शुक्रवार, 13 जून 2025

अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्‍ठत: सशरं धनु:


पटना यात्रा

गाममे बनि  रहल  घरक छत  ढलाइ  छओ मार्चक संपन्न भेल। एहिमे सभक सहयोग रहल।जिनका-जिनका बजओलिअनि(मात्र नारायणजी छोड़ि)  सभ गोटे बेरा-बेरी अएलाह आ हमर उत्साहवर्धन केलनि। हमसभ बड़ी काल धरि आपसमे बतिआइत रहलहुँ। सौंसे दरबाजा भवन निर्माणक सामग्रीसँ भरल छल। दरबाजापर ढ़लाइ मसीन से लागल छल। मसीनक लेल बीच-बीचमे पानिक दिक्कति से भए गेल छलैक। तकर जोगार मिस्त्रीसभकेँ किछु टाका दए कएल गेल।ओ सभ दोसर चापाकलसँ पानि आनि-आनि मसीनमे ढारैत रहल। आखिर चारि बजैत-बजैत छतक ढलाइ भए गेल।मकानक छत ढलाइ भए जाएब माने मकान बनि जाएब। हमर कैकटा इष्ट-मित्रसभ एहि सुअवसरपर हमरा बधाइ देलनि। खास कए कमलाकान्तजीक अनुरागक की वर्णन कएल जाए? ओ हमरा निरंतर उत्साहित करैत रहलाह,बीच-बीचमे कैक बेर निर्माणाधीन मकान देखबाक लेल अबितो रहलाह।संगे ईहो आश्वासन देलाह जे यदि कोनो प्रकारक परेसानी होअए तँ कहब।मुदा से सभ किछु नहि भेल। समयसँ सभ काज आगू बढ़ैत रहल। आखिर छतो बनि गेल।आब कम सँ कम बाइस दिन सटरिंग लागल रहत।बाँससभ ओहिना ठाढ़ रहत। तकर बादे मकानक भीतर काज होएत। ऊपरी छतपर दस दिनक बाद काज भए सकैत अछि। अस्तु,तय भेल जे अठ्ठारह मार्च २०२५ कए प्रथम तलक काज शुरू होएत।नीचाँ बाँस लागले रहत,सटरिंग नहि खुजत।तखन हमसभ की करब?पन्द्रह दिनक लेल दिल्ली वापस चलि जाइ?मुदा एहिमे दिक्कति ई बुझाएल जे मधुबनीक व्यवस्था गड़बड़ा  सकैत छल।फेर दिल्ली आएब-जाएब कोनो आसान काज तँ अछि नहि, परेसानी आ खर्चा दुनू। तेँ निर्णय केलहुँ जे हमसभ पाँच दिन लेल पटना चली। ओहि ठाम रहबाक लेल केन्द्र सरकारक होली डे होममे जगह पहिने आरक्षित करा लेने रही, रेलक टिकट सेहो लए लेने रही। तखन चिंता कथीक?

दस मार्च २०२५क भोरे पाँच बाजि कए पचास मिनटपर मधुबनी टीसनसँ पटना जाए बला इन्टर सीटी एक्सप्रेस पकड़बाक छल। ताहि लेल एकटा आटोक जोगार लाल(बढ़इ)क मारफत करओने रही।एक दिन पहिनेसँ जोगार भेल छल तेँ कोनो चिंता करबाक प्रयोजन नहि छल।तथापि,भोरे हम लालकेँ फोन केलिअनि,मुदा ओ सुतले रहथि। थोड़े कालक बाद फेर हुनका फोन केलिअनि।तखन ओ फोन उठओलथि।  कहलाह-

“चचा। ओकर आटोमे तँ बैट्रीके गड़बड़ा गेलैक अछि। ओ स्टार्टे नहि भए रहल छैक।”

“आब की हेतैक?”

“की कहू चचा?हम तँ अपने बहुत अफसोचमे छी।”

“कोनो रस्ता निकालू जाहिसँ ट्रेन पकड़ा जाए।”

“चिंता नहि करू। हम अपने आबि रहल छी।”

मुदा हमर चिंता तँ बढ़ले जा रहल छल। हम आस-पास कैक गोटेसँ संपर्क केलहुँ। मुदा समाधान किछु फुरा नहि रहल छल। ओना मधुबनी टीसन छैक लगे,हमर डेरासँ पैरो पन्द्रह मिनटमे लोक जा सकैत अछि। मुदा हमरा सभकेँ तँ दूटा मोटा रहए। हम एही चिंतामे रही कि लाल साइकिल लेने धराधर पहुँचि गेल।एहि तरहेँ लालकेँ साइकिलपर अबैत देखि हमरा लोकनिकेँ जे प्रसन्नता भेल से कहि नहि सकैत छी।कारण आब ई मोनमे विश्वास भए गेल जे ट्रेन पकड़ा जाएत। हमसभ हुनके  साइकिलपर दुनू सामानक मोटा राखि देलिऐक । लाल दुनू मोटा लदने साइकिल गुरड़कओने चलि रहल छलाह। संगे-संगे हमसभ पैरे-पैरे चलि रहल छलहुँ। हमर श्रीमतीजीकेँ तेजीसँ चलबामे दिक्कति भए रहल छलनि।हमसभ हुनकासँ आगू बढ़ि जाइत छलहुँ,फेर कनी काल थमकि जाइत छलहुँ।जेना-तेना हमसभ थाना मोर लग पहुँचलहुँ। ओहि ठाम एकटा रिक्सा बला अबैत देखाएल। रिक्सा बलाकेँ देखि हमरा जानमे-जान आबि गेल। ओकरा आग्रह केलिऐक जे हमरा सभकेँ टीसन पहुँचा दिअए। ओ मानि गेल। हमसभ रिक्सापर बैसलहुँ । लाल संगे-संगे साइकिलसँ सामान लदने बिदा भेल। थोड़बे कालमे हमसभ टीसनपर पहुँचि गेल रही। ओतए लालक लेल प्लेटफार्म टिकट लेलहुँ।ओतहि पता लागल जे  ट्रेन विलंबसँ चलि रहल छलैक। हमसभ अपन सामानसभकेँ प्लेटफार्मपर राखि लेलहुँ आ एकटा खाली कुर्सीपर हुनका बैसा देलिअनि।हम अपने ठाढ़े छलहुँ कि केओ दहिना दिससँ टोकलथि-

“अहाँ रबीन्द्र नारायण मिश्रजी छी की?”

“सही चिन्हलहुँ।”

“हम छी केसकर ठाकुर।हमरा लागि रहल छल जे अपनहि छी।तथापि,अपनेक श्रीमतीजीसँ पुछलिअनि। ओ जखन से पुष्टि केलनि तखन अपनेकेँ टोकलहुँ।”

केसकर ठाकुरजीसँ फोनपर कैक बेर गप्प भेल छल, मुदा भेंट नहि छल। से आइ अचानक मधुबनी टीसनपर भए गेल। दू दिन पहिनहि हुनका साहित्य अकादमीक अनुवाद पुरस्कार देबाक घोषणा भेल छल। हम हुनका सद्यः बधाइ देलिअनि। कहलथि जे दू दिनसँ फोन सुनैत-सुनैत थाकि गेल छी। तकर बाद आर-आर गप्प-सप्प होइत रहल। ओ अपन पुत्रकेँ ट्रेन चढ़बए आएल रहथि। जाड़क भोर छलैक। चारू कात धुंध लागल छलैक।केसकरजी सेहो  ओढ़नासँ अपन माथ झपने रहथि।

लगभग एक घंटाक बाद ट्रेन आएल। लाल हमरासभकेँ ट्रेनमे चढ़ा देलाह, सामानसभ राखि देलनि। हमसभ आब अपन सीटपर सुभ्यस्त छलहुँ।ट्रेन सीटी देलक आ आगू बढ़ि गेल।ट्रेन खुजिते अपन गति पकड़ि लेलक।हमसभ खिड़की बाटे पण्डौल टीसन ताकि रहल छलहुँ। आखिर पण्डौल हमर सासुर थिक ने। मुदा ट्रेन कखन पण्डौलसँ आगू बढ़ि गेल से नहि बुझि सकलिऐक। सकड़ी अएलापर ट्रेन रुकल। किछु यात्रीसभ ओहिमे चढ़लाह। फेर ट्रेन आगू बढ़ि गेल। तकर बाद दरभंगा,लहेरिआसराय होइत ट्रेन समस्तीपुर पहुँचल। यात्रीसभ कहलनि जे एहिठाम ट्रेनक इंजन बदलल जेतैक। तेँ एतए आधाघंटा रुकतैक। हमसभ भुखले रही। ट्रेनमे किछु सुलभ नहि छल। एकटा सहयात्रीक संगे जलखैक जोगारमे बाहर निकललहुँ। मुदा ओतेक भोरे प्लेटफार्मो जेना सुतल छल। किछु उपलब्ध नहि बुझाएल।तकैत-तखेत हम सभ रेलवे कैंटीन लग पहुँचलहुँ। ओ सभ अपन दोकान खोलिए रहल छलाह। कुर्सीसभ यत्र-तत्र छिड़िआएल छल। सफाइ कर्मचारी पोछा लगा रहल छल। हमसभ ओहने मे दोकानक भीतर गेलहुँ आ  मनेजरकेँ पुछलिऐक-

“किछु जलखै भेटि सकैत अछि की?”

“पराठा भेटि जाएत,मुदा किछु समय लागत।”

“ट्रेन ने छुटि जाए।”

“नहि छुटत।अखन एकर टाइम छैक।”

चारि टा पराठा हम  आ ओतबे पराठा सहयात्री बनेबाक लेल कहलिऐक। थोड़े काल ओहीठाम जेना-तेना प्रतीक्षा केलहुँ। बीच-बीचमे ट्रेनोक चिंता होअए।आखिर जलखै बनि गेल। हमसभ आवश्यक भूगतान कए देलिऐक।जलखै सरिआ कए राखि लेलहुँ ।ताबे ट्रेन सीटी देबए लागल छल। हम दुनू गोटे प्लेटफार्मपर  दौड़ए लगलहुँ। सहयात्री हमरा दौड़ैत देखि पुछलाह-

“बाबा अहाँक कतेक बएस अछि?”

“अहाँक दोबर।”

“एतेक बएसमे गजबके ऊर्जा अछि अहाँमे।”-ओ हँसैत बजलाह।

हमरो हुनकर बात सुनि कए हँसी लागि गेल। हमसभ आखिर ट्रेनमे पैसि गेलहुँ। अपन-अपन सीटोपर पहुँचि गेलहुँ। तकर बादे ट्रेन आगू ससरल।आब हम दुनू बेकती जलखै केलहुँ।संयोगसँ चाहो आबि गेल। सेहो पीलहुँ।ट्रेन अपन गतिसँ चलैत रहल। जखन ट्रेन मुजफ्फरपुर पहुँचए बला रहए तखन हम अपन मित्र आदरणीय श्री मदन मोहन सिन्हाजी मोन पड़लथि।हम हुनका फोन लगओलहुँ।ओ एहि बातसँ बहुत प्रसन्न भेलाह जे हमसभ मुजफ्फरपुर पहुँचि रहल छी। साइत हुनकर गामो जाइ। ओहिठामसँ हुनकर गाम जेबाक लेल टेकर भेटि जाइत छैक। से सभ जानकारी ओ देलनि। मुदा हमरा तँ पटना जेबाक छल। तखन वापसीमे संभव भेलापर हुनकार गाम होइते वापस जेबाक गप्प भेलैक। मुदा से संभव भेलैक नहि। कारण पन्द्रह मार्च  कए पटनासँ मधुबनी वापसीक दिन कैक ठाम फगुआ मनाओल जा रहल छल। असलमे एहू साल  फगुआ दू-दिना भए गेल छल। गामसभमे पन्द्रह मार्च कए फगुआ मनाओल गेल,जखन कि सहरी क्षेत्रमे चौदहे मार्च कए।

करीब डेढ़ बजे हमसभ पटनाक पाटलिपुत्र टीसन पहुँचलहुँ।ओना हमरासभकेँ पटना टीसन उतरबाक छल। मुदा एकटा सहयात्री कहलनि जे हमरसभक पटनाक गंतव्य(केन्द्र सरकारक होली डे होम) पाटलिपुत्र टीसनसँ लगीच अछि। तखन हमसभ ओतहि उतरबाक योजना बनओलहुँ। बीचमे ट्रेन खूब गतिसँ चलल छल।तेँ हमसभ पाटलिपुत्र टीसनपर निर्धारित समयसँ किछु पहिने पहुँचि गेल रही। ओतए ट्रेनसँ उतरलाक बाद कूली भेटबे नहि करए। सामान भारी छल। ओकरा असगरे उघने प्लेटफार्मपर आगू चलब बहुत मोसकिल भए रहल छल। आखिर,दुनूगोटे सामानकेँ दुनू दिससँ पकड़लहुँ। बहुत मोसकिलसँ जेना-तेना सामान लदने हमसभ टीसनसँ बाहर भेलहुँ। ओहूठाम ओला,उबेरक टैक्सी भेटबामे दिक्कति भए रहल छल। आखिर, एकटा आटो ठीक भेल। थोड़बे कालमे हमसभ आटोसँ होलीडे होम पहुँचि गेलहुँ। ओहि ठाम पहुँचि गेलाक बाद तँ समस्या खतम छल। सभ किछु देखल-सुनल बुझाएल। हमसभ अपन कोठरीमे सामान सहित पहुँचा देल गेलहुँ।डेरा अबैत-अबैत हमसभ बहुत थाकि गेल रही। अस्तु,सोचलहुँ जे सभ किछु बिसरि पहिने थोड़े काल विश्राम कएल जाए।

हमरासभकेँ पाँच दिन माने चौदह मार्च धरि पटनामे रहबाक छल।पन्द्रह मार्च कए भोरे फेर इन्टरसीटी एक्सप्रेससँ मधुबनी वापस जेबाक कार्यक्रम पहिनेसँ तय छल।पटना स्थित  होलीडे होममे दस मार्च २०२५क पहुँचलाक बाद हमसभ दिनमे विश्राम केलहुँ। साँझमे  टैक्सीसँ पटनाक प्रसिद्ध महावीर मंदिर गेलहुँ। ओहिठामसँ हमसभ गंगा नदीक काते-काते बनल रिभरफ्रांट लग एकपाँतिसँ बनल दोकानसभ देखलहुँ। आइ ओहि ठाम बेसी भीड़ नहि छल। प्रायः फगुआ लगीच होएबाक कारण लोकसभ अपन-अपन घर चलि गेल छल। तथापि किछु लोकसभ ओहि ठाम घुमि-फिरि रहल छलाह, चाह-जलखै कए रहल छलाह। हमसभ टैक्सीसँ एहि पारसँ ओहि पार धरि देखि गेलहुँ। रातिक आठ बाजि रहल छलैक। चारू कात अन्हार भए गेल रहैक। गंगाक कछार आब देखल नहि जा रहल छल।अस्तु,हमसभ बिना बेसी देरी केने ओहि ठामसँ डेरा वापस बिदा भए गेलहुँ।

 

 

 

राजगीर,नालंदाक यात्रा

 

पटनाक प्रसिद्ध महाबीर स्थान जेबाक लेल हमसभ ओलापर टैक्सी बुक करओने रही। टैक्सी बला बहुत नीक लोक छल। ओ हमरासभकेँ बहुत नीकसँ महाबीर मंदिरमे दर्शन करा देलक ,संगे अपनहु दर्शन केलक।गंगाक कातमे बनल रिभर फ्रान्ट सेहो घुमा देलक। हमरासभकेँ राजगीर,नालंदा जेबाक इच्छा रहए। हम ओकरेसँ पुछलिऐक-

“अहाँ हमरासभकेँ राजगीर,नालंदा घुमा देब?”

“किएक ने घुमा देब।हमर तँ ई नित्यक काज अछि।कहिआ जेबै?”

“काल्हि चली,परसु चली।”

“कतेक टाका लगतैक?”

“पैंतालीस सए।”

“ठीक छैक।हमसभ आपसमे विचार करैत छी आ डेरा पहुँचलाक बाद सूचित करैत छी।”

हमसभ डेरा पहुँचैत छी। तकर  बाद कनी काल सुस्ताइत छी। फेर आपसमे चर्चा करैत छी। असलमे एतेक दूर यात्रा टैक्सीसँ करबामे हमरा चिंता होमए लगैत अछि। मुदा ई आसान आ सुलभो अछि। हुनका राजगीर,नालंदा जेबाक बहुत मोन छलनि। अस्तु,हम टैक्सी बलाकेँ फोन लगबैत छी-

“हेलो! हम मिश्राजी बाजि रहल छी।”

“हँ,हँ कहियौ।”

“हमसभ काल्हि जेबैक राजगीर,नालंदा।”

“कै बजे चलबै?”

“सात बजे बिदा भए जेबैक।”

“ठीक छै।”

भोरे सात बजिते हमसभ तैयार भए अपन कोठरीसँ बाहर निकलले छलहुँ कि टैक्सी बलाक फोन आबि गेल। ओ कहलक जे कारमे तेल भरा रहल अछि आ ओ जल्दीए पहुँचत । पाँच मिनटक बाद ओ हमरासभ लग सचमुचकेँ पहुँचि गेल। हमसभ तुरंत टैक्सीमे सबार भए गेलहुँ आ  बिदा भेलहुँ नालंदा,राजगीरक यात्रापर।

आइ यात्रापर निकलबासँ पूर्व हमसभ भोरुका चाह नहि पीबि सकल रही।मंगल दिन रहबाक कारण उपास से छल।तेँ जलखै करबाक तँ चिंते नहि रहए। चाहक उचाट जरूर लागल छल। बीचमे कैक ठाम चाहक दोकानसभ देखेबो कएल।मुदा टैक्सी बलाक इच्छा रहैक हमरासभकेँ तंदुरी चाह पिएबाक। ओ तंदुरी चाहक बहुत प्रशंसा करैत छल। हमहूँसभ तंदुरी चाह पीबाक लेल बहुत उत्सुक रही। अखन धरि तंदुरी रोटी तँ सुनने रहियैक,मुदा तंदुरी चाह तँ पहिल बेर सुनि रहल छलहुँ।देखा चाही जे तंदुरी चाह अछि केहन?अस्तु,हमसभ बाट तकैत रहलहुँ तंदुरी चाहक। बीच-बीचमे उत्सुकतावश टैक्सी बलासँ ओकर विशिष्टताक कारण पुछबो करिऐक। ओ कहैत-

“कनीके काल ठहरू। पीबैक तखन अपने गुण गेबै।”

ओकरा से कहैत सुनि हमसभ चाह पीबाक लेल  आर बेकल भए गेलहुँ, उचकि-उचकि कए बाहर देखि रहल छलहुँ। जे कोनो दोकान देखाइत से ओएह बुझाइत। हम टैक्सी बलासँ से पुछितिऐक आ ओ हँसि दैत।कार तेज गतिसँ चलैत रहल। बीचमे एकटा भगवतीक स्थान आएल। ओहि इलाकामे ओ बहुत प्रसिद्ध भगवती छथिन। हमहूँसभ हुनकर दर्शनक लेल टैक्सीसँ उतरि गेलहुँ। मंदिर परिसरमे भगवतीक दर्शनक लेल बहुत रास लोकसभ जमा भेल रहथि। भगवतीक आरती चलि रहल छल। लोकसभ प्रसाद कीनि रहल छलाह। हमहूँसभ प्रसाद चढ़ओलहुँ ,पूजा केलहुँ आ बिदा भए गेलहुँ। करीब दस मिनट चललाक बाद टैक्सीबला बाजि उठल-

“उतरैत जाउ।आबि गेल तंदुरी चाहक दोकान।”

हम बहुत प्रसन्न रही जे आखिर चाहक जोगार भल,सेहो तंदुरी चाह । हमसभ बड़ी कालसँ चाहक प्रतीक्षा कए रहल छलहुँ। हम पाँचटा तंदुरी चाहक आदेश देलिऐक।से सुनि टैक्सी बला बाजल-

“पाँचटा?

“दू-दूटा हम दुनू बेकती पीबैक आ एकटा अहाँक लेल।”

से सुनि टैक्सी बला हँसि देलक।हम बहुत उत्सुकतासँ तंदुरी चाहकेँ बनैत देखैत रहलहुँ।माटिक वर्तनमे पानिकेँ तंदुरीपर गरमाओल गेल। पुरना समयमे कोहामे भानस होइत देखने रहिऐक। ओहिना चाहकेँ माटिक वर्तनमे बरकैत देखलहुँ।माटिक दोसर वर्तनमे दूध गरम भए रहल छल।दूध की छल जेना खोआ रहल होअए। ओहिपर छाल्हीक बेस मोट पपरी पड़ल छल।चाह पीबासँ बेसी चाह बनबाक आनन्द भए रहल छल।थोड़बे कालमे माटिक कुल्हरमे तंदुरपर बनल चाह आबि गेल। हमसभ दू-दू बेर ओ चाह पीलहुँ। ओ चाह सचमुचकेँ बहुत स्वादिष्ट छल।पता लागल जे ओही दोकानपर शुद्ध घी  आ खोआक पेरा सेहो भेटैत अछि। हमसभ ओहिठामसँ घी आ पेरा सेहो कीनलहुँ।चाह पीबिए लेने रही। आब हमरसभक मोन ऊर्जासँ भरि गेल छल। हमसभ द्विगुणित उत्साहसँ टैक्सीसँ नालंदा बिदा भेलहुँ।

पटनासँ नालंदक बीच सड़क गजबकेँ अछि। लगिते नहि अछि जे ई अपना ओहिठामक सड़क अछि। नालंदा मुख्यमंत्रीजीक गृह जिला छनि।तेँ एहि ठाम बेसी ध्यान देल जाइत अछि।से कहब छलैक टैक्सी बलाक। थोड़बे कालमे नालंदाक जिला अस्पतालक विशाल भवन देखबामे आएल। कहाँ दनि एम्स जकाँ एतहु चिकित्साक व्यवस्था कएल गेल अछि। से जानि प्रसन्नता भेल।मोनमे ईहो भेल जे किएक ने मधुबनीओमे एहन अस्पताल बनि सकैत अछि? साइत ओहन दमदार राजनेता अपना ओहिठामक नहि होथि,किंवा हुनका मधुबनीक प्रतिए से लगाओ नहि होनि।जे से। मुदा मधुबनीक आसपास चिकित्सा सुविधाक जे हाल अछि से कहबाक प्रयोजन नहि ।लोकसभ जान बँचेबाक लेल पटना,दिल्ली भागि जाइत अछि, खेत-पथार बेचि लैत अछि।ओना दरभंगामे एम्स खुलबाक सुरसार चलि रहल अछि। यदि से संभव भेल तँ संभवतः स्थानीय लोकसभकेँ किछु उसास होनि।

आब हमसभ राजगीरसँ कनीके फटकी छलहुँ कि सड़कक काते-काते छोट=छोट खाजाक सैकड़ों दोकानसभ देखाएल।हम आइ धरि एक ठाम एतेक खाजाक दोकान नहि देखने रहिऐक। ओना सिलावक खाजा नामी अछि। एकटा दोकानपर लिखल छल जे ओकरा खाजाक लेल अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार  भेटल छल। हमसभ खाजा देखि मोहित भए गेल रही आ निर्णय केलहुँ जे वापसीमे खाजा कीनब।

 टैक्सी बिना रुकने चलैत रहल। आब हमसभ आब राजगीर पहुँचि गेल रही। राजगीरक गरम झरनासभ जगप्रसिद्ध अछि। एहिठामक ब्रह्मकुंडमे स्नान बहुत फलदायी मानल जाइत  अछि। अस्तु,हमसभ सभसँ पहिने एतहि पहुँचलहुँ। ओना पहिनेसँ हमरा एहि ठाम स्नान करबाक निआर नहि छल, तेँ बेसी कपड़ा नहि अनने रही। मुदा हमर श्रीमतीजी तँ पूरा तैयारी केने रहथि। ओहिठाम पहुँचलाक बाद हमरो नहि रहल गेल। सभकेँ स्नान करैत देखि हमहूँ ओही पाँतिमे लागि गेलहुँ।यद्यपि थोड़बे दिन पहिने ब्रह्मकुण्डक  विकास काज कएल गेल रहैक,मुदा ओहि ठाम स्नानक भारी कुव्यवस्था देखबामे आएल। पुरुष आ स्त्रीगण एक्के ठाम स्नान करबाक लेल उपरौंझ  करैत देखेलाह। सातटा कूपकेँ पाइपसँ जोड़ल गेल अछि।सभमे सँ गरम पानि निकलैत अछि।सभमे बेरा-बेरी स्नान करब जरूरी अछि।सभक अपन-अपन महत्व छैक। तकर बाद ब्रह्मकुण्डमे कुदि जाउ आ खूब गरम पानिमे नहाउ। ओहिठाम स्नान कए रहल महिला लोकनिक दुर्दशाक वर्णन करब मोसकिल अछि,उचितो नहि अछि।अफसोचक बात अछि जे स्थानीय प्रशासन आ ओहिठामक प्रबंधक लोकनिक ध्यान एहि समस्यापर  किएक नहि गेलनि अछि। ब्रह्मकुण्ड तँ तइओ कनी फैल छैक ,महिला-पुरुष कनी-मनी फराक भए जाइत छथि।मुदा स्थिति बहुत नीक तँ नहिए कहल जा सकैत अछि। एतबा नीक बात अछि जे महिला लोकनिक लेल एकटा कोठरी अलगसँ अछि जाहिमे ओ सभ स्नानक बाद  अपन वस्त्र पहरि सकैत छथि।पुरुष लोकनिक लेल तँ किछु नहि अछि। लोकसभ भिजल-तितल जेना-तेना ओहि कुण्डसँ बहराइत छलाह आ कहुना कए अपन वस्त्र पहिरि बाहर चलि जाइत छलाह।हमहूँसभ स्नानक बाद ओहिठामसँ बाहर भेलहुँ । फोटो खिचेलहुँ। तकर बाद कनीके फटकी बनल गुरुद्वारा  शीतल कुण्ड दिस बिदा भेलहुँ।

गुरुद्वारा  शीतल कुण्डक खिस्सा बहुत रोचक अछि। कहल जाइत अछि जे आसपासमे गरम पानिक कुण्डसभ भरल छल। सभ ठाम गरम पानिए निकलैत छल। एहिसँ ओहि ठाम आगन्तुक लोकनिकेँ बहुत दिक्कति होइत छलनि। एक बेर गुरु नानक ओहि ठाम पहुँचलाह। हुनकासभ गोहार केलकनि आ निवेदन केलकनि जे ओ शीतल जलक ओरिआन करथि। तकर बाद ओ अपन प्रभावसँ ओहि ठाम शीतल जलक झरना आनि देलनि। अखनहु ओ कुंड अछिए जाहिमे भक्त लोकनि श्रद्धापुर्वक शीतल जलक पान करैत छथि।हम सभ ओहि परिसरमे प्रवेश करितहि रूमालसँ माथ झाँपि लेलहुँ। तकर बाद गुरुद्वारामे दर्शन केलहुँ आ शीतल कुण्डमे जल पीलहुँ।किछु काल ओहि परिसरमे  विश्राम केलहुँ। ओ संपूर्ण परिसर बहुत स्वच्छ छल। कतबो काल बैसल रहू,मोन नहि भरत। मुदा हमरासभकेँ तँ आनो ठाम जेबाक छल। अस्तु,ओहिठामसँ बाहर निकललहुँ। बाहरो सँ ओ परिसर देखबामे बहुत नीक लागि रहल छल।हमसभ ओकर कैकटा फोटो खिचलहुँ आ अपन मित्र लोकनिकेँ ह्वात्सपपर पठेलिअनि।

राजगीर आ नालंदामे देखबाक,घुमबाक लेल बहुत स्थान छैक।एक्के दिनमे सभठाम घुमब संभव नहि छैक।हमरासभकेँ ओही दिन साँझमे पटना लौटि जेबाक रहए।दिन भरिमे जतेक घुमि ली। हमर श्रीमतीजीकेँ चलबामे किछु परेसानी छनि। मंगलदिन हेबाक कारण हमरासभकेँ उपासो रहए। तखन सुविधापूर्वक जतबे पार लागत से घुमि लेब।सएह सोचि हमसभ मुख्य-मुख्य चीज देखबाक प्रयास केलहुँ। राजगीरमे ब्रह्मकुण्डमे स्नानक बाद हमरा लोकनि नालंदा विश्वविद्यालयक परिसरक मुख्यद्वारिपर पहुँचलहुँ। मुदा भीतेर जेबाक अनुमति नहि भेटल। ओहि ठाम कार्यरत सुरक्षाप्रहरीसभ कहलक जे भीतर जेबाक लेल आनलाइन अनुमति पहिनेसँ लेबाक होइत छैक। तखन की कएल जाइत?हमसभ बाहरेसँ उचकि-उचकि कए किछु-किछु देखबाक प्रयास कएलहुँ। मुदा ओनामे की देखाइत।आखिर आखिर हमसभ पुरना नालंदा बिदा भेलहुँ।

पुरनका नालंदा पहुँचलाक बाद हमसभ  टैक्सीसँ आगू नहि जा सकैत छलहुँ। तेँ टैक्सीकेँ पार्कींगमे राखि एकटा आटो ठीक केलहुँ जे हमरासभकेँ ओहि ठामक प्रमुख स्थानसभ घुमा देत।हम दुनू बेकती आ टैक्सी बला ओहि आटोपर बैसलहुँ।आटो बला प्रशिक्षित छल। ओकरा नालंदाक प्रमुख स्थानसभक इतिहासक जनतब छलैक। मुदा बेसी काल ओ अपना लग बैसल टैक्सी बलासँ गप्प करैत रहैत छल।

आटो बला हमरासभकेँ सभसँ पहिने कारी बुद्धक मंदिरमे लए गेल। ओहि ठाम सएसँ बेसीए विदेशी बुद्ध भिक्षुकसभ पूजा-पाठमे लागल छलाह।हमहूँसभ ओहि ठाम थोड़े काल बैसलहुँ। भगवान बुद्धकेँ प्रणाम केलहुँ। सामनेमे तरह-तरहक बुद्धक प्रतिमासभ बिका रहल छल। से सभ देखैत-सुनैत हमसभ आगू बढ़ि गेलहुँ।आब हमसभ ह्वेनत्सांग स्मारक भवनमे पहुँचलहुँ। ह्वेन त्सांग  चीनक यात्री छलाह। ओ पन्द्रह वर्ष धरि भारतमे रहलथि। एहि अवधिमे ओ नालंदामे पहिने विद्यार्थी ,फेर शिक्षकक रूपमे काज केलथि।हुनके स्मृतिमे एहि म्युजियमक निर्माण कएल गेल अछि। एकर निर्माण सन् १९६०ई०मे शुरू भेल छल आ चौबीस वर्ष बाद सन् ‍१९८४ई०मे पूर्ण भेल।हमसभ बड़ी काल धरि एहि म्युजियममे घुमैत रहलहुँ। आब रौद चढ़ल जा रहल छल। ओहिमे जान बँचबैत हमसभ आगू नालंदा म्युजियम पहुँचलहुँ।ई सन् ‍१९१७ई०मे स्थापित भेल छल। नालंदा विश्वविद्यालयक बहुत रास भग्नावशेष एहि ठाम राखल अछि।ओतए लगभग 350 कलाकृति प्रदर्शनीमे राखल गेल अछि  जखन कि तेरह हजारसँ बेसी संग्रह सुरक्षित राखल गेल अछि।हमसभ एहिठाम किछु समय बितओलाक बाद विदेशी लोकनि द्वारा स्थापित अनेक बुद्ध मंदिरसभ देखलहुँ। तकर बाद हम सभ प्राचीन नालंदा विस्वविद्यालयक खण्डहर देखबाक लेल बिदा भए गेलहुँ।

आटो बला आसपासक प्रमुख स्थानसभ घुमेलाक बाद हमरा नालंदा विश्वविद्यालयक भग्नावशेष लग छोड़ि देलक।हमसभ ओहिठाम टिकट कीनलहुँ आ भीतर प्रवेश केलहुँ। कनीके आगू गेलाक बाद एकटा प्रशिक्षित गाइड सेहो हमसभ कए लेलहुँ। ओ चारि सए टाकामे अपन सेवा देबाक लेल तैयार भए गेल रहथि। हमरा लोकनिक ई अनुभव रहल अछि जे कोनो ऐतिहासिक स्थानकेँ देखबाक लेल गाइड जरूर रखबाक चाही,भने ताहि लेल किछु खर्च भए जाए।अस्तु,हमसभ तुरंत ई काज केलहुँ।आब हमसभ चारि गोटे छलहुँ।हम दुनू गोटे,टैक्सी बला  आ गाइड।भोरसँ अखन धरि निरंतर व्यस्तताक कारण हमर श्रीमतीजी बहुत थाकि गेल रहथि। बेसी थकलाक बाद कहीं हुनकर कष्ट आर ने बढ़ि  जानि,तेँ हमसभ गाइडकेँ संक्षेपमे प्रमुख-प्रमुख स्थानसभ देखेबाक आग्रह केलिअनि जाहिसँ हमसभ बिना बेसी चलने अधिकसँ-अधिक जानकारी प्राप्त कए सकी। ओ से प्रयास यथासंभव केबो केलनि। मुदा बिना चलने कहीं देखल गेलैक अछि?तथापि,हमसभ प्रयास केलहुँ। ओहो निरंतर किछु-ने-किछु बतबैत रहलाह,सेहो बहुत रोचक ढंगसँ। लगपासमे बहुत रास विदेशी पर्यटकसभ घुमि रहल छलाह।हुनका लोकनिकेँ गाइडसभ हुनके भाषामे बुझा रहल छलखिन।ई कम गौरवक बात नहि अछि जे विश्वप्रसिद्ध नालंदा अपनेसभक बीचमे अछि। कहल जाइत अछि जे नालंदाक खंडहरक मात्र दस प्रतिशत खुदाइ भेल अछि।अखनहु नब्बे प्रतिशत खंडहर जमीनक नीचाँमे अछि। मुदा जतबे उपलब्ध अछि से अद्भुत अछि,ज्ञानसँ भरल अछि।

गाइड आगू बढ़ैत जा रहल छलाह,ठाम-ठाम उपलब्ध ऐतिहासिक चीज-वस्तुसभक बारेमे हमरा लोकनिकेँ बतवैत रहैत छलाह।सैकड़ों साल धरि नालंदा विश्वभरिक शिक्षाक केन्द्र छल। एतए हजारों विद्यार्थी विश्वभरिसँ अबैत छलाह। कहल जाइत अछि जे दू हजार शिक्षक हुनका लोकनिकेँ पढ़बैत छलाह। विद्यार्थी आ शिक्षक लोकनिक रहबाक लेल छात्रावासक उत्तम व्यवस्था छल,से अखनहु ऊपलब्ध खंडहरमे देखाइत अछि। भोजनालय,वाचनालय,पुस्तकालय  मंदिरसभक वहुत उत्तम व्यवस्था कएल गेल छल। ओ दिन केहन अभागल रहल होएत जखन कि विदेशी आक्रान्ता तुर्कीक क्रूर मुगल शासक बख्तियार खिलजी(कुतुबुद्दीन ऐबकक सैन्य सलाहकार)  एहि ठामक पुस्तकालयमे आगि लगा देलक।कहाँ दनि आगि लगलासँ पुस्तकालयक लाखो पोथीसभ मासक-मास धू-धू कए जरैत रहि गेल छल।कालक्रमे विश्वविद्यालयक भवनसभ  छाउरक ढेरीमे बदलि गेल।सालक-साल ओ ढेरी ओहिना उपेक्षित  पड़ल रहल। अंततोगत्वा, ओहिपर एकटा अंग्रेज अन्वेषकक ध्यान गेलनि।हुनका लोकनिक मेहनति आ सतत प्रयाससँ वर्तमान खंडहरसभ लोकक सामनेमे आबि सकल।

प्राचीन कालमे एशियाक सबसँ पैघ विश्वविद्यालयमे सँ एक नालंदा अपन उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्थाक लेल जानल जाइत छल ।एकर स्थापना 450 ई. मे गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमार गुप्ता द्वारा कएल गेल छल | हुनका बाद नालंदा विश्वविद्यालयकेँ सम्राट हर्षवर्धन आ पाल शासकक पूर्ण संरक्षण भेटल छल | करीब आठ सए वर्ष धरि ई ज्ञान प्रचारक प्रमुख केन्द्र बनल रहल छल।एहि ठाम महायान बुद्धक शिक्षाक केन्द्र छल। नालंदा विश्वविद्यालय तीन बेर नष्ट कएल गेल।पहिल विनाश स्कन्दगुप्त क शासन कालमे(४५५-४६७ई०)  मिहिरकुलक हूनक आक्रमणक कारण भेल छल।कहल जाइत अछि जे भारतीय वौद्ध भिक्षु शीलभद्र बख्तियार खिलजीक बिमारीक इलाज कए ओकर जान बचओने रहथि। ताहि उपकारक बदलामे ओ अगिले वर्ष,सन् ‍११९२मे नालंदा जा कए भिक्षुश्रेष्टक गर्दनि काटि कए चुकओलक ,संगे नालंदाक पुस्तकालयमे आगि लगा देलक।लौटती बेर मे विक्रमशिलाक पुस्तकालयमे सेहो आगि लगा देलक।सन् ‍१८१२ ई०मे स्काटिस सर्वेयर फ्रैंसिस बुकानन पुरना नालंदा विश्वविद्यालयकेँ फेरसँ तकलनि।सन् ‍१८६१मे सर एलेक्जेन्डर कनींघम विधिवत  एकरा प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालयक रूपमे चिन्हित केलथि।

हमरा लोकनि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालयक परिसरमे घुमैत काल भारतवर्षक गौरवशाली अतीतक भग्नावशेष देखि-देखि रोमांचित छलहुँ। मोनमे ई भाव अबैत रहल जे ज्ञानमे एतेक स्मृद्ध रहितहुँ हमसभ अपन एहन मुल्यवान धरोहरक रक्षा किएक नहि कए सकलहुँ?ज्ञानक संग-संग शक्तिक प्रयोजन इतिहासक एहि घटनासँ स्वतः सिद्ध होइत अछि-

अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्‍ठत: सशरं धनु:। इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि।।

नालंदाक खंडहरसँ जेना  निरंतर चिकरि  रहल छल-

“जागू!जागू!हे भारत माताक संतानसभ!आबो जागू!

इतिहासक एहन मर्मान्तक घटनासँ सबक लिअ।आपसमे मिलि कए रहू जाहिसँ एकटा मजगूत आ संगठित राष्ट्रक रूपमे हमसभ दुनिआक सामनेमे प्रस्तुत होइ आ फेर केओ एहन कुकृत्य करबाक दुस्साहस नहि कए सकए।”

ई विचार हमरा मोनकेँ बेर-बेर हिलोरि रहल छल,  उद्वालित कए रहल छल। हमसभ उत्सुकतावश गाइडसँ बेर-बेर तरह-तरहक प्रश्नसभ करैत रहलिअनि। ओहो यथासंभव उत्तर दैत रहलाह। चारूकात पसरल ऐतिहासिक अवशेष देखबैत रहलाह। मुदा हमर श्रीमतीजी आब थाकि कए चूर-चूर  भए गेल छलीह। आखिर,हमसभ सही स्थान देखि विश्रामक लेल बैसि गेलहुँ।तखनहु हमसभ गाइडजीसँ बैसले-बैसल नालंदाक ऐतिहासिक प्रसंगसभ सुनैत रहलहुँ। कैकटा फोटो खिचओलहुँ आ वापस मुख्यद्वारि दिस बिदा भए गेलहुँ।

वापसी यात्रामे हमसभ सिलावमे रूकि ओहिठामक प्रसिद्ध खाजा कीनलहुँ।तीनटा बंडलमे अलग-अलग प्रकारक खाजासभ राखल छल।एकटामे गुंड़क ,दोसरमे नूनगर  आ तेसरमे चीनी बला खाजा राखल छल। तीनू पैकेट जतेक भारी नहि छल ततेक जगह छेकने छल। ओकरा सम्हारि कए टैक्सीमे राखि हमसभ आगू बढ़ि गेलहुँ। मंगल दिन छल,उपासक परना करबाक छल। साँझ होइत-होइत हमसभ अपन पटनाक डेरापर पहुँचि गेल रही।नालंदा-राजगीरक यात्राक स्मरण बड़ी काल धरि होइत रहल। बहुत किछु देखलहुँ आ बहुत किछु छुटि गेल। असलमे एक्के दिने कतेक देखि सकितहुँ। कम सँ कम दू दिन जरूरी छल। मुदा जतबे पार लागल सएह कोन कम। आब हमसभ बहुत थाकि गेल रही। अस्तु, भोजन कए जल्दीए सुति रहलहुँ।

बारह मार्च २०२५क साँझमे चेतना समितिक अध्यक्ष श्रीमती निशा मदन झाजीसँ हुनका ओहि ठाम भेंट करबाक लेल हमसभ गेल रही। हुनकर आवासपर करीब एक घंटा रहलहुँ। ओ अपन व्यक्तिगत आ सामाजिक जीवनक अनेक संस्मरणसभ सुनबैत रहलथि।घंटा भरिसँ बेसीए समय कोना बीति गेल से पता नहि लागल।ओही बीचमे  हमसभ जलखै केलहुँ,काफी पीलहुँ ।आब ओहि ठामसँ बिदा होएबाक समय छल ।लगैत छल जेना बहुत किछु गप्प करब बाँकी रहि गेल।मुदा साँझ पड़ि रहल छल। हुनको पुत्र फगुआक अवसरपर बाहरसँ माए लग  आएल छलखिन। मुदा ओतए जतबे काल रहलहुँ बहुत मोन लागल,बहुत किछु बुझबाक,सुनबाक अवसर भेटल । हुनकर जीवनक अनुभव आ उपलब्धिसँ परिचित होएबाक सौभाग्य भेटल। ओ हमरासभकेँ बहुत स्वागत केलनि। ओ बाहर धरि हमरा दुनू बेकतीकेँ अरिआति देलनि आ जाधरि टैक्सी आबि नहि गेल,ओतहि ठाढे रहि गेलथि। हुनकर विनम्रता आ आतिथ्य बिसरल नहि जा सकैत अछि।

‍१३ फरबरी २०२५क सभसँ पहिने हमसभ अपन वालसखा आ मित्र नवकरहीक आदरणीय श्री नारायण झाजीक आवासपर पहुँचलहुँ। हमसभ जतेक काल ओहि ठाम रहलहुँ,हुनकर पूरा परिवार हमरासभक स्वागतमे लागल रहलथि। अपने तँ ओ रहबे करथि। बहुत दिनक बाद हुनकासँ भेंट कए अपूर्व आनन्दक अनुभव भए रहल छल।हमसभ घंटा भरि ओहिठाम रहलाक बाद वापस अपन डेरा आबि गेलहुँ। फेर करीब दू बजे आटोसँ आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीक ओहिठाम बिदा भेलहुँ।

प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झा

पछिला कतेको  सालसँ आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीसँ हमरा संपर्क अछि।हम हुनका अपन कोनो पोथी पठओने रहिअनि। ओ ओहि पोथीकेँ तुरंत पढ़ि हमरा फोन केलनि  आ अपन सकारात्मक प्रतिक्रिया देलनि। तकर बाद तँ हम हुनका अपन किताबसभ नियमित पठबति रहलिअनि।  ओ ओकरा पढ़ि फोनपर अपन प्रतिक्रिया दैत रहलाह।ताहि संगे बड़ी काल धरि गप्प-सप्प,हास्य-व्यंग होइत छल। ओ सदिखन प्रसन्न आ आनन्दपूर्ण अवस्थामे रहैत छलाह। सभसँ प्रभावित करबाक बात तँ ई रहैत छल जे सभ तरहेँ संपन्न आ एतेक वरिष्ठ रहितहु हुनकामे अहंक कनीको  लवलेश नहि रहैत छनि। हुनकर सहज आ सरल व्यवहारसँ के नहि प्रभावित भए जाएत?स्वाभाविक छल जे हुनका प्रतिए हमर आदर बढ़ैत गेल।हुनकर बात-व्यवहार हमरा बहुत आकृष्ट केलक ।हुनकर सकारात्मक रुखि आ उत्साहवर्धनसँ हमरा  सृजनशील रहबाक  प्रेरणो भेटैत रहल। हम जे निरंतर आ नियमित  लिखैत रहलहुँ अछि ताहिमे हुनकर बहुत योगदान छनि। ओ हमर पठाओल  किताबसभ पढ़ैत रहलाह आ पढ़लाक बाद अपन मंतव्य दैत रहलाह जे बहुत लाभकारी सिद्ध  भेल।

हम मैथिलीमे लिखल अपन पोथीसभ हुनके नहि,अपितु अनेक विद्वान,मैथिलीक प्रोफेसर ,लेखक,समीक्षक लोकनिकेँ पठबैत रहलिअनि अछि। ओहिमे बहुत कम लोक छथि जे पार्सल पहुँचलापर पहुचनामो देथि,पढ़बाक  तकर बाद अपन प्रतिक्रिया देबाक बात तँ छोड़ू। मुदा किछु गोटे एकर अपवादो छथि, जाहिमे आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीक नाम हमरा दृष्टिमे औअलि अछि। कारण किछु गोटे शुरूमे जरूर उत्साह देखओलनि,मुदा बादमे ओ हिलओलो,डोलओलोपर किछु नहि केलथि। मैथिली पाठक लोकनिक मध्य एहन संवादहीनता निश्चित रूपसँ बहुत दुखद अछि। आखिर पोथी तँ पाठकेक लेल लिखल जाइत अछि। यदि पाठक ओकरा पढ़थि,ओहिपर अपन मंतव्य स्पष्टता आ इमान्दारीसँ राखथि तखन तँ बाते किछु आओर होइत। मुदा से अछि नहि। परिणाम अछि जे किछु लोक जे अंट-संट लिखि दैत छथि आ जिनका किछु लोकक वरदहस्त प्राप्त छनि,सएह चलैत रहैत अछि।एहन परिस्थितिमे साहित्यिक जगतमे खास कए मैथिलीमे इन्द्रकान्त बाबू सन लोकक उपस्थिति बहुत माने रखैत अछि,बहुत आवश्यको अछि।

हमरे नहि अपितु अनेक नव,अज्ञात रचनाकारकेँ उत्साहित करबाक लेल माननीय इन्द्रकान्त बाबू सभ दिन मोन राखल जेताह। हम हुनकर एहि गुणक अनुशंसा,प्रशंसा अपन परिचित दूटा रचनाकार(कवि राज किशोर मिश्रजी आ आदरणीय कामेश्वर चौधरीजीसँ केने रहिअनि। ओहो सभ हुनकर संपर्कमे अएलथि। हुनके सभक सेहो बहुत नीक  अनुभव भेलनि। ई अछि हुनकर उदार आ जीवंत व्यक्तित्वक आभा जकर सानिध्यमे जे केओ गेलथि से निश्चित रूपसँ प्रभावित भेलथि,आनन्द उठओलथि आ लाभान्वित भेलथि।

इन्द्रकान्त बाबू कोरोना कालक समयमे २०२२मे दिल्ली आएल रहथि। ओ हमरा सूचितो केलनि,मुदा हमरा मोनमे कोरोनाक ततेक भय छल जे हुनका लग जेबाक साहस नहि भेल।ओ मास दिन लगीचेमे नोएडामे रहि कए वापस पटना चलि गेलथि ।हमरा बादमे एहि बातक बहुत अफसोच भेल रहए।

“भेंट करबाक चाहैत छल,जे होइतैक,देखल जइतैक।”-मोनमे सोचाए। मुदा जानक डर मामुली नहि होइत अछि, से भुक्तभोगीए कहि सकैत छथि। कोरोना तेहन आतंक पसारने छल जे सालक-साल संपूर्ण विश्वकेँ हिला कए राखि देलक,हमर कोन कथा?

अपन नोएडा-दिल्ली प्रवासक समयमे इन्द्रकान्त बाबू निरंतर संपर्कमे रहलाह। किछुओ नव बात होइतैक तँ अबस्से कहितथि।ओ कहथि जे कोना हुनकर सोसाइटीमे बूढ़सभक मध्य  प्रसिद्ध भए गेल छथि,कोना ओ हुनका लोकनिकेँ अपन कविता पाठसँ प्रभावित केलनि। अनेक तरहक समाचारसभ कहैत रहलथि। हुनकासँ भेंट नहि भेल,मुदा मोनमे ई निर्णय भए गेल जे पटना जाए जतेक जल्दी संभव होएत  हुनकासँ अबस्स भेंट करबनि।

समय बीतैत गेल,मुदा पटना जेबाक कार्यक्रम नहि बनि सकल। आखिर एहि बेरक ग्राम यात्राक बीचमे किछु दिनक लेल पटना जेबाक कार्यक्रम बनओलहुँ।फगुआसँ पहिने ‍१० मार्च २०२५ कए पटना पहुँचलहुँ। ओहिसँ एक दिन पहिने इन्द्रकान्त बाबूक फोन आएल छल। हम अपन संभावित कार्यक्रमक बारेमे कहलिअनि। ओ कहलाह-

“बहुत नीक समाचार देलहुँ। हमहूँ बहुत उत्सुक छी,अपनेसँ भेंट करबाक लेल। मुदा एगारह तारीख कए हम एकटा उपनयनक क्रममे बाबा वैद्यनाथ धाम जाएब आ  बारह तारीख कए लौटब।तकर बाद अबस्स भेंट भए सकत। ओना बारहो तारीख कए साँझक बाद भेंट भए सकत कारण हम ताधरि लौटि गेल रहब। ”

सभ बातक ध्यानमे रखैत हम तेरह तारीख कए हुनकासँ भेंट करबाक कार्यक्रम बनओलहुँ। ताहिसँ पूर्व हुनका फोन केलिअनि। ओ एक-दू बजेक अएबाक आग्रह केलनि।हम दू बजे एकटा आटोसँ हुनकर    डेरापर बिदा भेलहुँ। आटो चालक मुसलमान छलाह,मुदा रहथि बहुत नीक। ओ इन्द्रकान्त बाबूक राजेन्द्र नगर,पटना स्थित घरक लगीच धरि पहुँचा देलनि। मुदा तकर बाद हमसभ एमहर-ओमहर बौआए लगलहुँ।तकर कारण छल जे हमरा हुनकर घरक सही ठेकाना नहि छल। ने हम हुनकासँ से पुछि सकलिअनि। हमरा लग हुनकर डाक पता छलहे आ ओहि पतापर हम कैक बेर किताबसभ पठा चुकल छी। मुदा पार्सल आ मनुक्खमे फरक होइत छैक। आसपासक रोडक जनतब नहि रहबाक कारण हम करीब घंटा भरि बौआइति रहि गेलहुँ। एहि बीचमे हम हुनका अनेक बेर फोन केलिअनि। मुदा ओ फोन उठेबे नहि करथिन। फोनक घंटी बजैत-बजैत बंद भए जाइक। हम हुनकर दोसर मोबाइल नंबरपर फोन केलहुँ,हुनकर दिल्ली स्थित पुत्रक मोबाइलपर फोन केलहुँ। किछु आर गोटेकेँ सेहो फोन केलिअनि। मुदा सभ प्रयास व्यर्थ साबित भेल। हम आब बहुत परेसान भए गेल रही। लगपासमे केओ हुनकर घरक हुलिआ नहि बताबए। भेल जे आब वापस अपन डेरा लौटि जाइ कि एतबेमे हुनकर फोन आबि गेल।हुनकर ध्यान मोबाइल फोनमे हमर अनेक मिसकालपर गेलनि।ओ स्वयं हमर  पहुँचबामे भए रहल विलंबसँ चिंतित छलाह-

“रस्ता भुतला गेलिऐ की?”

“हमसभ लगीचे मे कतहु छी,मुदा अहाँक घर नहि ताकि पाबि रहल छी।”

“हमरा अंदाज लागि गेल। भारतीजी घंटा भरिसँ अहाँक प्रतीक्षा करैत-करैत चलि गेलाह। कोनो बात नहि।अहाँ फोन वाहन चालककेँ दिऔक।”

हम फोन वाहन चलाककेँ दैत छी। ओ रस्ताक सही जनतब हुनकासँ लेलक आ  पाँच मिनटक भीतरे हमरा अपन गंतव्य लग पहुँचा देलक।हम आटोसँ उतरैत छी तँ देखैत छी जे इन्द्रकान्त बाबू स्वयं गंजी-धोती पहिरने सड़कक कातमे हमर स्वागतमे ठाढ़ छथि। हुनकर बेचेनी स्पष्ट देखल जा सकैत छल। हम आटो बलाकेँ किराया दैत छी आ   अपन सामानसभक संगे हुनका पाछू-पाछू बिदा भए जाइत छी।सामनेमे रेलक आवागमन देखल जा सकैत छल।असलमे ओ स्थान राजेन्द्र नगरे रेल टीसनक पछुआर थिक।हम सामान सहित हुनकर भूतल स्थित घरमे हुनके संगे पहुँचैत छी।

भूतलपर स्थित हुनकर निवासपर  पहुँचतहि हमरा पाग,डोपटा पहिरा कए ओ स्वागत करैत छथि। हुनकर पौत्र तकर वीडियो बनबैत छथि,फोटो खिचैत छथि। तकर बाद ओ अपन लिखित पुस्तकसभ दैत छथि। हमहूँ अपन नवीनतम उपन्यास,यज्ञसेनी,हुनका देलिअनि। सभ घटनाक फोटो हुनकर खिचलथि,तकरासभकेँ बादमे   हमरो मोबाइलपर पठा देलथि। कहि नहि सकैत छी ,कतेक अपनत्व भाओसँ ओ हमरा स्वागत केलनि। रसगुल्ला,गुलाब जामुन,पेरा,खजूर खाउ,जतेक खाउ ,टेबुलपर राखल अछि। संगे हुनकर ओहूसँ बेसी मधुर व्यवहारसँ आनन्दक वर्षा भए रहल छल। करीब दू घंटा हम ओतए रहलहुँ। ओही बीच कामेश्वर चौधरीजीक फोन दिल्लीसँ आबि गेलनि। फोनपर भेल हुनकर वार्तालापपसँ सोनामे सुगंध लागि गेल। आब साँझ पड़ि रहल छल। हम हुनकासँ आशीर्वाद लए डेरा वापस बिदा भेलहुँ। ओ फेर हमरा सड़क धरि अरिआति देलनि। हुनकर विनम्रता आ सिनेहसँ हम अभिभूत छलहुँ। रस्ता भरि हुनकर ध्यान अबैत रहल।

फेसबुकपर हम आदरणीय प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ  भेंटक जनतब देलिऐक तँ अनेक विद्वानलोकनिक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देखबामे आएल जाहिमे सँ किछु एहिठाम उद्धृत कए रहल छी-

आदरणीय प्रोफेसर भीमनाथझा-

भाग्यशाली तँ अहाँ छीहे। तकर एक प्रमाण ईहो। 'मिथिलाक रवीन्द्र'सँ सम्मानित हैब सामान्य बात नहि भैलै। ताहूमे एहि रंगदिवसपर...। हम तँ हिनका 'सर्वतंत्रस्वतंत्र' बुझै छियनि, महामहोपाध्यायोसँ पैघ। भविष्यमे हमरो लोकनि द' लोक कहत, जँ कहत तँ यैह जे ईहो सभ 'इन्द्रकान्त युग'क थिका।”

आदरणीय प्रोफेसर रमण झा

“बहुत -सुन्दर! आदरणीय इन्द्रकान्त बाबू स्वयं विद्वान छथि आ विद्वानक सम्मान करए जनैत छथि-

विद्वानेव हि जानाति विद्वज्जन परीश्रमम्।

न हि वन्ध्या विजानाति गर्भिणी प्रसवव्यथाम्।।

दुनू साहित्यकारकेँ बधाइ आ शुभकामना!

आदरणीय विनोदानन्द झा

“आदरणीय इन्द्रकान्तजीक ई विनम्रता सभकेँ भावुक कऽ दैत अछि। बधाइ।

(https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=pfbid027E4AdNnvDK32X15nkHrNZv3fPVudZSGpHMyo2vH38JCymy1pb34U8hwDFJQkLfw6l&id=100007950603547&rdid=JHtSnPJf4yfbcwqP#)

भेंट-घाँटक क्रममे आदरणीय प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ हुनके रचित किछु कवितासभ सुनबाक सुअवसर भेटल। कविताक किछु प्रमुख पाँति छल-

बूढ़ छी

बुढारी मे

उर्जावान छी

आँखि कान ठीक अछि

पढ़ै छी

लिखै छी

कवि सम्मेलनमे गरजै छी

हार्ट हमर अछि बड़ मजगूत

कते बूढाकेँ

हम मरैत देखने छी

हम डरै नहि छी

कन्हा दै छी

प्रसन्न रहै छी

हमरा ने कोनो बिमारी अछि

आइ काल्हि रह रहाँ हाइब्लडप्रेसर

लो बल्डप्रेसर आ डाइबीटीज

लोक सब केँ तंग करैए

मुदा हमरासँ कोसो दूर रहैए

हम खूब प्रेमसँ पनतुआ रसगुल्ला

चाभैत रहैत छी

आनन्दक जीवन बितबै छी।

(हम बूढ़ छी पृष्ठ ६०)

---------------

 

बूढ़ छी

बुढ़ारी जीवन

जीबैक सलुक

हम जानै छी,

धिया-पुताक

सब बात हम मानै छी

बंशी बजबै छी

बाँसक नहि

चैनक बंशी

जखन जे दैए

खाए लै छी

नहि दैए

लोटा भरि पानि

पीब लै छी

ढ़ेकार करै छी

ककरो विरोधमे

किछु नहि बाजै छी

हमर बिरोधमे बाजैए

सुनियो कए अन्ठबै छी

सुखमय जीवन जीबै छी

(हम बूढ़ छी, पृष्ठ ८८)

ऊपरोक्त पाँतिसभमे आदरणीय इन्द्रकान्त झाजीक जीवनमे संतुष्टि भाओ आ वृद्धावस्थोमे जीवंतता बनओने रहबाक गूण स्पष्ट झलकैत अछि। जेहने सरस आ सार्थक कवितासभ ओ लिखैत छथि,वस्तुतः तेहने आनन्दमय जीवन ओ जीबैत छथि। इएह कारण अछि जे हुनकर कवितासभ पढ़ला,सुनलासँ जीवनमे उल्लास, उत्साह बढ़ैत अछि। जीवनक रहस्य बुझबामे,गुणबामे सफल ई कवितासभ सरिपहु अद्भुत अछि। इएह सभ सोचैत हम पटनाक केन्द्र सरकारक होलीडेहोम स्थित अपन डेरा दिस बिदा भए गेलहुँ।रस्ता भरि आ डेरापर पहुँचलाक बादो बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ-  सही मानेमे जतबे महान,ततबे विनम्र ,सरल आ व्यवहार कुशल छथि ओ ।

चौदह मार्चह २०२५क पटनामे फगुआ रहैक। कामेश्वर चौधरीजीसँ फोनपर भेल गप्पसँ फगुआमे पटनाक स्थितिक बारेमे जानकारी भेटि गेल रहए।से सभ देखबोमे आएल।एक दिन पहिने सँ होलीडे होम खाली भए गेल छल। ओहि ठाम मोसकिलसँ  दू-तीन गोटे रहि गेल होएब।ओतेकटा होलीडे होममे हमसभ असगर पड़ल रही। लिफ्ट बंद,कैंटीन बंद,भोरमे तँ पानिओ बंद भए गेल रहए। नीचाँक स्वागत कार्यालयमे कार्यरत दूटा कर्मचारी पीने बुत्त बगलक कोठरीमे बिना गंजी पहिरने पड़ल छलाह।एहनमे ककरा की कहल जाइत?आखिर,एकटा बगलमे रहि रहल परिवारक लोकसभ प्रयास कए पानि चलबओलनि। हमसभ एक दिन पहिने आनलाइन भोजनक सामानसभ मंगा लेने रही। ओएह काज आएल।भोरे चाहक अमल तेज पकड़लक। आब की करी? बाहर निकललहुँ।संयोगसँ होलीडे होमक  बाहर कनीके फटकी एकटा खोपड़ीमे चाह बिका रहल छल। ओतहिसँ चारि कप चाह अनलहुँ।एहि तरहेँ   दुनू गोटे भोरुका चाह पीबि सकलहुँ। अफसोच होअए जे आइ पटनामे किएक रहि गेलहुँ। हमरा तँ बूझल रहए जे फगुआ पन्द्रह मार्च कए हेतैक। मुदा ई पाबनि दू-दिना भए गेल रहैक। जे से।कहुना कए हमसभ ओहीठाम दिन बितओलहुँ।

पन्द्रह मार्च २०२५क हमरा भोरे इन्टरसिटी एक्सप्रेससँ मधुबनी वापस जेबाक छल। चिंता रहए जे भोरे टैक्सी भेटि सकत कि नहि।मुदा संयोगसँ ओलापर तुरंत टैक्सी बुक भए गेल। हमसभ निश्चित समयपर पाटलिपुत्र टीसनपर पहुँचि गेलहुँ। ओतहि चाहो पीलहुँ। सामान प्लेटफार्मपर लए जेबाक लेल कूली नहि भेटि रहल छल। रेलवे इनक्वायरी आफिससँ माइकपर घोषणा करबओलिऐक।से काज आएल। थोड़बे कालमे एकटा कूली ओहिठाम आबि गेल। ओएह हमरासभकेँ प्लेटफार्म नंबर चारिपर लए गेल आ ट्रेन अएलापर ओहिमे बैसाओ देलक। आब जखन ट्रेनमे बैसि गेलहुँ ,तखन चिंता कथीक? समयपर ट्रेन आबि गेलैक आ खुजिओ गेलैक।सभसँ नीक बात ई भेलैक जे हमसभ मधुबनी नियत समयसँ आधा घंटा पहिने पहुँचि गेलहुँ। मधुबनी टीसनपर सामानसभ उतारबामे एकटा युवक सहयात्री मदति केलनि।हमसभ ट्रेनसँ प्लेटफार्मपर उतरि गेलहुँ। ताबतमे ट्रेनक गेटपर एकटा यात्री मोबाइल फोन लेने दौड़ल।

“ई अहाँक मोबाइल फोन अछि की?”

हम अपन मोबाइल तकलहुँ ,ओहो अपन मोबाइल तकलथि।हमरसभक मोबाइलसभ सुरक्षित छल। तखन हम कहनाइ शुरूए केलहुँ-

“नहि,नहि हमरसभक नहि अछि,,,,।”एतबेमे ओ युवक सहयात्री दौड़ल गेट लग पहुँचलाह। ओ घामे-पसीने भीजि रहल छलाह। हुनकर मोबाइल चार्जींगमे लागल छलनि। हमरासभकेँ मदति करबाक लेल ओ बाहर आबि गेल रहथि आ मोबाइल ठामहि छुटि गेल रहनि।ओ मोबाइल फोन देखितहि बाजि उटलाह-

“ई हमर फोन अछि।”

हमसभ आश्वस्त भेलहुँ जे हुनकर फोन बाँचि गेलनि।अखनहु नीक लोक एहि दुनिआमे छथि,से सिद्ध भेल।हमरालोकनिक सहयात्रीक मोबाइल फोन भेटि गेलनि आ ओ परेसानीसँ बाँचि गेलाह,से सोचि बहुत संतोष भेल।आब हमसभ प्रसन्नतापूर्वक  आगू बढ़ि गेलहुँ, अपन मधुबनी डेरा दिस।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

रबीन्द्र नारायण मिश्र

‍१३।०६।२०२५