मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

रविवार, 9 मार्च 2025

प्राणक भीख मगैत मिमिआइत छागर आ वलिप्रदान

 

प्राणक भीख मगैत मिमिआइत छागर आ वलिप्रदान

हम किछु दिन पूर्व उच्चैठ भगवतीक दर्शनक लेल गेल रही। मधुबनीसँ कारसँ भोरे उच्चैठ हम दुनू बेकती बिदा भेलहुँ। हम तँ कैक बेर उच्चैठ गेल छी। मुदा हमर श्रीमतीजी पहिल बेर ओतए जा रहल छलीह।अस्तु,हुनका बहुत दिनसँ ओतए जेबाक अभिलाषा छलनि जे आइ संभव भए रहल छल। असलमे बहुत दिन बाहर रहि गेलासँ अपना ओहिठामक बहुत रास तीर्थ  महत्वपूर्ण स्थानसभ देखबासँ छुटि गेल अछि जे आब बेरा-बेरी पूरा भए रहल अछि। एहि क्रममे हमसभ आइ उच्चैठ बिदा भेल छी।आब अड़ेर माने हमरसभक गाम आबि रहल अछि। दुबगली नव-नव मकान,नव-नव दोकान खुजि गेल अछि। अड़ेर थानासँ जेना-जेना आगू बढ़ब सड़कक काते-काते अनेक प्रकारक दोकानसभ देखबामे अबैत अछि जे अंततः धकजरीमे जा कए मिलि जाइत अछि।

आब हमसभ भदुली पहुँचि रहल छलहुँ। ओतए  पहुँचितहि पुरान बातसभ मोन पड़ि जाइत अछि।एहि ठाम हमर परिवारक खेत,कलम सभ छलनि। बेर-कुबेर हमहूँ ओहि ठाम जाइत छलहुँ। ओहिठाम भोजो खाइत छलहुँ। आब तँ ने ओ रामा ने ओ खटोला। कनीके आगू बढ़लापर धकजरी आबि जाइत अछि। ओहिठाम बामा कात  धकजरीमे लालबाबूक ड्योढ़ी देखाइत अछि जतए हुनकर पुत्र,नन्हकू बाबू कैक मंजिलक फ्लैटनुमा घर बनओने रहथि। ओहि समयमे हुनकर धाजा फहराइत छल। लालबाबू स्कूटरपर चलैत छलाह।कैक बेर ओ अड़ेर चौकपर ठाढ़ होइतथि।स्कूटरमे सिकार कएल बगेरीसभ रखने रहितथि। अड़ेर चौकपर पान खइतथि ,गप्पसप्प करितथि। हुनका देखि कए हमरा सन-सन कैकटा बच्चासभ सेहो जमा भए जाइत छल।बादमे जखन नन्हकू बाबूक समय अएलनि तखन ओहो बरोबरि देखैतथि। देखबामे अपूर्व सुंदर।माथपर लालठोप केने।हुनकर बड़ीटा परिवार छलनि। ओहि समयमे साम्यवादी किसान आन्दोलनमे ओ सभ बहुत दिक्कतिमे पड़ि गेल रहथि। हुनकर बहुत रास जमीनसभपर झंझटि होइत रहैत छलनि। ई सभ बात हमसभ गाममे सुनियैक।

धकजरीक बाद बेनीपट्टी आएल। बेनीपट्टी बहुत पहिने हमरा सभक थाना छल। बादमे हमरे गाममे थाना बनि गेल।बेनीपट्टीमे जमीन रजिष्ट्रीक पुरान कार्यालय अछि।कैक बेर हमहूँ बाबूक संगे ओतए गेल छी,मधुर खेने छी। ओतए बहुत रास दोकानसभ देखबामे आएल। कार आगू बढ़ैत गेल आ थोड़बे कालमे हमसभ उच्चैठ पहुँचि गेलहुँ।

उच्चैठमे शुरूएमे गेटे लग एक गोटे फूल,प्रसाद बेचि रहल छलाह।पुछलिअनि-

“कतेक दाम छैक?”

“छोटका बीस,बड़का साठि।”

“साठि बला दए दिऔक।”

ओ तर दए फुलडालीमे सभ किछु सड़िआबए लगलाह, ओहीक्रममे बजलाह-

“एक सए बला आर नीक छैक।”-से कहि फुलडाली पकड़ा देलनि।हम किछु बजितहु,बुझितहुँ ताहिसँ पहिने ओ अपन काज कए चुकल रहथि।साठि टकाक बदला दाम आब एक सए भए गेल छल। भोरुका पहर छलैक,भगवतीक पूजा करबाक रहए।तेहनमे मोनमे विक्षोभ उत्पन्न नहि बढ़बैत  हुनका एक सए दए आगू बढ़ि गेलहुँ। तकर बाद तँ एहन फूल-प्रसाद बेचनिहारक भीड़ लागल छल। हम पछताइ जे अनेरे शुरूएमे ई सभ कीनि लेलहुँ। मंदिर लग पहुँचैत-पहुँचैत एकटा पंडितजी भेटलाह-

“दर्शन करबैक?”

“हँ,हँ।”

“हमरा संगे चलू।हम सभटा नीकसँ करा देब।”

“टका कतेक लेबैक।”

“चलू ने। जे अपनेक श्रद्धा।जे मोन होअए से दए देबैक।”

हमसभ उच्चैठ भगवतीक मंदिरक बगले पोखरिमे जा कए पैर धोलहुँ।पोखरिक पानि तेहन छल जेकुरुर करबाक तँ प्रश्ने नहि छल? हमर श्रीमतीजी संगे रहथि। हुनका कालीदाससँ जुड़ल स्मृतिशेष देखबाक बहुत जिज्ञासा छहनि।

ओ एहि विषयक अनेक प्रश्न पुछि रहल छलीह-

“ओ स्थान कतए छैक?”

“ओ पुस्तकालय कहाँ छैक?”

“धार देखबाक मोन करैत अछि।”

हमसभ मंदिर अबैत काल लोकसभकेँ एहि विषयक जनतब देबाक आग्रह करैत रहलिऐक। मुदा ककरोसँ स्पष्ट जानकारी नहि भेटए। सोचलहुँ जे पहिने दर्शन कए ली। तकर बाद देखल जेतैक।भगवतीक दर्शन केलाक बाद पंडितजीकेँ दक्षिणा देबाक समय छल। हम एक सए टाका जेबीसँ निकालि रहल छलहुँ कि ओ बजलाह-

“एक सए टाका तँ अदना-पदना दैत छैक। अपने तँ,,।”

“हमरा अदने बुझू।”-से कहि हुनका एकसए टाका दए हमसभ मंदिरसँ आगू बढ़ि गेलहुँ।पंडितोजी कोनो आन ग्राहकक फिराकमे चलि गेलाह।कम सँ कम पुरीक मंदिरमे महिला पुजारी जकाँ गारि पढ़ैत नहि देखेलाह। भगवती मंदिरक बाहर छोट-छोट छागरसभ मेमीआइत छल। ओकरासभकेँ स्नान करा कए वलिप्रदानक लेल आनल गेल छल। एहन क्रूड़ता माता कोना बरदास करैत छथि?ओ सभ मिमिआइत रहल।संभवतः कहि रहल छल-

“हे माते! हमर रक्षा करू। ई राक्षससभ हमर हत्या कए देत।”

“कतेक अफसोचक बात अछि जे जाहि जगदंबाक हमसभ अपन आ शृष्टिक कल्याणक लेल प्रार्थना करैत रहैत छी,तिनके प्रसन्न करबाक लेल हुनके एकटा संतानक वलिप्रदान करैत छी। ई कुप्रथा तुरंत बंद हेबाक चाही।विद्वान लोकनिकेँ एकर विरुद्ध अबाज उठेबाक चाही।”

हम इएहसभ सोचैत रहि गेलहुँ। कहि नहि केओ एहिपर ध्यान दए सकताह की नहि?भगवतीक दर्शनक बाद हमसभ बाहर भेलहुँ ।भूख लागि गेल रहए। बगलेमे कैकटा जलखैक दोकानसभ देखाएल। बहुत कम दाममे गरम-गरम जलखै केलहुँ।

 हमसभ आब कालीदासक स्मृतिशेष तकबामे लागि गेल रही।मुदा ओहिठाम उपस्थित केओ व्यक्ति स्पष्ट नहि कहि पाबथि। मिथिलाक एहन प्रसिद्ध तीर्थ जे कालीदास सन विद्वानसँ सेहो जुड़ल होअए ततए कोनो गाइड,किंवा सुयोग्य व्यक्तिक अभाव बुझाएल। अंततोगत्वा हम अपन भातिज,चंदनकेँ फोन केलिअनि। ओ वाहनचालककेँ आवश्यक जनतब देलखिन।तकर बादे हमसभ कालीदास स्मारक कालेजसँ सटले ओहि धारकेँ देखलहुँ ।कहाँ दनि कालीदास ओही धारकेँ हेलि कए भगवतीकेँ करिखा लगबैत रहथि कि ओ हुनका रोकलखिन आ अपेक्षित वरदानो देलखिन।तकर बाद कालीदास रातिभरिमे पुस्तकालयमे राखलसभटा किताब उन्टा गेलाह आ से सभ हुनका कंठस्थ होइत गेलनि। कालीदास संगे भेल ई घटना हम बच्चेसँ सुनैत आबि रहल छी। मुदा एकर प्रमाणिकतापर तँ शोधकर्ते किछु कहि सकैत छथि। जे से।एतेक महत्वपूर्ण पर्यटनस्थलमे जे प्रसिद्ध तीर्थो अछि,उचित सुविधाक अखनहु बहुत अभाव अछि।

सामनेमे कालीदास स्मारक महाविद्यालय,उच्चैठक भवन देखाएल। हम एतए अबितहि थोड़े काल मौन भए गेलहुँ। एही कालेजमे हमर पितिऔत आ अभिन्न मित्र लालबच्चा(डाक्टर विष्णुकान्त मिश्र)  रसायन शास्त्रक विभागाध्यक्ष छलाह। सेवामे रहितहि हुनकर मृत्यु भए गेलनि। बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ। एक-दूटा फोटो खिचलहुँ।फेर कारपर बैसलहुँ  गाम वापस बिदा भए गेलहुँ।

क्रमशः

रबीन्द्र नारायण मिश्र

९।३।२०२५









 

 

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

मधुबनी सहर

मधुबनी सहर

मधुबनी हमरासभक गामसँ पन्द्रह किलोमीटरपर अवस्थित अछि। हम बच्चेसँ एहि ठाम अबैत-जाइत रहलहुँ।हमरसभक मैट्रिकक परीक्षा केन्द्र मधुबनी वाटसन इसकूलमे छल।ओहूसँ पहिने कैक बेर असगरे आ बेसीकाल बाबूक संगे मधुबनी आएल रही। बाबूक संगे मधुबनी आबी तँ ओ मधुर जरूर खुआबथि।किछु-किछु आर सामानसभ कीनल जाइत।मधुबनीक चर्च करैत ओहि समयमे ओतए होइत सर्कसक ध्यान आबि जाइत अछि।सर्कसक टार्चलाइट हमसभ गामेपर सँ देखी आ मोनमे उत्सुकता बढ़ि जाए जे ई छै की?सर्कस की होइत छैक?केना देखल जाए? एक बेर हम बाबूक संगे सर्कस देखबो केलहुँ।तरह-तरहक खेलसभ,जंगली जानबरसभ देखबामे आएल।एकटा बड़कीटा बाघ सेहो पिंजरामे देखाएल छल।हम अखन धरि ओहि दृश्यसभकेँ बिसरि नहि सकलहुँ अछि।तहिना एक बेर मधुबनीक मिथिला टाकीजमे संपूर्ण रामायण सीनेमा लागल छल। गामक -गाम ओहि सीनेमा देखबाक लेल उलटि गेल रहए। मुदा हम ओ सीनेमा नहि देखि सकल रही।मधुबनीक स्मृतिसँ जुड़ल बहुत रास बात सभ अछि जकर चर्चा हम आन ठाम कइए चुकल छी।

एक बेर फेर हम मधुबनी सहरमे आबि चुकल छी। अपन मित्र श्रीनारायणजीक संगे हुनके घरक भूतलमे रहि रहल छी। एहिठाम रहबाक लेल जरुरी सभटा सामान आनलाइन कीनि चुकल छी। काजबाली,भनसिआ,दूध देनिहार सभक व्यवस्था श्रीनारायणजी पहिनेसँ कए देने छथि।तेँ एहिठाम रहबामे कोनो दिक्कतिक प्रश्ने  नहि उठैत अछि।बहुत रास सामानसभ घरेसँ फोनपर श्रीनारायणजी लिखा देलखिन आ थोड़े कालक बाद सभटा सामान रिक्सापर घर पहुँचा देलक।ओकरा फोनपेपर भूगतान कए देलिऐक। दिल्ली,नोएडा जकाँ एहिठाम बिगबास्केट,ब्लिंकइट,जेप्टोसन त्वरित सामान पहुँचाबए बला व्यवस्था भने नहि होइक,मुदा घरे बैसल सामान एतहु आबि जाइत अछि। फेर एमजोन,फ्लिपकार्ट सेहो एहि ठाम उपलब्ध अछि। बहुत रास सामान हम आनलाइन कीनलहुँ अछि। पानि पीबाक लेल बिसलेरी सेहो एहिठाम भेटि जाइत अछि। पाँच-पाँच लीटरक बोतलसभ प्रचूर मात्रामे  कीनि कए राखि लैत छी। गाम लए जेबाक लेल सेहो पानिक बोतलक जोगार एमजोनक मारफत भए जाइत अछि। कहब जे पानि किएक कीनैत छी? बात तँ सही ,मुदा स्वास्थ्यक ध्यान रखैत से करब उचित बुझाइत अछि। एक दिन रातिमे बहुत रद्द भेल,जखन कि किछु अदन-कदन नहि खेने रही। तखन सोचबामे आएल जे पानि बदलबाक कारण ई उकबा भेल होएत। ओना गामोपर नवका चापाकलक जोगार भेल अछि जे करीब चारि सए फीट नीचाँ धरि धसाओल गेल अछि। ऊपरमे पानि भेटबे नहि केलैक। निश्चय ई चिंताजनक स्थिति तँ अछिए।पानि एतेक नीचाँ किएक चलि गेल? असलमे पोखरि-इनारसभ सुखा गेल,किंवा नष्ट भए गेल।जल संरक्षणक ई नैसर्गिक  पुरान तरीका आब रहल नहि। ऊपरसँ दिन-राति गृह निर्माण होइत रहैत अछि।ताहूसँ जलक स्तर नीचाँ जा सकैत अछि। आब बहुत गोटे समरसीभल गड़बा लेने छथि। देखा चाही कतेक दिन धरि ओहो चलि सकत।दू-तीन दिन मधुबनी बजारसँ किछु-किछु सामानसभ अबैत रहलाक बाद मधुबनी सहरमे हमरा लोकनिक गृहस्थी आब व्यवस्थित भए चुकल ।

मधुबनी सहरमे अखनो किछि विशेषता देखाएल। जेना एहि ठाम तरकारीसभमे गजब स्वाद अछि। भांटा,सजमनि,कदीमा,ओल,खम्हाउर सभ अद्भुत स्वादिष्ट। मुदा कोबी सभक रंग-ढंग बदलल-बदलल बुझाएल। छोटका फुलकोबीसभ नहि देखाएल।ओना गिलशनक तरकारी बजार तरकारीसँ भरल रहैत अछि।सहरमे केकटा प्रतिष्ठित दोकानसभ सेहो अछि।मुदा अहाँकेँ जनतब हेबाक चाही जे कोन वस्तुक कोन दोकान नीक अछि।ओना अनचोके यदि कोनो दोकानमे चलि जाएब तखन से बात नहि बुझाएत।किछु मौलसभ सेहो खुजि गेल अछि।होटलसभ सेहो उपलब्ध अछि जे एसीयुक्त रूमसभ सुलभ करबैत छथि।

मधुबनीमे  गामोमे बेसीकाल लाउडस्पीकर बजिते रहैत अछि।ककरो कोनो कनीकोटा उत्सव करबाक हेतैक तँ लाउडस्पीकर जरूर लगा देत।सत्यनारयण भगवानक पूजा होअए,बिआह,उपनयन,मूड़न किछु होअए लाउडस्पीकर बजबे करत।अहाँकेँ जे हेबाक अछि से होअए।ओना एहिठामक लोकसभ एहन ध्वनि प्रदूषणक अभ्यस्त भए चुकल बुझाइत छथि। हम जखन मैट्रिकक परीक्षा देबए सन् ‍१९६७मे मधुबनी आएल रही तखनहु इएह हाल रहैक।

 मधुबनीसँ अड़ेर डीह टोल जाएब-आएब आब बहुत आसान भए गेल अछि। जखन चाही टेकर,बस सभ सुलभ अछि। हमर डेरासँ बस स्टेंड(गंगा सागर लग)  बीस-तीस टाकामे चलि जा सकैत छी। तकर बाद ओहि ठामसँ बेनीपट्टी जाए बला कैकटा बस खुजैत अछि।अन्यथा मिथिला टाकीजसँ सटले अड़ेर गेनिहार टेकरसभक लाइन लागल रहैत अछि।किशोरी लाल चौकपर चलि जाउ तँ आर नीक,कारण बीचक जामसँ बँचि सकैत छी।मधुबनीमे जाम ओहिना लगैत अछि जेना कोनो पहाड़ी नदीमे बाढ़ि आबि जाइत अछि।कखन जाम लागि जाएत तकर कोनो ठेकान नहि। सड़क दुबगली अतिक्रमण भेल अछि जकर हटाएब असंभव थिक।देखिते-देखिते आगूसँ रिक्सा पाछूसँ मोटर साइकिल बामा कातसँ ट्रेक्टर बीचमे फसल किछु यात्री तेहन विचित्र दृश्य बना दैत छथि जकर वर्णन करब मोसकिल।जामसँ निकलि गंतव्य धरि सुरक्षित पहुँचि जाएब अपनेक भाग्यपर निर्भर अछि।

मधुबनीक सीवर व्यवस्था आ स्वच्छताक चर्चा नहिए करब बेसी नीक।मधुबनी सहरमे सीवरक कोनो नीक व्यवस्था नहि अछि। यत्र-तत्र नालासँ सड़ल पानि  दुर्गंधित अपशिष्टसभ बहाइत देखि मोन घिना जाइत अछि। पोखरिसभ दुर्गंधसँ गन्हाइत रहैत अछि। गिलेशन बजारक मछहट्टा लग माछी भनभनाइत रहैत अछि। सामनेमे गुंड़क चक्की खुजले राखल देखाएत। ओएह माछीसभ उड़ि-उड़ि गुड़पर बैसैत अछि।की आमिष  की निरामिष?गुड़क दोकान बलाकेँ कहबो केलिऐक-

“एना उघारल गुड़ किएक रखैत छी?किएक ने एकरा उजरा पन्नीसँ झाँपि दैत छिऐक?”

ओ तुरंत उग्र होइत बाजल-

“की बात करैत छी?ई मधुबनी छैक?भीतर राखि देबैक तँ बिकेबो करत? अहाँक लेबाक होअए तँ भीतरेसँ निकालि देब।मुदा एना नहि बाजू।”

मधुबनीमे एकटा विचित्र बात ई देखबामे आबि रहल अछि जे स्थानीय विक्रेतासभ जेना झगड़ा करबाक लेल तैयार बैसल होअए,आतुर होअए।यदि एकटा बात मुँहसँ निकलि गेल,किंवा किछु प्रश्न पुछि लेलहुँ  तँ आगू भगवाने मालिक।जेना तरकारी लेबाक काल हम कहलिऐक-

“दढ़ कदीमामे सँ काटि कए दिअ।”

“जते गोटे आएत सभ कहैत जाएत जे दढ़ कदीमा काटि कए दिअ।तखन तँ हम बेचि लेलहुँ। एक सेर -आध सेर लेब कि नहि लेब ,मुदा फरमाइस करैत जा रहल छी।”

एहि तरहेँ तरह-तरहक बातसभ ओ बाजए लागल। ओहि ठाम ठाढ़ भेल दूटा ग्राहक सेहो अबाक देखैत रहि गेलाह।  ओ सभ संभवतः भोज करबाक लेल कदीमा आ ओल एकट्ठे लेबाक लेल तत्पर छलाह,मुदा दोकानदारक बजबाक तरीकासँ छगुन्तामे देखेलाह।

एकदिन काजसँ कचहरी गेल रही।एकटा पुरान रजिष्ट्रीक कागजकेँ साफ-साफ  टाइप करेबाक रहए जाहिसँ ओकरा पढ़ल जा सकए। पता लगबैत-लगबैत ओकालतिखानाक पाछू बैसल टंकक लग पहुँचलहुँ। ओ पचकोसीक एकटा बहुत प्रतिष्टित गामक छथि। बएस पचहत्तरि,देखबामे शुभ्र। हम हुनका ओ कागज देखए देलिअनि। ओहिमे हाथसँ लिखल सातटा पन्ना छलैक।तकरा टाइप करबाक लेल ओ सात सए रूपया मंगलनि। फेर अपने छओ सए कहलनि आ बात पक्का भए गेल। ओ दोसर दिन बारह बजे टाइप कए देताह।हम दोसर दिन भेने हुनकासँ ओ कागज लेबए गेलहुँ। ओ नाम पुछलनि आ  टाइप कएल कागज निकालि कए दए देलनि। हम ओहि कागजकेँ ध्यानसँ देखैत छी। ओहिमे अपूर्णता बुझाएल।पाछूक दू पृष्ठ टाइप नहि कएल गेल छल। हम हुनका कहलिअनि-

“एहिमे तँ दूटा पन्ना नहि छैक।”

ओ मुँह बिचकबैत बजलाह-“एहिना होइत छैक।कोनो कागज देखि लिऔ।एहन कागजसभमे पछिला पन्नासभ टाइप नहि कएल जाइत छैक।”

“मुदा हम तँ अहाँकेँ पूरा कागज टाइप करए कहने रही।”

“की जाहिल जकाँ बात कए रहल छी। लेबाक होअए तँ लिअ नहि तँ छोड़ि दिऔ।”आर की की बजैत रहि गेलाह।हम हुनकर शब्दक चयनपर बहुत आपत्ति केलिअनि।कहबो केलिअनि जे अहाँ अपन गामक नाम घिना रहल छी। सए-दू सए टाकाक लेल एहन स्तरहीन बात कए रहल छी।लगेमे ठाढ़ दूटा मुसलमान जे उर्दू भाषा जनैत छलाह,सेहो आपत्ति केलकनि । मुदा हुनका लेखे धनसन।ओ टाका धेलाह आ निश्चिन्त भाओसँ अपन काजमे लागि गेलाह।हम हुनका कतबो बुझेबाक प्रयास केलहुँ,सभ व्यर्थ। हम माथ पकड़ने आगू बढ़ि रहल छलहुँ कि दिल्लीसँ श्री कामेश्वर चौधरीजीक फोन आएल।हुनका संगे गप्प करैत मोन हल्लुक भेल।संयोगसँ हमर मोबाइल फोन श्रीनारायणजीकेँ लागि गेल रहनि  ओ ओहि आदमीक संग हमर समस्त वार्तालाप सुनैत रहि गेल रहथि।साँझमे जखन हम वापस डेरापर अएलहुँ तखन ओ सभटा गप्प बुझलनि। नहि कहि सकैत छी जे कचहरीमे भेल ओहि दुखद अनुभवकेँ बिसरबामे कतेक मोसकिल भेल छल। मोनमे बेर-बेर होइत छल-

“सएह कहू,केहन भए गेल अपन सहर अपन गाम-घर?”






गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

यात्रा गामक

 

 रहिका बड़ पुरान चौक अछि।

कार तीव्र गतिसँ आगू बढ़ल जा रहल छल। सड़कक दुनू दिस हरियर कंचन खेत-पथारक अद्भुत दृश्य देखबामे आबि रहल छल। सरसौक पीयर-पीयर फूल मनमोहक लागि रहल छल। हबाइ अड्डासँ कनीके आगू बढ़लापर आधुनिक तरीकाक फ्लैटसभ देखबामे आएल।बादमे तँ एहने फ्लैटसभ मधुबनी-सौराठ रोडपर सेहो देखबामे आएल। ग्रामीण क्षेत्रो मे बास योग्य जमीन बहुत महग हेबाक कारण फ्लैट संस्कृतिके बढ़ब स्वाभाविक अछि।सी एम कालेज दरभंगामे पढ़बाक समयमे आ बादमे दरभंगामे टेलीफोन इन्सपेक्टरक नौकरीक क्रममे दरभंगा-गाम आएब-जाएब लागले रहैत छल। बेसी काल रहिका आबि दरभंगाक बस पकड़ैत छलहुँ। बसौली,केवटी,दरिमा,खिरमा,  हबाइ अड्डा होइत बस दरभंगा स्टैंड पहुँचैत छल। ओहि समयमे दरभंगा हबाइ अड्डा वायुसेनाक अधीन छल। ओतए नागरिक सेवा नहि होइत छल। हबाइ अड्डापर कारी-उज्जर रंगक एकटा झंडा फहराइत रहैत छल जे बसे मे सँ देखल जा सकैत छल।

कपिलेश्वर होइत हमसभ आब रहिका चौकपर पहुँचि गेल रही। पहिने जखन हम दिल्लीसँ गाम आबी तखन रहिका चौक जस-के-तस देखाइत छल। कोनो परिवर्तन नहि। ओएह गनल-गुथल दोकानसभ। ओतहि एकटा दोकानपर किछु मैथिलीक किताबसभ भेटि जाइत छल।मुदा एहि बेर बहुत परिवर्तन बुझाएल।चारू कात अनेक दोकानसभ पसरल छल।बीच चौराहापर एकटा स्तंभ बनल अछि।हमसभ ओतहि सुधाक दोकानसँ एक किलो माने चारिटा पाकेट पेरा कीनलहुँ आ  गाम दिस बढ़ि गेलहुँ।

रहिका-सतलखाक बीचमे एकटा बहुत पुरान धार अछि। ओतहि जखन हमसभ बच्चा रही तँ एकटा बस उनटि गेल रहैक। हमसभ गामसँ आबि कए ओ दृश्य देखने रही। अखनहु जखन हम ओहिठामसँ गुजरैत छी तँ ओ घटना मोन पड़ि जाइत अछि।सतलखासँ कनीके आगू बढ़लापर लकसैर टोल अबैत अछि। ओहिठाम एकटा कनझरनी रहैत छलि। हमसभ जखन बच्चा रही तखन ओकर बेस चला-चलती रहैक। जकरा ककरो कान,माथ दुखाइत,से ओकरासँ झड़ेबाक लेल जाइत छल।एक बेर हमहूँ बच्चामे ककरो संगे ओकरा ओहिठाम गेल रही। ओ नाक पकड़ि कए किछु मंत्र पढ़ैत छलि  आ संबंधित व्यक्तिक नाकसँ पिलुआ झड़ए लगैत छल।नीचाँमे पिलुआक पथार लागि जाइत छल। रोगी एहि     दृश्यकेँ देखि बहुत आश्वस्त होइत छल जे चलू , एतेक रास पिलुआ नाकसँ बाहर भए गेल। आब तँ चेनसँ रहब,दर्द नहि होएत। लोक नकझरनीकेँ एहि सेवाक बदलामे किछु चाउर,किंवा पाइ दैत छल,नहि तँ उधारिओ राखि लैत छल।बादमे ओ गाम जा कए बकिऔता वसूली करैत छलि।हमरा जनैत सभटा ओकर मात्र हाथक सफाइ छल।कोनो मनुक्खक नाकसँ एतेक रास पिलुआ यदि झरितए तखन ओ जीबित रहितए से संभव नहि बुझा रहल अछि।जे होइ,मुदा ओहि समयमे ओ बहुत प्रसिद्ध छलि आ ओकरा ओहिठाम कारणीसभक पाँति लागल रहैत छल।

सतलखा लकसैर टोलसँ जुड़ल छथि प्रोफसर यशोधर झाजी। हुनका मैथिलीमे साहित्य अकादमीक प्रथम पुरस्कार हुनकर पोथी’ ‍मिथिला वैभव’ लेल भेटल छल। ओ हमर पितियौत बहिनक ससुर छलाह । जखन हुनका पुरस्कार भेटल रहनि तँ ओ किछु दिनक बाद अपने हाथे मिथिला वैभव पोथी हमर पिताकेँ देने रहथिन। हम ओहि समय मैट्रिकमे रही। ओहि किताबकेँ पढ़बाक प्रयास केने रही। ओहिमे बेसी दर्शनक चर्चा बुझाएल। गाम जाइत काल हुनकर डीह देखाएल। ओहिपर एकटा पक्का मकान बनल अछि जाहिमे निरंतर ताला लागल रहैत अछि। ताला लागल एहन मकानक गामक-गाम भरमार भए गेल अछि।हम ओहि मकान दिस बड़ी काल धरि देखैत रहि गेलहुँ। ओहि डीहक भूतकालक दृश्य मोन पड़ि गेल।हम इएहसभ सोचिए रहल छलहुँ कि कार आगू बढ़ि गेल।