प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झा
पछिला कतेको सालसँ आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त
झाजीसँ हमरा संपर्क अछि।हम हुनका अपन कोनो पोथी पठओने रहिअनि। ओ ओहि पोथीकेँ तुरंत
पढ़ि हमरा फोन केलनि आ अपन सकारात्मक
प्रतिक्रिया देलनि। तकर बाद तँ हम हुनका अपन किताबसभ नियमित पठबति रहलिअनि। ओ ओकरा पढ़ि फोनपर अपन प्रतिक्रिया दैत
रहलाह।ताहि संगे बड़ी काल धरि गप्प-सप्प,हास्य-व्यंग होइत छल। ओ सदिखन प्रसन्न आ
आनन्दपूर्ण अवस्थामे रहैत छलाह। सभसँ प्रभावित करबाक बात तँ ई रहैत छल जे सभ तरहेँ
संपन्न आ एतेक वरिष्ठ रहितहु हुनकामे अहंक कनीको
लवलेश नहि रहैत छनि। हुनकर सहज आ सरल व्यवहारसँ के नहि प्रभावित भए
जाएत?स्वाभाविक छल जे हुनका प्रतिए हमर आदर बढ़ैत गेल।हुनकर बात-व्यवहार हमरा बहुत
आकृष्ट केलक ।हुनकर सकारात्मक रुखि आ उत्साहवर्धनसँ हमरा सृजनशील रहबाक प्रेरणो भेटैत रहल। हम जे निरंतर आ नियमित लिखैत रहलहुँ अछि ताहिमे हुनकर बहुत योगदान छनि।
ओ हमर पठाओल किताबसभ पढ़ैत रहलाह आ पढ़लाक
बाद अपन मंतव्य दैत रहलाह जे बहुत लाभकारी सिद्ध भेल।
हम मैथिलीमे लिखल अपन पोथीसभ
हुनके नहि,अपितु अनेक विद्वान,मैथिलीक प्रोफेसर ,लेखक,समीक्षक लोकनिकेँ पठबैत
रहलिअनि अछि। ओहिमे बहुत कम लोक छथि जे पार्सल पहुँचलापर पहुचनामो
देथि,पढ़बाक तकर बाद अपन प्रतिक्रिया
देबाक बात तँ छोड़ू। मुदा किछु गोटे एकर अपवादो छथि, जाहिमे आदरणीय प्रोफेसर
डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीक नाम हमरा दृष्टिमे औअलि अछि। कारण किछु गोटे शुरूमे जरूर
उत्साह देखओलनि,मुदा बादमे ओ हिलओलो,डोलओलोपर किछु नहि केलथि। मैथिली पाठक लोकनिक
मध्य एहन संवादहीनता निश्चित रूपसँ बहुत दुखद अछि। आखिर पोथी तँ पाठकेक लेल लिखल
जाइत अछि। यदि पाठक ओकरा पढ़थि,ओहिपर अपन मंतव्य स्पष्टता आ इमान्दारीसँ राखथि तखन
तँ बाते किछु आओर होइत। मुदा से अछि नहि। परिणाम अछि जे किछु लोक जे अंट-संट लिखि
दैत छथि आ जिनका किछु लोकक वरदहस्त प्राप्त छनि,सएह चलैत रहैत अछि।एहन परिस्थितिमे
साहित्यिक जगतमे खास कए मैथिलीमे इन्द्रकान्त बाबू सन लोकक उपस्थिति बहुत माने
रखैत अछि,बहुत आवश्यको अछि।
हमरे नहि अपितु अनेक नव,अज्ञात
रचनाकारकेँ उत्साहित करबाक लेल माननीय इन्द्रकान्त बाबू सभ दिन मोन राखल जेताह। हम
हुनकर एहि गुणक अनुशंसा,प्रशंसा अपन परिचित दूटा रचनाकार(कवि राज किशोर मिश्रजी आ
आदरणीय कामेश्वर चौधरीजीसँ केने रहिअनि। ओहो सभ हुनकर संपर्कमे अएलथि। हुनके सभक सेहो
बहुत नीक अनुभव भेलनि। ई अछि हुनकर उदार आ
जीवंत व्यक्तित्वक आभा जकर सानिध्यमे जे केओ गेलथि से निश्चित रूपसँ प्रभावित
भेलथि,आनन्द उठओलथि आ लाभान्वित भेलथि।
इन्द्रकान्त बाबू कोरोना कालक
समयमे २०२२मे दिल्ली आएल रहथि। ओ हमरा सूचितो केलनि,मुदा हमरा मोनमे कोरोनाक ततेक भय
छल जे हुनका लग जेबाक साहस नहि भेल।ओ मास दिन लगीचेमे नोएडामे रहि कए वापस पटना चलि
गेलथि ।हमरा बादमे एहि बातक बहुत अफसोच भेल रहए।
“भेंट करबाक चाहैत छल,जे
होइतैक,देखल जइतैक।”-मोनमे सोचाए। मुदा जानक डर मामुली नहि होइत अछि, से
भुक्तभोगीए कहि सकैत छथि। कोरोना तेहन आतंक पसारने छल जे सालक-साल संपूर्ण
विश्वकेँ हिला कए राखि देलक,हमर कोन कथा?
अपन नोएडा-दिल्ली प्रवासक समयमे
इन्द्रकान्त बाबू निरंतर संपर्कमे रहलाह। किछुओ नव बात होइतैक तँ अबस्से कहितथि।ओ
कहथि जे कोना हुनकर सोसाइटीमे बूढ़सभक मध्य
प्रसिद्ध भए गेल छथि,कोना ओ हुनका लोकनिकेँ अपन कविता पाठसँ प्रभावित
केलनि। अनेक तरहक समाचारसभ कहैत रहलथि। हुनकासँ भेंट नहि भेल,मुदा मोनमे ई निर्णय
भए गेल जे पटना जाए जतेक जल्दी संभव होएत हुनकासँ
अबस्स भेंट करबनि।
समय बीतैत गेल,मुदा पटना जेबाक
कार्यक्रम नहि बनि सकल। आखिर एहि बेरक ग्राम यात्राक बीचमे किछु दिनक लेल पटना
जेबाक कार्यक्रम बनओलहुँ।फगुआसँ पहिने १० मार्च २०२५ कए पटना पहुँचलहुँ। ओहिसँ एक
दिन पहिने इन्द्रकान्त बाबूक फोन आएल छल। हम अपन संभावित कार्यक्रमक बारेमे
कहलिअनि। ओ कहलाह-
“बहुत नीक समाचार देलहुँ। हमहूँ
बहुत उत्सुक छी,अपनेसँ भेंट करबाक लेल। मुदा एगारह तारीख कए हम एकटा उपनयनक क्रममे
बाबा वैद्यनाथ धाम जाएब आ बारह तारीख कए
लौटब।तकर बाद अबस्स भेंट भए सकत। ओना बारहो तारीख कए साँझक बाद भेंट भए सकत कारण
हम ताधरि लौटि गेल रहब। ”
सभ बातक ध्यानमे रखैत हम तेरह तारीख
कए हुनकासँ भेंट करबाक कार्यक्रम बनओलहुँ। ताहिसँ पूर्व हुनका फोन केलिअनि। ओ
एक-दू बजेक अएबाक आग्रह केलनि।हम दू बजे एकटा आटोसँ हुनकर डेरापर बिदा भेलहुँ। आटो चालक मुसलमान
छलाह,मुदा रहथि बहुत नीक। ओ इन्द्रकान्त बाबूक राजेन्द्र नगर,पटना स्थित घरक लगीच
धरि पहुँचा देलनि। मुदा तकर बाद हमसभ एमहर-ओमहर बौआए लगलहुँ।तकर कारण छल जे हमरा
हुनकर घरक सही ठेकाना नहि छल। ने हम हुनकासँ से पुछि सकलिअनि। हमरा लग हुनकर डाक
पता छलहे आ ओहि पतापर हम कैक बेर किताबसभ पठा चुकल छी। मुदा पार्सल आ मनुक्खमे फरक
होइत छैक। आसपासक रोडक जनतब नहि रहबाक कारण हम करीब घंटा भरि बौआइति रहि गेलहुँ।
एहि बीचमे हम हुनका अनेक बेर फोन केलिअनि। मुदा ओ फोन उठेबे नहि करथिन। फोनक घंटी
बजैत-बजैत बंद भए जाइक। हम हुनकर दोसर मोबाइल नंबरपर फोन केलहुँ,हुनकर दिल्ली
स्थित पुत्रक मोबाइलपर फोन केलहुँ। किछु आर गोटेकेँ सेहो फोन केलिअनि। मुदा सभ
प्रयास व्यर्थ साबित भेल। हम आब बहुत परेसान भए गेल रही। लगपासमे केओ हुनकर घरक
हुलिआ नहि बताबए। भेल जे आब वापस अपन डेरा लौटि जाइ कि एतबेमे हुनकर फोन आबि गेल।हुनकर
ध्यान मोबाइल फोनमे हमर अनेक मिसकालपर गेलनि।ओ स्वयं हमर पहुँचबामे भए रहल विलंबसँ चिंतित छलाह-
“रस्ता भुतला गेलिऐ की?”
“हमसभ लगीचे मे कतहु छी,मुदा
अहाँक घर नहि ताकि पाबि रहल छी।”
“हमरा अंदाज लागि गेल। भारतीजी
घंटा भरिसँ अहाँक प्रतीक्षा करैत-करैत चलि गेलाह। कोनो बात नहि।अहाँ फोन वाहन
चालककेँ दिऔक।”
हम फोन वाहन चलाककेँ दैत छी। ओ
रस्ताक सही जनतब हुनकासँ लेलक आ पाँच
मिनटक भीतरे हमरा अपन गंतव्य लग पहुँचा देलक।हम आटोसँ उतरैत छी तँ देखैत छी जे
इन्द्रकान्त बाबू स्वयं गंजी-धोती पहिरने सड़कक कातमे हमर स्वागतमे ठाढ़ छथि।
हुनकर बेचेनी स्पष्ट देखल जा सकैत छल। हम आटो बलाकेँ किराया दैत छी आ अपन सामानसभक संगे हुनका पाछू-पाछू बिदा भए
जाइत छी।सामनेमे रेलक आवागमन देखल जा सकैत छल।असलमे ओ स्थान राजेन्द्र नगरे रेल
टीसनक पछुआर थिक।हम सामान सहित हुनकर भूतल स्थित घरमे हुनके संगे पहुँचैत छी।
भूतलपर स्थित हुनकर
निवासपर पहुँचतहि हमरा पाग,डोपटा पहिरा कए
ओ स्वागत करैत छथि। हुनकर पौत्र तकर वीडियो बनबैत छथि,फोटो खिचैत छथि। तकर बाद ओ
अपन लिखित पुस्तकसभ दैत छथि। हमहूँ अपन नवीनतम उपन्यास,यज्ञसेनी,हुनका देलिअनि। सभ
घटनाक फोटो हुनकर खिचलथि,तकरासभकेँ बादमे हमरो मोबाइलपर पठा देलथि। कहि नहि सकैत छी
,कतेक अपनत्व भाओसँ ओ हमरा स्वागत केलनि। रसगुल्ला,गुलाब जामुन,पेरा,खजूर खाउ,जतेक
खाउ ,टेबुलपर राखल अछि। संगे हुनकर ओहूसँ बेसी मधुर व्यवहारसँ आनन्दक वर्षा भए रहल
छल। करीब दू घंटा हम ओतए रहलहुँ। ओही बीच कामेश्वर चौधरीजीक फोन दिल्लीसँ आबि
गेलनि। फोनपर भेल हुनकर वार्तालापपसँ सोनामे सुगंध लागि गेल। आब साँझ पड़ि रहल छल।
हम हुनकासँ आशीर्वाद लए डेरा वापस बिदा भेलहुँ। ओ फेर हमरा सड़क धरि अरिआति देलनि।
हुनकर विनम्रता आ सिनेहसँ हम अभिभूत छलहुँ। रस्ता भरि हुनकर ध्यान अबैत रहल।
फेसबुकपर हम आदरणीय प्रोफेसर
इन्द्रकान्त झाजीसँ भेंटक जनतब देलिऐक तँ अनेक
विद्वानलोकनिक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देखबामे आएल जाहिमे सँ किछु एहिठाम उद्धृत
कए रहल छी-
आदरणीय प्रोफेसर भीमनाथझा-
“भाग्यशाली
तँ अहाँ छीहे। तकर एक प्रमाण ईहो। 'मिथिलाक रवीन्द्र'सँ
सम्मानित हैब सामान्य बात नहि भैलै। ताहूमे एहि रंगदिवसपर...। हम तँ हिनका 'सर्वतंत्रस्वतंत्र'
बुझै छियनि, महामहोपाध्यायोसँ पैघ। भविष्यमे हमरो लोकनि
द' लोक कहत, जँ कहत तँ यैह जे ईहो
सभ 'इन्द्रकान्त युग'क
थिका।”
आदरणीय प्रोफेसर रमण झा
“बहुत -सुन्दर! आदरणीय
इन्द्रकान्त बाबू स्वयं विद्वान छथि आ विद्वानक सम्मान करए जनैत छथि-
विद्वानेव हि जानाति विद्वज्जन
परीश्रमम्।
न हि वन्ध्या विजानाति गर्भिणी
प्रसवव्यथाम्।।
दुनू साहित्यकारकेँ बधाइ आ
शुभकामना!”
आदरणीय विनोदानन्द झा
“आदरणीय इन्द्रकान्तजीक ई
विनम्रता सभकेँ भावुक कऽ दैत अछि। बधाइ।”
भेंट-घाँटक क्रममे आदरणीय
प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ हुनके रचित किछु कवितासभ सुनबाक सुअवसर भेटल। कविताक किछु
प्रमुख पाँति छल-
बूढ़ छी
बुढारी मे
उर्जावान छी
आँखि कान ठीक अछि
पढ़ै छी
लिखै छी
कवि सम्मेलनमे गरजै छी
हार्ट हमर अछि बड़ मजगूत
कते बूढाकेँ
हम मरैत देखने छी
हम डरै नहि छी
कन्हा दै छी
प्रसन्न रहै छी
हमरा ने कोनो बिमारी अछि
आइ काल्हि रह रहाँ
हाइब्लडप्रेसर
लो बल्डप्रेसर आ डाइबीटीज
लोक सब केँ तंग करैए
मुदा हमरासँ कोसो दूर रहैए
हम खूब प्रेमसँ पनतुआ रसगुल्ला
चाभैत रहैत छी
आनन्दक जीवन बितबै छी।
(हम बूढ़ छी पृष्ठ ६०)
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बूढ़ छी
बुढ़ारी जीवन
जीबैक सलुक
हम जानै छी,
धिया-पुताक
सब बात हम मानै छी
बंशी बजबै छी
बाँसक नहि
चैनक बंशी
जखन जे दैए
खाए लै छी
नहि दैए
लोटा भरि पानि
पीब लै छी
ढ़ेकार करै छी
ककरो विरोधमे
किछु नहि बाजै छी
हमर बिरोधमे बाजैए
सुनियो कए अन्ठबै छी
सुखमय जीवन जीबै छी
(हम बूढ़ छी, पृष्ठ ८८)
ऊपरोक्त पाँतिसभमे आदरणीय इन्द्रकान्त झाजीक जीवनमे संतुष्टि भाओ आ
वृद्धावस्थोमे जीवंतता बनओने रहबाक गूण स्पष्ट झलकैत अछि। जेहने सरस आ सार्थक
कवितासभ ओ लिखैत छथि,वस्तुतः तेहने आनन्दमय जीवन ओ जीबैत छथि। इएह कारण अछि जे
हुनकर कवितासभ पढ़ला,सुनलासँ जीवनमे उल्लास, उत्साह बढ़ैत अछि। जीवनक रहस्य
बुझबामे,गुणबामे सफल ई कवितासभ सरिपहु अद्भुत अछि। इएह सभ सोचैत हम पटनाक केन्द्र
सरकारक होलीडेहोम स्थित अपन डेरा दिस बिदा भए गेलहुँ।रस्ता भरि आ डेरापर पहुँचलाक
बादो बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ-
सही मानेमे जतबे महान,ततबे विनम्र ,सरल आ व्यवहार कुशल छथि ओ ।
रबीन्द्र नारायण मिश्र
१ -५-२०२५