण स्पष्ट झलकैत अछि। जेहने सरस आ सार्थक कवितासभ ओ लिखैत छथि,वस्तुतः तेहने आनन्दमय जीवन ओ जीबैत छथि। इएह कारण अछि जे हुनकर कवितासभ पढ़ला,सुनलासँ जीवनमे उल्लास, उत्साह बढ़ैत अछि। जीवनक रहस्य बुझबामे,गुणबामे सफल ई कवितासभ सरिपहु अद्भुत अछि। इएह सभ सोचैत हम पटनाक केन्द्र सरकारक होलीडेहोम स्थित अपन डेरा दिस बिदा भए गेलहुँ।रस्ता भरि आ डेरापर पहुँचलाक बादो बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ-  सही मानेमे जतबे महान,ततबे विनम्र ,सरल आ व्यवहार कुशल छथि ओ ।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

‍१ -५-२०२५








बुधवार, 23 अप्रैल 2025

‍श्री शिवशंकर श्रीनिवास

 

श्री शिवशंकर श्रीनिवास

१८ जनबरी २०२५क हम दिल्लीसँ मधुबनी पहुँचलहुँ। किछु दिन गामक काजसभमे लागल रहलहुँ। तकर बाद किछु स्थानीय साहित्यकारलोकनिसँ भेंट करबाक  कार्यक्रम बनाबए लगलहुँ। एही क्रममे  हम मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री शिवशंकर श्रीनिवासजी मोन पड़लथि।दूसाल पहिने एक बेर हुनकासँ दिल्ली द्वारका स्थित हुनकर जमाएक डेरापर मे हुनकासँ भेंट भेल छल।ओहि दिन  हुनकर व्यवहारसँ बहुत प्रभावित भेल रही। ओहि दिन हुनकर पत्नी अस्पतालमे भर्ती रहथिन। मुदा हमरासँ भेंट करबाक लेल ओ अस्पतालसँ डेरा आबि गेल रहथि। हुनकर बेटी,जमाएसभ हमर स्वागतमे लागल रहलथि।हम हुनका अपन किछु पोथीसभ देने रहिअनि। ओहिमे हमर उपन्यास,हम आबि रहल छी, सेहो सामिल छल। किछु दिनक बाद ओ एहि उपन्यासकेँ पढ़लनि  आ अपन बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया देलथि।हम एहि बातसँ बहुत उत्साहित भेल रही।

हम श्रीनिवासजीसँ  ह्वात्सअपपर संपर्क केलिअनि।हुनका अपन  कार्यक्रमक बारेमे कहलिअनि। ओ तुरंत अपन गाम अएबाक आग्रह केलनि,अपन पता पठा देलनि। आइ जाएब,काल्हि जाएब करैत-करैत समय बीतैत गेल। एकदिन हुनकासँ फोनपर गप्प भेल तँ ओ २४ मार्च २०२५ कए  पटना होइत दिल्ली जेबाक सूचना देलनि। आब तँ किछुए  दिन बाँचल छल। हम दोसरे दिन हुनका लोहना जेबाक लेल टैक्सीक ओरिआनमे लागि गेलहुँ।मधुबनीमे टैक्सीक व्यवस्था नीक नहि अछि। जे से किराया लैत अछि,ओहूपर सँ कतेक तरहक असुविधाक संभावना बनले रहैत अछि। समयक कोनो पाबंदी नहि,व्यवहारक कोनो मर्यादा नहि,किछु बाजि सकैत छथि।एहिसँ नीक आटो बला सभ अछि जे सुभ्यस्तो होइत अछि आ सामान्यतः विनम्रो। मुदा लोहना जेबाक लेल आटो भेटल नहि।आखिर एकटा टैक्सी बलासँ बात तय भेल।ओकरा अपन गंतव्य आ समय बतओलिऐक। सभ बात बुझलाक बात ओ अपन स्वीकृति देलक।

‍१९ अप्रैल २०२५ कए नियत समयपर टैक्सी आबि गेल। टैक्सी बला ओना ठीक-ठाक लोक बुझेलाह,मुदा हुनका लोहना जेबाक मार्गक स्पष्ट जानकारी  नहि छलनि।हम हुनका श्रीनिवासजीसँ गप्प करा देलिअनि। ओ मधुबनीसँ लोहना जेबाक रस्ताक सही जनतब हुनका देलखिन।मधुबनीसँ रामपट्टी-भगवतीपुर-बिरौल चौक-(दक्षिण दिस मुड़ि जाउ) -रैमा-रुपौली आ तकर बाद लोहना।ओना हम एहि इलाकामे एक बेर बरिआतीक क्रममे गेल रही। मुदा रातिक समय रहैक,कोनो बहुत जानकारी नहि भए सकल छल। एहि बेर बाध-बोन देखैत-सुनैत करीब घंटा भरिमे हम लोहना पहुँचि गेलहुँ। लोहना  पहुँचबासँ पहिने हुनकर फोन कैक बेर आबि गेल छल। जखन हमसभ हुनकर घर लग पहुँचलहुँ तँ ओ अपन दनानसँ सटले रोडेपर हमर प्रतीक्षा कए रहल छलाह।हम टैक्सीसँ उतरलहुँ आ हुनका नमस्कार करैत हुनके संगे हुनकर घरक ओसारापर पहुँचि गेलहुँ।

हमसभ आपसमे गप्प-शप्प कइए रहल छलहुँ कि एकटा शोधार्थी सेहो आबि गेलाह।बीच-बीचमे हुनकर शोधपत्रपर अपन टिप्पणी आ ओहिमे  सुधारक संभावित विषयपर सेहो ओ मार्गदर्शन दैत रहलखिन।हमर भातिज  प्रसिद्ध कवि आदरणीय श्री राज किशोर मिश्रजी आ हुनकर साहित्यिक कृतिक चर्चा सेहो ओ केलनि।प्रसिद्ध कथाकार श्री अशोकक चर्चा सेहो भेल। कहलथि जे ओ गाममे रहितथि तँ अबस्स अबितथि आ सभगोटे संगे बतिबितहुँ। असलमे अशोकजी हुनकर अभिन्न मित्र आ ग्रामीण छथिन। दुनूगोटे एक्के विधा,कथामे लिखैत छथि, संगे समीक्षको छथि।हुनका लोकनिक आपसी सिनेहक चर्चा पहिनहु सुनने छी। बादमे अशोकजी ह्वात्सअपपर हमर एहि यात्राक चर्चा केलनि  प्रसन्नता व्यक्त केलनि।

श्रीनिवासजीक सरलता,विनम्रता आ अपनत्व भाओ ककरो मोहित कए सकैत अछि। ओहिठाम पहुँचितहि लगैत छल जे कोनो अपन आदमीसँ भेंट भए रहल अछि।

बरषहि जलद भूमि नियराए,जथा नबहि  बुध विद्या पाए।

 तुलसी रामायणक उपरोक्त कथन सद्य प्रमाणित भए रहल छल। विश्वास नहि भए रहल छल जे मैथिलीक एहन प्रसिद्ध आ सफल कथाकार, साहित्यक एतेक पैघ विद्वानसँ भेंट भए रहल अछि। अतिसय सहज आ स्वाभाविक मुस्कान हुनकर व्यक्तित्वक आभाकेँ चमत्कृत कए रहल छल। सही मानेमे हुनका संग बिताओल गेल प्रत्येक क्षण आनन्ददायी छल। एहन विलक्षण व्यक्तित्वक लोकसँ भेंट कए हम सरिपहु बहुत आनन्दित भेल छलहुँ।

 लगभग दू घंटा हम हुनका ओहिठाम रहलहुँ।हुनकर श्रीमतीजी ताधरि जलखैकक ओरिआनमे लागल रहलीह।कहि नहि सकैत छी जे कतेक स्वादिष्ट छल ओ भुजल चूरा आ आलूक चप। कैक बेर परसन लए कए हम खाइत रहलहुँ।ओ जलखै नहि,अपितु भोजन भए गेल। रातिमे मधुबनी डेरापर वापस अएलाक बाद किछु भोजन करबाक जरुरति नहि रहि गेल।

आब साँझ पड़ि रहल छल। टैक्सी बलाक संग तय समय सीमाक अधीन वापस हेबाक छल। हम सभ चाह पीलहुँ।श्रीनिवासजीकेँ आ ओतए उपस्थित शोधार्थीकेँ अपन लिखल उपन्यास  देलिअनि।तकर बाद हम ओहिठामसँ बिदा हेबाक लेल हुनकासँ आज्ञा लेलहुँ। फेर ओएह रस्ता,ओएह बाध-बोन। मुदा एहि बेर दुबिधा नहि छल,तेँ सुगम लागि रहल छल। सूर्यास्त भए रहल छल।भगवान सूर्यकेँ मोने-मोन प्रणाम केलहुँ ।मोनमे बहुत संतुष्टिक भाओसँ हम वापस मधुबनी स्थित अपन डेरापर पहुँचि गेलहुँ।हमरा बहुत प्रसन्न देखि श्रीमतीक उत्सुकता बढ़लनि।हुनका सभटा बात कहलिअनि।ओ कहलीह-

“अपन समाजमे  अखनहु एहन लोकसभ छथि,से बहुत गौरवक बात।”

 हम दुनू बेकती बड़ी काल धरि आजुक यात्रापर चर्चा करैत रहि गेलहुँ।



 

रविवार, 9 मार्च 2025

प्राणक भीख मगैत मिमिआइत छागर आ वलिप्रदान

 

प्राणक भीख मगैत मिमिआइत छागर आ वलिप्रदान

हम किछु दिन पूर्व उच्चैठ भगवतीक दर्शनक लेल गेल रही। मधुबनीसँ कारसँ भोरे उच्चैठ हम दुनू बेकती बिदा भेलहुँ। हम तँ कैक बेर उच्चैठ गेल छी। मुदा हमर श्रीमतीजी पहिल बेर ओतए जा रहल छलीह।अस्तु,हुनका बहुत दिनसँ ओतए जेबाक अभिलाषा छलनि जे आइ संभव भए रहल छल। असलमे बहुत दिन बाहर रहि गेलासँ अपना ओहिठामक बहुत रास तीर्थ  महत्वपूर्ण स्थानसभ देखबासँ छुटि गेल अछि जे आब बेरा-बेरी पूरा भए रहल अछि। एहि क्रममे हमसभ आइ उच्चैठ बिदा भेल छी।आब अड़ेर माने हमरसभक गाम आबि रहल अछि। दुबगली नव-नव मकान,नव-नव दोकान खुजि गेल अछि। अड़ेर थानासँ जेना-जेना आगू बढ़ब सड़कक काते-काते अनेक प्रकारक दोकानसभ देखबामे अबैत अछि जे अंततः धकजरीमे जा कए मिलि जाइत अछि।

आब हमसभ भदुली पहुँचि रहल छलहुँ। ओतए  पहुँचितहि पुरान बातसभ मोन पड़ि जाइत अछि।एहि ठाम हमर परिवारक खेत,कलम सभ छलनि। बेर-कुबेर हमहूँ ओहि ठाम जाइत छलहुँ। ओहिठाम भोजो खाइत छलहुँ। आब तँ ने ओ रामा ने ओ खटोला। कनीके आगू बढ़लापर धकजरी आबि जाइत अछि। ओहिठाम बामा कात  धकजरीमे लालबाबूक ड्योढ़ी देखाइत अछि जतए हुनकर पुत्र,नन्हकू बाबू कैक मंजिलक फ्लैटनुमा घर बनओने रहथि। ओहि समयमे हुनकर धाजा फहराइत छल। लालबाबू स्कूटरपर चलैत छलाह।कैक बेर ओ अड़ेर चौकपर ठाढ़ होइतथि।स्कूटरमे सिकार कएल बगेरीसभ रखने रहितथि। अड़ेर चौकपर पान खइतथि ,गप्पसप्प करितथि। हुनका देखि कए हमरा सन-सन कैकटा बच्चासभ सेहो जमा भए जाइत छल।बादमे जखन नन्हकू बाबूक समय अएलनि तखन ओहो बरोबरि देखैतथि। देखबामे अपूर्व सुंदर।माथपर लालठोप केने।हुनकर बड़ीटा परिवार छलनि। ओहि समयमे साम्यवादी किसान आन्दोलनमे ओ सभ बहुत दिक्कतिमे पड़ि गेल रहथि। हुनकर बहुत रास जमीनसभपर झंझटि होइत रहैत छलनि। ई सभ बात हमसभ गाममे सुनियैक।

धकजरीक बाद बेनीपट्टी आएल। बेनीपट्टी बहुत पहिने हमरा सभक थाना छल। बादमे हमरे गाममे थाना बनि गेल।बेनीपट्टीमे जमीन रजिष्ट्रीक पुरान कार्यालय अछि।कैक बेर हमहूँ बाबूक संगे ओतए गेल छी,मधुर खेने छी। ओतए बहुत रास दोकानसभ देखबामे आएल। कार आगू बढ़ैत गेल आ थोड़बे कालमे हमसभ उच्चैठ पहुँचि गेलहुँ।

उच्चैठमे शुरूएमे गेटे लग एक गोटे फूल,प्रसाद बेचि रहल छलाह।पुछलिअनि-

“कतेक दाम छैक?”

“छोटका बीस,बड़का साठि।”

“साठि बला दए दिऔक।”

ओ तर दए फुलडालीमे सभ किछु सड़िआबए लगलाह, ओहीक्रममे बजलाह-

“एक सए बला आर नीक छैक।”-से कहि फुलडाली पकड़ा देलनि।हम किछु बजितहु,बुझितहुँ ताहिसँ पहिने ओ अपन काज कए चुकल रहथि।साठि टकाक बदला दाम आब एक सए भए गेल छल। भोरुका पहर छलैक,भगवतीक पूजा करबाक रहए।तेहनमे मोनमे विक्षोभ उत्पन्न नहि बढ़बैत  हुनका एक सए दए आगू बढ़ि गेलहुँ। तकर बाद तँ एहन फूल-प्रसाद बेचनिहारक भीड़ लागल छल। हम पछताइ जे अनेरे शुरूएमे ई सभ कीनि लेलहुँ। मंदिर लग पहुँचैत-पहुँचैत एकटा पंडितजी भेटलाह-

“दर्शन करबैक?”

“हँ,हँ।”

“हमरा संगे चलू।हम सभटा नीकसँ करा देब।”

“टका कतेक लेबैक।”

“चलू ने। जे अपनेक श्रद्धा।जे मोन होअए से दए देबैक।”

हमसभ उच्चैठ भगवतीक मंदिरक बगले पोखरिमे जा कए पैर धोलहुँ।पोखरिक पानि तेहन छल जेकुरुर करबाक तँ प्रश्ने नहि छल? हमर श्रीमतीजी संगे रहथि। हुनका कालीदाससँ जुड़ल स्मृतिशेष देखबाक बहुत जिज्ञासा छहनि।

ओ एहि विषयक अनेक प्रश्न पुछि रहल छलीह-

“ओ स्थान कतए छैक?”

“ओ पुस्तकालय कहाँ छैक?”

“धार देखबाक मोन करैत अछि।”

हमसभ मंदिर अबैत काल लोकसभकेँ एहि विषयक जनतब देबाक आग्रह करैत रहलिऐक। मुदा ककरोसँ स्पष्ट जानकारी नहि भेटए। सोचलहुँ जे पहिने दर्शन कए ली। तकर बाद देखल जेतैक।भगवतीक दर्शन केलाक बाद पंडितजीकेँ दक्षिणा देबाक समय छल। हम एक सए टाका जेबीसँ निकालि रहल छलहुँ कि ओ बजलाह-

“एक सए टाका तँ अदना-पदना दैत छैक। अपने तँ,,।”

“हमरा अदने बुझू।”-से कहि हुनका एकसए टाका दए हमसभ मंदिरसँ आगू बढ़ि गेलहुँ।पंडितोजी कोनो आन ग्राहकक फिराकमे चलि गेलाह।कम सँ कम पुरीक मंदिरमे महिला पुजारी जकाँ गारि पढ़ैत नहि देखेलाह। भगवती मंदिरक बाहर छोट-छोट छागरसभ मेमीआइत छल। ओकरासभकेँ स्नान करा कए वलिप्रदानक लेल आनल गेल छल। एहन क्रूड़ता माता कोना बरदास करैत छथि?ओ सभ मिमिआइत रहल।संभवतः कहि रहल छल-

“हे माते! हमर रक्षा करू। ई राक्षससभ हमर हत्या कए देत।”

“कतेक अफसोचक बात अछि जे जाहि जगदंबाक हमसभ अपन आ शृष्टिक कल्याणक लेल प्रार्थना करैत रहैत छी,तिनके प्रसन्न करबाक लेल हुनके एकटा संतानक वलिप्रदान करैत छी। ई कुप्रथा तुरंत बंद हेबाक चाही।विद्वान लोकनिकेँ एकर विरुद्ध अबाज उठेबाक चाही।”

हम इएहसभ सोचैत रहि गेलहुँ। कहि नहि केओ एहिपर ध्यान दए सकताह की नहि?भगवतीक दर्शनक बाद हमसभ बाहर भेलहुँ ।भूख लागि गेल रहए। बगलेमे कैकटा जलखैक दोकानसभ देखाएल। बहुत कम दाममे गरम-गरम जलखै केलहुँ।

 हमसभ आब कालीदासक स्मृतिशेष तकबामे लागि गेल रही।मुदा ओहिठाम उपस्थित केओ व्यक्ति स्पष्ट नहि कहि पाबथि। मिथिलाक एहन प्रसिद्ध तीर्थ जे कालीदास सन विद्वानसँ सेहो जुड़ल होअए ततए कोनो गाइड,किंवा सुयोग्य व्यक्तिक अभाव बुझाएल। अंततोगत्वा हम अपन भातिज,चंदनकेँ फोन केलिअनि। ओ वाहनचालककेँ आवश्यक जनतब देलखिन।तकर बादे हमसभ कालीदास स्मारक कालेजसँ सटले ओहि धारकेँ देखलहुँ ।कहाँ दनि कालीदास ओही धारकेँ हेलि कए भगवतीकेँ करिखा लगबैत रहथि कि ओ हुनका रोकलखिन आ अपेक्षित वरदानो देलखिन।तकर बाद कालीदास रातिभरिमे पुस्तकालयमे राखलसभटा किताब उन्टा गेलाह आ से सभ हुनका कंठस्थ होइत गेलनि। कालीदास संगे भेल ई घटना हम बच्चेसँ सुनैत आबि रहल छी। मुदा एकर प्रमाणिकतापर तँ शोधकर्ते किछु कहि सकैत छथि। जे से।एतेक महत्वपूर्ण पर्यटनस्थलमे जे प्रसिद्ध तीर्थो अछि,उचित सुविधाक अखनहु बहुत अभाव अछि।

सामनेमे कालीदास स्मारक महाविद्यालय,उच्चैठक भवन देखाएल। हम एतए अबितहि थोड़े काल मौन भए गेलहुँ। एही कालेजमे हमर पितिऔत आ अभिन्न मित्र लालबच्चा(डाक्टर विष्णुकान्त मिश्र)  रसायन शास्त्रक विभागाध्यक्ष छलाह। सेवामे रहितहि हुनकर मृत्यु भए गेलनि। बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ। एक-दूटा फोटो खिचलहुँ।फेर कारपर बैसलहुँ  गाम वापस बिदा भए गेलहुँ।

क्रमशः

रबीन्द्र नारायण मिश्र

९।३।२०२५









 

 

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

मधुबनी सहर

मधुबनी सहर

मधुबनी हमरासभक गामसँ पन्द्रह किलोमीटरपर अवस्थित अछि। हम बच्चेसँ एहि ठाम अबैत-जाइत रहलहुँ।हमरसभक मैट्रिकक परीक्षा केन्द्र मधुबनी वाटसन इसकूलमे छल।ओहूसँ पहिने कैक बेर असगरे आ बेसीकाल बाबूक संगे मधुबनी आएल रही। बाबूक संगे मधुबनी आबी तँ ओ मधुर जरूर खुआबथि।किछु-किछु आर सामानसभ कीनल जाइत।मधुबनीक चर्च करैत ओहि समयमे ओतए होइत सर्कसक ध्यान आबि जाइत अछि।सर्कसक टार्चलाइट हमसभ गामेपर सँ देखी आ मोनमे उत्सुकता बढ़ि जाए जे ई छै की?सर्कस की होइत छैक?केना देखल जाए? एक बेर हम बाबूक संगे सर्कस देखबो केलहुँ।तरह-तरहक खेलसभ,जंगली जानबरसभ देखबामे आएल।एकटा बड़कीटा बाघ सेहो पिंजरामे देखाएल छल।हम अखन धरि ओहि दृश्यसभकेँ बिसरि नहि सकलहुँ अछि।तहिना एक बेर मधुबनीक मिथिला टाकीजमे संपूर्ण रामायण सीनेमा लागल छल। गामक -गाम ओहि सीनेमा देखबाक लेल उलटि गेल रहए। मुदा हम ओ सीनेमा नहि देखि सकल रही।मधुबनीक स्मृतिसँ जुड़ल बहुत रास बात सभ अछि जकर चर्चा हम आन ठाम कइए चुकल छी।

एक बेर फेर हम मधुबनी सहरमे आबि चुकल छी। अपन मित्र श्रीनारायणजीक संगे हुनके घरक भूतलमे रहि रहल छी। एहिठाम रहबाक लेल जरुरी सभटा सामान आनलाइन कीनि चुकल छी। काजबाली,भनसिआ,दूध देनिहार सभक व्यवस्था श्रीनारायणजी पहिनेसँ कए देने छथि।तेँ एहिठाम रहबामे कोनो दिक्कतिक प्रश्ने  नहि उठैत अछि।बहुत रास सामानसभ घरेसँ फोनपर श्रीनारायणजी लिखा देलखिन आ थोड़े कालक बाद सभटा सामान रिक्सापर घर पहुँचा देलक।ओकरा फोनपेपर भूगतान कए देलिऐक। दिल्ली,नोएडा जकाँ एहिठाम बिगबास्केट,ब्लिंकइट,जेप्टोसन त्वरित सामान पहुँचाबए बला व्यवस्था भने नहि होइक,मुदा घरे बैसल सामान एतहु आबि जाइत अछि। फेर एमजोन,फ्लिपकार्ट सेहो एहि ठाम उपलब्ध अछि। बहुत रास सामान हम आनलाइन कीनलहुँ अछि। पानि पीबाक लेल बिसलेरी सेहो एहिठाम भेटि जाइत अछि। पाँच-पाँच लीटरक बोतलसभ प्रचूर मात्रामे  कीनि कए राखि लैत छी। गाम लए जेबाक लेल सेहो पानिक बोतलक जोगार एमजोनक मारफत भए जाइत अछि। कहब जे पानि किएक कीनैत छी? बात तँ सही ,मुदा स्वास्थ्यक ध्यान रखैत से करब उचित बुझाइत अछि। एक दिन रातिमे बहुत रद्द भेल,जखन कि किछु अदन-कदन नहि खेने रही। तखन सोचबामे आएल जे पानि बदलबाक कारण ई उकबा भेल होएत। ओना गामोपर नवका चापाकलक जोगार भेल अछि जे करीब चारि सए फीट नीचाँ धरि धसाओल गेल अछि। ऊपरमे पानि भेटबे नहि केलैक। निश्चय ई चिंताजनक स्थिति तँ अछिए।पानि एतेक नीचाँ किएक चलि गेल? असलमे पोखरि-इनारसभ सुखा गेल,किंवा नष्ट भए गेल।जल संरक्षणक ई नैसर्गिक  पुरान तरीका आब रहल नहि। ऊपरसँ दिन-राति गृह निर्माण होइत रहैत अछि।ताहूसँ जलक स्तर नीचाँ जा सकैत अछि। आब बहुत गोटे समरसीभल गड़बा लेने छथि। देखा चाही कतेक दिन धरि ओहो चलि सकत।दू-तीन दिन मधुबनी बजारसँ किछु-किछु सामानसभ अबैत रहलाक बाद मधुबनी सहरमे हमरा लोकनिक गृहस्थी आब व्यवस्थित भए चुकल ।

मधुबनी सहरमे अखनो किछि विशेषता देखाएल। जेना एहि ठाम तरकारीसभमे गजब स्वाद अछि। भांटा,सजमनि,कदीमा,ओल,खम्हाउर सभ अद्भुत स्वादिष्ट। मुदा कोबी सभक रंग-ढंग बदलल-बदलल बुझाएल। छोटका फुलकोबीसभ नहि देखाएल।ओना गिलशनक तरकारी बजार तरकारीसँ भरल रहैत अछि।सहरमे केकटा प्रतिष्ठित दोकानसभ सेहो अछि।मुदा अहाँकेँ जनतब हेबाक चाही जे कोन वस्तुक कोन दोकान नीक अछि।ओना अनचोके यदि कोनो दोकानमे चलि जाएब तखन से बात नहि बुझाएत।किछु मौलसभ सेहो खुजि गेल अछि।होटलसभ सेहो उपलब्ध अछि जे एसीयुक्त रूमसभ सुलभ करबैत छथि।

मधुबनीमे  गामोमे बेसीकाल लाउडस्पीकर बजिते रहैत अछि।ककरो कोनो कनीकोटा उत्सव करबाक हेतैक तँ लाउडस्पीकर जरूर लगा देत।सत्यनारयण भगवानक पूजा होअए,बिआह,उपनयन,मूड़न किछु होअए लाउडस्पीकर बजबे करत।अहाँकेँ जे हेबाक अछि से होअए।ओना एहिठामक लोकसभ एहन ध्वनि प्रदूषणक अभ्यस्त भए चुकल बुझाइत छथि। हम जखन मैट्रिकक परीक्षा देबए सन् ‍१९६७मे मधुबनी आएल रही तखनहु इएह हाल रहैक।

 मधुबनीसँ अड़ेर डीह टोल जाएब-आएब आब बहुत आसान भए गेल अछि। जखन चाही टेकर,बस सभ सुलभ अछि। हमर डेरासँ बस स्टेंड(गंगा सागर लग)  बीस-तीस टाकामे चलि जा सकैत छी। तकर बाद ओहि ठामसँ बेनीपट्टी जाए बला कैकटा बस खुजैत अछि।अन्यथा मिथिला टाकीजसँ सटले अड़ेर गेनिहार टेकरसभक लाइन लागल रहैत अछि।किशोरी लाल चौकपर चलि जाउ तँ आर नीक,कारण बीचक जामसँ बँचि सकैत छी।मधुबनीमे जाम ओहिना लगैत अछि जेना कोनो पहाड़ी नदीमे बाढ़ि आबि जाइत अछि।कखन जाम लागि जाएत तकर कोनो ठेकान नहि। सड़क दुबगली अतिक्रमण भेल अछि जकर हटाएब असंभव थिक।देखिते-देखिते आगूसँ रिक्सा पाछूसँ मोटर साइकिल बामा कातसँ ट्रेक्टर बीचमे फसल किछु यात्री तेहन विचित्र दृश्य बना दैत छथि जकर वर्णन करब मोसकिल।जामसँ निकलि गंतव्य धरि सुरक्षित पहुँचि जाएब अपनेक भाग्यपर निर्भर अछि।

मधुबनीक सीवर व्यवस्था आ स्वच्छताक चर्चा नहिए करब बेसी नीक।मधुबनी सहरमे सीवरक कोनो नीक व्यवस्था नहि अछि। यत्र-तत्र नालासँ सड़ल पानि  दुर्गंधित अपशिष्टसभ बहाइत देखि मोन घिना जाइत अछि। पोखरिसभ दुर्गंधसँ गन्हाइत रहैत अछि। गिलेशन बजारक मछहट्टा लग माछी भनभनाइत रहैत अछि। सामनेमे गुंड़क चक्की खुजले राखल देखाएत। ओएह माछीसभ उड़ि-उड़ि गुड़पर बैसैत अछि।की आमिष  की निरामिष?गुड़क दोकान बलाकेँ कहबो केलिऐक-

“एना उघारल गुड़ किएक रखैत छी?किएक ने एकरा उजरा पन्नीसँ झाँपि दैत छिऐक?”

ओ तुरंत उग्र होइत बाजल-

“की बात करैत छी?ई मधुबनी छैक?भीतर राखि देबैक तँ बिकेबो करत? अहाँक लेबाक होअए तँ भीतरेसँ निकालि देब।मुदा एना नहि बाजू।”

मधुबनीमे एकटा विचित्र बात ई देखबामे आबि रहल अछि जे स्थानीय विक्रेतासभ जेना झगड़ा करबाक लेल तैयार बैसल होअए,आतुर होअए।यदि एकटा बात मुँहसँ निकलि गेल,किंवा किछु प्रश्न पुछि लेलहुँ  तँ आगू भगवाने मालिक।जेना तरकारी लेबाक काल हम कहलिऐक-

“दढ़ कदीमामे सँ काटि कए दिअ।”

“जते गोटे आएत सभ कहैत जाएत जे दढ़ कदीमा काटि कए दिअ।तखन तँ हम बेचि लेलहुँ। एक सेर -आध सेर लेब कि नहि लेब ,मुदा फरमाइस करैत जा रहल छी।”

एहि तरहेँ तरह-तरहक बातसभ ओ बाजए लागल। ओहि ठाम ठाढ़ भेल दूटा ग्राहक सेहो अबाक देखैत रहि गेलाह।  ओ सभ संभवतः भोज करबाक लेल कदीमा आ ओल एकट्ठे लेबाक लेल तत्पर छलाह,मुदा दोकानदारक बजबाक तरीकासँ छगुन्तामे देखेलाह।

एकदिन काजसँ कचहरी गेल रही।एकटा पुरान रजिष्ट्रीक कागजकेँ साफ-साफ  टाइप करेबाक रहए जाहिसँ ओकरा पढ़ल जा सकए। पता लगबैत-लगबैत ओकालतिखानाक पाछू बैसल टंकक लग पहुँचलहुँ। ओ पचकोसीक एकटा बहुत प्रतिष्टित गामक छथि। बएस पचहत्तरि,देखबामे शुभ्र। हम हुनका ओ कागज देखए देलिअनि। ओहिमे हाथसँ लिखल सातटा पन्ना छलैक।तकरा टाइप करबाक लेल ओ सात सए रूपया मंगलनि। फेर अपने छओ सए कहलनि आ बात पक्का भए गेल। ओ दोसर दिन बारह बजे टाइप कए देताह।हम दोसर दिन भेने हुनकासँ ओ कागज लेबए गेलहुँ। ओ नाम पुछलनि आ  टाइप कएल कागज निकालि कए दए देलनि। हम ओहि कागजकेँ ध्यानसँ देखैत छी। ओहिमे अपूर्णता बुझाएल।पाछूक दू पृष्ठ टाइप नहि कएल गेल छल। हम हुनका कहलिअनि-

“एहिमे तँ दूटा पन्ना नहि छैक।”

ओ मुँह बिचकबैत बजलाह-“एहिना होइत छैक।कोनो कागज देखि लिऔ।एहन कागजसभमे पछिला पन्नासभ टाइप नहि कएल जाइत छैक।”

“मुदा हम तँ अहाँकेँ पूरा कागज टाइप करए कहने रही।”

“की जाहिल जकाँ बात कए रहल छी। लेबाक होअए तँ लिअ नहि तँ छोड़ि दिऔ।”आर की की बजैत रहि गेलाह।हम हुनकर शब्दक चयनपर बहुत आपत्ति केलिअनि।कहबो केलिअनि जे अहाँ अपन गामक नाम घिना रहल छी। सए-दू सए टाकाक लेल एहन स्तरहीन बात कए रहल छी।लगेमे ठाढ़ दूटा मुसलमान जे उर्दू भाषा जनैत छलाह,सेहो आपत्ति केलकनि । मुदा हुनका लेखे धनसन।ओ टाका धेलाह आ निश्चिन्त भाओसँ अपन काजमे लागि गेलाह।हम हुनका कतबो बुझेबाक प्रयास केलहुँ,सभ व्यर्थ। हम माथ पकड़ने आगू बढ़ि रहल छलहुँ कि दिल्लीसँ श्री कामेश्वर चौधरीजीक फोन आएल।हुनका संगे गप्प करैत मोन हल्लुक भेल।संयोगसँ हमर मोबाइल फोन श्रीनारायणजीकेँ लागि गेल रहनि  ओ ओहि आदमीक संग हमर समस्त वार्तालाप सुनैत रहि गेल रहथि।साँझमे जखन हम वापस डेरापर अएलहुँ तखन ओ सभटा गप्प बुझलनि। नहि कहि सकैत छी जे कचहरीमे भेल ओहि दुखद अनुभवकेँ बिसरबामे कतेक मोसकिल भेल छल। मोनमे बेर-बेर होइत छल-

“सएह कहू,केहन भए गेल अपन सहर अपन गाम-घर?”






गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

यात्रा गामक

 

 रहिका बड़ पुरान चौक अछि।

कार तीव्र गतिसँ आगू बढ़ल जा रहल छल। सड़कक दुनू दिस हरियर कंचन खेत-पथारक अद्भुत दृश्य देखबामे आबि रहल छल। सरसौक पीयर-पीयर फूल मनमोहक लागि रहल छल। हबाइ अड्डासँ कनीके आगू बढ़लापर आधुनिक तरीकाक फ्लैटसभ देखबामे आएल।बादमे तँ एहने फ्लैटसभ मधुबनी-सौराठ रोडपर सेहो देखबामे आएल। ग्रामीण क्षेत्रो मे बास योग्य जमीन बहुत महग हेबाक कारण फ्लैट संस्कृतिके बढ़ब स्वाभाविक अछि।सी एम कालेज दरभंगामे पढ़बाक समयमे आ बादमे दरभंगामे टेलीफोन इन्सपेक्टरक नौकरीक क्रममे दरभंगा-गाम आएब-जाएब लागले रहैत छल। बेसी काल रहिका आबि दरभंगाक बस पकड़ैत छलहुँ। बसौली,केवटी,दरिमा,खिरमा,  हबाइ अड्डा होइत बस दरभंगा स्टैंड पहुँचैत छल। ओहि समयमे दरभंगा हबाइ अड्डा वायुसेनाक अधीन छल। ओतए नागरिक सेवा नहि होइत छल। हबाइ अड्डापर कारी-उज्जर रंगक एकटा झंडा फहराइत रहैत छल जे बसे मे सँ देखल जा सकैत छल।

कपिलेश्वर होइत हमसभ आब रहिका चौकपर पहुँचि गेल रही। पहिने जखन हम दिल्लीसँ गाम आबी तखन रहिका चौक जस-के-तस देखाइत छल। कोनो परिवर्तन नहि। ओएह गनल-गुथल दोकानसभ। ओतहि एकटा दोकानपर किछु मैथिलीक किताबसभ भेटि जाइत छल।मुदा एहि बेर बहुत परिवर्तन बुझाएल।चारू कात अनेक दोकानसभ पसरल छल।बीच चौराहापर एकटा स्तंभ बनल अछि।हमसभ ओतहि सुधाक दोकानसँ एक किलो माने चारिटा पाकेट पेरा कीनलहुँ आ  गाम दिस बढ़ि गेलहुँ।

रहिका-सतलखाक बीचमे एकटा बहुत पुरान धार अछि। ओतहि जखन हमसभ बच्चा रही तँ एकटा बस उनटि गेल रहैक। हमसभ गामसँ आबि कए ओ दृश्य देखने रही। अखनहु जखन हम ओहिठामसँ गुजरैत छी तँ ओ घटना मोन पड़ि जाइत अछि।सतलखासँ कनीके आगू बढ़लापर लकसैर टोल अबैत अछि। ओहिठाम एकटा कनझरनी रहैत छलि। हमसभ जखन बच्चा रही तखन ओकर बेस चला-चलती रहैक। जकरा ककरो कान,माथ दुखाइत,से ओकरासँ झड़ेबाक लेल जाइत छल।एक बेर हमहूँ बच्चामे ककरो संगे ओकरा ओहिठाम गेल रही। ओ नाक पकड़ि कए किछु मंत्र पढ़ैत छलि  आ संबंधित व्यक्तिक नाकसँ पिलुआ झड़ए लगैत छल।नीचाँमे पिलुआक पथार लागि जाइत छल। रोगी एहि     दृश्यकेँ देखि बहुत आश्वस्त होइत छल जे चलू , एतेक रास पिलुआ नाकसँ बाहर भए गेल। आब तँ चेनसँ रहब,दर्द नहि होएत। लोक नकझरनीकेँ एहि सेवाक बदलामे किछु चाउर,किंवा पाइ दैत छल,नहि तँ उधारिओ राखि लैत छल।बादमे ओ गाम जा कए बकिऔता वसूली करैत छलि।हमरा जनैत सभटा ओकर मात्र हाथक सफाइ छल।कोनो मनुक्खक नाकसँ एतेक रास पिलुआ यदि झरितए तखन ओ जीबित रहितए से संभव नहि बुझा रहल अछि।जे होइ,मुदा ओहि समयमे ओ बहुत प्रसिद्ध छलि आ ओकरा ओहिठाम कारणीसभक पाँति लागल रहैत छल।

सतलखा लकसैर टोलसँ जुड़ल छथि प्रोफसर यशोधर झाजी। हुनका मैथिलीमे साहित्य अकादमीक प्रथम पुरस्कार हुनकर पोथी’ ‍मिथिला वैभव’ लेल भेटल छल। ओ हमर पितियौत बहिनक ससुर छलाह । जखन हुनका पुरस्कार भेटल रहनि तँ ओ किछु दिनक बाद अपने हाथे मिथिला वैभव पोथी हमर पिताकेँ देने रहथिन। हम ओहि समय मैट्रिकमे रही। ओहि किताबकेँ पढ़बाक प्रयास केने रही। ओहिमे बेसी दर्शनक चर्चा बुझाएल। गाम जाइत काल हुनकर डीह देखाएल। ओहिपर एकटा पक्का मकान बनल अछि जाहिमे निरंतर ताला लागल रहैत अछि। ताला लागल एहन मकानक गामक-गाम भरमार भए गेल अछि।हम ओहि मकान दिस बड़ी काल धरि देखैत रहि गेलहुँ। ओहि डीहक भूतकालक दृश्य मोन पड़ि गेल।हम इएहसभ सोचिए रहल छलहुँ कि कार आगू बढ़ि गेल।



रविवार, 9 फ़रवरी 2025

यात्रा गामक

 

यात्रा गामक

 

मास दिनसँ पहिने दरभंगाक रेल टिकट कटा लेने रही। दुनू बेकतीक नीचाँक सीट भेटि गेल रहए। आब समय लगीच आबि रहल छल। अचानक पटनामे विद्यार्थीसभक आन्दोलन शुरू भेल। लोकसभ रस्ता जाम करए लागल। ट्रेन लाइनपर धरना प्रारंभ भेल। बस सभमे आगि फुकि देल गेल। एकटा नेता अनशनपर सेहो बैसि गेलाह। उपरसँ मौसम सेहो बेदरंग होमए लागल।

“एहनमे ट्रेनसँ कोना जा सकब?”-ई प्रश्न मोनमे घुमि रहल छल। ऊपरसँ हुनकर ठेहुनमे सिकाइत से रहिते छनि। एक प्लेटफार्मसँ दोसरपर गेनाइ पराभव।

“तखन?”

बहुत सोच-विचार कए सोलह जनवरीक इन्डिगोक हबाइ जहाजमे दुनू बेकतीक टिकट लए लेलहुँ। भेल जे भने कनी खर्चा बढ़ि जाएत,मुदा आरामसँ जाएब। समयो कम लागत।जहाज दू बाजि कए दस मिनटपर उड़तैक आ चारि बजे दरभंगा पहुँचि जाएत। बहुत सही समयमे गाम पहुँचि जाएब।

आब यात्राक समय लगीच आबि रहल छल। जरूरी चीज छुटि नहि जाए तेँ पहिने ओकरासभके बैगमे रखनाइ शुरू कए देलहुँ। किछु किताब,जरूरी दबाइसभ,अनेक प्रकारक कागजात जकर प्रयोजन होइत,राखि लेलहुँ। हमर श्रीमतीजी दूटा बड़का बैगमे सामानसभ भरि लेलनि।हैंडबैगक सामानसभ सेहो राखि देल गेल। लैपटाप तँ जेबेक छैक।ओहीमे गढ़ल जेतेक नव-नव रचना। मधुबनीमे रहबाक जोगार पहिनेसँ भए गेल अछि।असलमे कार्यक्रम बनलाक बाद हम अपन मित्रश्रीनारायणजीकेँ फोन केने रहिअनि। हुनका अपन मंतव्य कहलिअनि जे छओ मासक लेल हमरा मधुबनीमे मकान किरायापर चाही। ओ सुनि लेलथि। तकर दू घंटाक बाद ओ फोन केलथि-

“हमरमकनाक नीचाँ बला भाग खाली अछि। अहाँकेँ पसिंद होअए तँ ओतहि रहि जाउ।”

“एहिसँ नीक की भए सकैत अछि।”

बात पक्का भए गेल। हमर मधुबनी आवासक समस्या देखिते-देखिते समाधान भए गेल। श्रीनारायणजीक ओहिठाम रहलासँ सभटा समाधान अपने होइत रहत। कारण मधुबनीमे ओ पैंतीस सालसँ बेसीए समयसँ रहि रहल छथि,बहुत प्रतिष्ठित छथि आ अपन लोक तँ छथिहे। हुनकर जतेक प्रशंसा कएल जाए से कम पड़त।हुनका बारेमे बहुत बात हम पहिने लिखि चुकल छी।तेँ पुनरावृत्ति नहि होइ,से सोचि ओकरासभकेँ दोहारा नहि रहल छी।

समय बितैत देरी नहि होइत छैक। देखिते-देखिते सोलह जनबरी लगीच आबि गेल। दू दिन पहिनेसँ हमसभ अपन बैगमे सामानसभ राखि रहल छलहुँ।कागज -पत्र सभ सेहो राखि लेलहुँ। हबाइ जहाजक चेकिन आनलाइन कए लेलहुँ। सोलह जनबरीक हमसभ दस बजे टैक्सीसँ इन्दिरा गांधी हबाइ अड्डाक टर्मीनल ‍१डी लेल बिदा भए गेलहुँ। हबाइ अड्डा पहुँचलाक एक घंटाक भीतरे हमरा लोकनिक सभ काज संपन्न भए गेल छल।आब निश्चिन्तसँ गेट नंबर बारहपर प्रतीक्षा कए रहल छलहुँ बोर्डिंगक घोषणाक कि ह्वात्सअप पर एकटा समाद आएल।समाद कि छल  बुझू जे एकटा बम छल। हमरा लोकनिक समस्त योजनापर तुषारापात भए गेल छल। दिनमे दू बाजि कए दस मिनटपर उड़ए बला इन्डिगोक बिमान रद्द भए चुकल छल।कारण?कहाँ दनि दरभंगा हबाइ अड्डापर  मौसम जहाजक उतरबाक अनुकूल नहि छल। यात्रीसभ बहुत परेसान भए गेल रहथि,तनाओमे अर-बर बाजि रहल रहथि।यात्री इन्डिगोक महिला अधिकारीक संगे दुर्व्यवहार करैत देखल गेलथि।दू-तीनटा यात्री तँ भयाओन हंगामा करैत रहलाह।ओही समयमे हम अपन ग्रामीण आदरणीय श्री अनिला झाजीकेँ पटना फोन केलिअनि।कहलिअनि-

“हबाइ जहाज रद्द भए गेल।”

से जानि ओहो चिंतित भेलाह। मुदा उपाय की?

यात्री लोकनक द्वारा हंगामा बढ़ैत देखि इन्डिगोक अधिकारी लोकनि सभ यात्रीकेँ गेट नंबर ३२पर चलबाक लेल कहलथि। हम दुनू बेकती भारी हथझोरा उठओने ओहि गेटपर पहुँचलहुँ। ओतहु हंगामा होइते रहल,मुदा समाधान किछु नहि। बड़ी कालक बाद यात्री लोकनिकेँ प्रस्थान गेटपर बस द्वारा पहुँचा देल गेल। ओतहु ओहिना अव्यवस्था पसरल छल। यात्री लोकनि बेरा-बेरी खिड़कीपर अपन टिकट रद्द करा रहल छलाह। हमहूँ अपन टिकट रद्द करओलहुँ ,कारण कोनो दोसर नीक विकल्प नहि छल। हमरा लोकनि साँझमे एयर इन्डिआक जहाजसँ पटना जा सकैत छलहुँ। मुदा ओहूठाम जा कए राति भरि होटलमे रहए पड़ैत आ भोर भेने टैक्सी वा बससँ मधुबनी बिदा होइतहुँ। खर्च आ परेसानी दुनू होइत। तेँ हमसभ बहुत सोच-विचारक बाद अपन घर वापस आबि गेलहुँ। घर पहुँचलाक बाद हमर पोता-पोतीक प्रसन्नता देखैत बनैत छल। हमर पोता बाजल-

“दादी हलुआ आनए गेल छलथि?”

हबाइ अड्डासँ ग्रेटर नोएडा स्तित अपन घर वापस अबैत-अबैत परसूक स्पाइजेटमे नव टिकट बुक भए गेल छल।मौसम विभागक पूर्वानुमानमे ओहिदिन दरभंगाक मौसम नीक देखा रहल छलैक। यद्यपि दिल्लीमे मौसम नीक नहि रहितैक।मुदा दरभंगाक मौसम नीक भेनाइ बेसी जरूरी छलैक कारण ओहिठामक हबाइ अड्डापर जहाजक उतरबाक लेल बेसी नीक सुविधा नहि छैक। यदि मौसम खराप भेल,किंवा राति भए गेल तखन ओहिठाम जहाज नहि उतरि सकैत अछि।

एक दिन  नीकसँ विश्राम कलाक बाद हम दुनू बेकती फेर भोरे सात बजे हबाइ अड्डा बिदा भेलहुँ। ओहिठाम चेकिन कालेमे फेर उल्ट-पुल्ट समाचार सुनबामे आबि रहल छल।

“दरभंगाक जहाज तँ रद्द भए जेतैक।”

“दरभंगाक मौसम बहुत खराप छैक।”

ई सभ बात सुनलाक बाद मोन उदास भए जाएब स्वाभाविक छल। कारण ट्रेनक टिकट रद्द कए हबाइ जहाजक महग टिकट सुविधेक ध्यानमे लेने रही। नहि सोचि सकलिऐक जे दरभंगाक हबाइ जहाज तँ कटही गाड़ीओसँ खराप साबित हएत। मुदा आब की उपाय छल? ट्रेनक टिकट रद्द करबा चुकल रही। हबाइ जहाजक टिकट दोबारा बना लेने रही। तखन भेल जे लिखल हेतैक से हेतैक।हमसभ चेकिनक बाद गेट संख्या पन्द्रहपर पहुँचि गेल रही। ओहिठाम चाह-पानक उत्तम प्रबंध छल।दरभंगा गेनिहार बहुत रास यात्रीसभ तरह-तरहक गुलंजरसभ छोड़ि रहल छलाह। हम श्रीमतीजीक लेल पनपिआइक जोगार केलहुँ।अपने तँ चूरा दही भोरे खा लेने रही। फेर अखबारक जोगार केलहुँ, निचेनसँ अखबार पढ़लहुँ। एतेक समय बीति गेलाक बादो हबाइ जहाज जेबाक अनिश्चितता बनले छल। संयोगसँ ओही समयमे हमर ग्रामीण डाक्टर सच्चिदानन्द झाजी पत्नी सहित ओतहि भेटि गेलाह। लगभग बाइस वर्षक बाद हुनका लोकनिसँ भेंट भए रहल छल। आरकेपुरमक हमरासभक डेरापर लगभग बाइस साल पूर्व  ओ सभ आएल रहथि। तकर बाद एतेक पैघ अंतरालक बाद ओ सभ भेटलाह।निश्चय ई बहुत आनन्ददायक घटना छल। आब की ?हमसभ भरि छाक गप्प-सप्प केलहुँ।

डाक्टर सच्चिदानन्द झा

डाक्टर सच्चिदानन्द झाजी हमर गौंआ छथि।नेनामे हमसभ बहुत लगीच रही। ओ हमरासँ एक किलास वरिष्ठ रहथि। बादमे ओ वाटसन इसकूल मधुबनी चलि गेलाह।हम एकतारा हाइ इसकूलमे नाम लिखओलहुँ।हमरासभक  मैट्रिकक परीक्षाक सेंटर वाटसन इसकूलमे रहए।ओहि समयमे ओ ओतए पढ़ैत रहथि।हमर दोसर गौँआ आ सहपाठी श्री आनन्दचन्द्रजी सेहो ओही इसकूलमे रहथि आ  हमर हाल-चाल लैत रहथि।

सच्चिदानन्दजीक पिता स्वर्गीय घूरन बाबू इलाकाक प्रतिष्ठित लोक छलाह। ओ विद्यानुरागी रहथि।हमरा जखन कखनहु देखितथि तँ बहुत उत्साहित करितथि।लोकसभक सामनेमे प्रशंसा करितथि।एहिसभसँ हमर मनोबल बढ़ैत छल।हम आर बेसी जोर-सोरसँ पढ़ाइमे लागि जाइत छलहुँ।हुनकर ज्येष्ठ पुत्र स्वर्गीय विश्वंभर झाजी ओहि समयमे समाजमे चर्चित आ प्रतिष्ठित व्यक्ति छलाह। हमरा मोन पड़ैत अछि जे गामक पुस्तकालयमे जखन कखनहु हम जइतहुँ तँ ओ किताब लेबाक लेल उत्साहित करितथि।आदरणीय स्वर्गीय विश्वंभर झाजी अपना समयक बहुत यशस्वी समाजसेवी छलाह। ओ गाममे कैकटा संस्था जेना खादी भंडार,पुस्तकालय चलबैत छलाह,ओकर संस्थापक छलाह। खादी भंडारसँ तँ बहुत रास गरीबसभक गुजर होइत छल।ओ तत्कालीन राजनीतिमे सेहो दखल रखैत छलाह आ निरंतर पटना अबैत-जाइत रहैत छलाह।कंग्रेस पार्टीमे हुनकर धाख छलनि।अफसोचक बाद अछि जे बहुत कम बएसमे ओ स्वर्गीय भए गेलाह।हुनकर असमय मृत्युसँ लोकसभ बहुत दुखी भेल रहथि।ओहि समयमे हम गामे मे रही।अखन धरि हमरा ओ दृश्य मोन पड़ैत रहैत अछि  आ हम ओहि दुखद प्रसंगक  स्मरण कए मौन भए जाइत छी।एहि घटनासँ समाजक बहुत क्षति भेल छल।हुनकर बाद हुनकर चलाओल संस्थासभमे ओ जान नहि रहल ।क्रमशः ओ सभ बंद भए गेल।

डाक्टर सच्चिदानन्द झाजी वाल्यावस्थामे गाममे रहलापर हमर बाबूसँ संपर्कमे रहैत छलाह।पुस्तकालयक सामनेमे सोसाइटी आफिसमे ओ अबैत-जाइत रहैत छलाह।हम बेसी काल ओहीठाम पढ़ाइ करैत छलहुँ आ हुनकासँ ओतहि भेंट होइत छल।नेनाक हुनका संगे बिताओल गेल अविस्मरणीय क्षणमे छल हुनका ओहिठाम जा कए ग्रामोफोन सुनब। ओहि समयमे गाममे दू-तीन गोटेक घरमे ग्रामोफोन छलनि। हुनको ओहि ठाम बड़का ग्रामोफोन छलनि। हम ओहि ठाम जाइ।ओ अपन ग्रामोफोनपर गीतक रेकर्ड चलाबथि आ हमसभ गीतक आनन्द उठाबी।

बादमे हम नौकरीक लेल दिल्ली चलि गेलहुँ। ओ डाक्टरी पेशामे लागि गेलाह आ अनेक उच्चस्थान प्रप्त केलाह। ओहि दिन दिल्ली हबाइ अड्डापर बहुत दिनक बाद हुनकासँ भेंट भेलापर अद्भुत आनन्द भेल।बहुत रास गप्प-सप्प भेल।हुनकर श्रीमतीजीक हमर श्रीमतीजीक सेहो गप्प भेलनि। कह नहि सकैत छी जे ओ समय कतेक आनन्दसँ बितल। ओ सभ द्वारकासँ तीर्थाटन कए वापस आबि रहल छलाह। मुम्बईसँ दरभंगा ट्रेनसँ वापस अएबाक छलनि। मुदा ट्रेन मौसमक खरापीक कारण रद्द भए गेल। ओ तकर बाद हबाइ जहाजसँ दिल्ली आएल रहथि आ दिल्लीसँ दरभंगाक लेल हबाइ जहाज पकड़बाक क्रममे प्रतीक्षा कए रहल छलाह।

ओही बीचमे यात्रीसभ हंगमा करए लागल।ओ सभ स्पाइस जेटक अधिकारीकेँ वारंबार आग्रह करथि जे दरभंगाक जहाज जेबाक चाही,ओतए मौसम ठीक छैक।तेँ जहाज रद्द करबाक कोनो औचित्य नहि छैक। मुदा ओ कहथि जे हुनका सूचनाक अनुसार दरभंगाक मौसम ठीक नहि अछि। जहाज उड़ब अनिश्चित अछि। एकटा यात्री कहथि जे ओएह हबाइ जहाज लेह गेलैक अछि। लेह जेबामे विलंब भेलैक तेँ दरभंगाक उड़ानमे देरी देखा रहल छैक।यदि ओ जहाज लेहसँ उड़ि कए दिल्ली वापस आबि जाएत,तखने दरभंगाक लेल उड़ि सकत,अन्यथा रद्द भए जाएत।सोचल जा सकैत अछि जे हमसभ कतेक परेसान भए गेल रहब होएब। मुदा कइए की सकैत छलहुँ?

दू घंटा विलंबक बाद अचानक हबाइ जहाजक बोर्डिंग शुरू भए गेल।यात्रीसभ पाँति लगा लेलनि।हुनकासभक प्रसन्नताक तँ अन्ते नहि छल।हमहूँ हुनका संगे सामान लेने आगू बढ़ि रहल छलहुँ।आब जहाजमे पैसितहुँ कि पता लागल जे सभसँ बेसी हंगामा केनिहार  यात्रीकेँ हबाइ जहाजमे प्रवेश नहि देल जा रहल छनि,हुनका बाहरे रोकि लेने छनि।चारि-पाँचटा मुस्टंड घेरि लेने छनि।हुनकर मुँह देखए बला छल। ओ बहुत उदास आ दुखी छलाह।बादमे पता लागल जे ओ घटी मानलथि। तखन हुनको हबाइ जहाजमे जेबाक अनुमति दए देल गेलनि।

एक घंटा बीस मिनटमे हमसभ दरभंगा हबाइ अड्डापर उतरि गेल छलहुँ। हम कनी पाछू भए गेल रही। सामान लए जखन बाहर भेलहुँ तँ डाक्टर सच्चिदानन्दजीकेँ बाहर होइत देखलिअनि।हमहूँसभ सामान लेलहुँ आ हबाइ अड्डाक निर्गम द्वारि दिस बढ़ि गेलहुँ।कहबाक काज नहि जे अचानक भेल हुनकासँ ई भेंट बहुत आनन्दायी छल,अविस्मरणीय छल।








(क्रमशः)

 

रबीन्द्र नारायण मिश्र