मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

गुरुवार, 1 मई 2025

प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झा

 

प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झा

पछिला कतेको  सालसँ आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीसँ हमरा संपर्क अछि।हम हुनका अपन कोनो पोथी पठओने रहिअनि। ओ ओहि पोथीकेँ तुरंत पढ़ि हमरा फोन केलनि  आ अपन सकारात्मक प्रतिक्रिया देलनि। तकर बाद तँ हम हुनका अपन किताबसभ नियमित पठबति रहलिअनि।  ओ ओकरा पढ़ि फोनपर अपन प्रतिक्रिया दैत रहलाह।ताहि संगे बड़ी काल धरि गप्प-सप्प,हास्य-व्यंग होइत छल। ओ सदिखन प्रसन्न आ आनन्दपूर्ण अवस्थामे रहैत छलाह। सभसँ प्रभावित करबाक बात तँ ई रहैत छल जे सभ तरहेँ संपन्न आ एतेक वरिष्ठ रहितहु हुनकामे अहंक कनीको  लवलेश नहि रहैत छनि। हुनकर सहज आ सरल व्यवहारसँ के नहि प्रभावित भए जाएत?स्वाभाविक छल जे हुनका प्रतिए हमर आदर बढ़ैत गेल।हुनकर बात-व्यवहार हमरा बहुत आकृष्ट केलक ।हुनकर सकारात्मक रुखि आ उत्साहवर्धनसँ हमरा  सृजनशील रहबाक  प्रेरणो भेटैत रहल। हम जे निरंतर आ नियमित  लिखैत रहलहुँ अछि ताहिमे हुनकर बहुत योगदान छनि। ओ हमर पठाओल  किताबसभ पढ़ैत रहलाह आ पढ़लाक बाद अपन मंतव्य दैत रहलाह जे बहुत लाभकारी सिद्ध  भेल।

हम मैथिलीमे लिखल अपन पोथीसभ हुनके नहि,अपितु अनेक विद्वान,मैथिलीक प्रोफेसर ,लेखक,समीक्षक लोकनिकेँ पठबैत रहलिअनि अछि। ओहिमे बहुत कम लोक छथि जे पार्सल पहुँचलापर पहुचनामो देथि,पढ़बाक  तकर बाद अपन प्रतिक्रिया देबाक बात तँ छोड़ू। मुदा किछु गोटे एकर अपवादो छथि, जाहिमे आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीक नाम हमरा दृष्टिमे औअलि अछि। कारण किछु गोटे शुरूमे जरूर उत्साह देखओलनि,मुदा बादमे ओ हिलओलो,डोलओलोपर किछु नहि केलथि। मैथिली पाठक लोकनिक मध्य एहन संवादहीनता निश्चित रूपसँ बहुत दुखद अछि। आखिर पोथी तँ पाठकेक लेल लिखल जाइत अछि। यदि पाठक ओकरा पढ़थि,ओहिपर अपन मंतव्य स्पष्टता आ इमान्दारीसँ राखथि तखन तँ बाते किछु आओर होइत। मुदा से अछि नहि। परिणाम अछि जे किछु लोक जे अंट-संट लिखि दैत छथि आ जिनका किछु लोकक वरदहस्त प्राप्त छनि,सएह चलैत रहैत अछि।एहन परिस्थितिमे साहित्यिक जगतमे खास कए मैथिलीमे इन्द्रकान्त बाबू सन लोकक उपस्थिति बहुत माने रखैत अछि,बहुत आवश्यको अछि।

हमरे नहि अपितु अनेक नव,अज्ञात रचनाकारकेँ उत्साहित करबाक लेल माननीय इन्द्रकान्त बाबू सभ दिन मोन राखल जेताह। हम हुनकर एहि गुणक अनुशंसा,प्रशंसा अपन परिचित दूटा रचनाकार(कवि राज किशोर मिश्रजी आ आदरणीय कामेश्वर चौधरीजीसँ केने रहिअनि। ओहो सभ हुनकर संपर्कमे अएलथि। हुनके सभक सेहो बहुत नीक  अनुभव भेलनि। ई अछि हुनकर उदार आ जीवंत व्यक्तित्वक आभा जकर सानिध्यमे जे केओ गेलथि से निश्चित रूपसँ प्रभावित भेलथि,आनन्द उठओलथि आ लाभान्वित भेलथि।

इन्द्रकान्त बाबू कोरोना कालक समयमे २०२२मे दिल्ली आएल रहथि। ओ हमरा सूचितो केलनि,मुदा हमरा मोनमे कोरोनाक ततेक भय छल जे हुनका लग जेबाक साहस नहि भेल।ओ मास दिन लगीचेमे नोएडामे रहि कए वापस पटना चलि गेलथि ।हमरा बादमे एहि बातक बहुत अफसोच भेल रहए।

“भेंट करबाक चाहैत छल,जे होइतैक,देखल जइतैक।”-मोनमे सोचाए। मुदा जानक डर मामुली नहि होइत अछि, से भुक्तभोगीए कहि सकैत छथि। कोरोना तेहन आतंक पसारने छल जे सालक-साल संपूर्ण विश्वकेँ हिला कए राखि देलक,हमर कोन कथा?

अपन नोएडा-दिल्ली प्रवासक समयमे इन्द्रकान्त बाबू निरंतर संपर्कमे रहलाह। किछुओ नव बात होइतैक तँ अबस्से कहितथि।ओ कहथि जे कोना हुनकर सोसाइटीमे बूढ़सभक मध्य  प्रसिद्ध भए गेल छथि,कोना ओ हुनका लोकनिकेँ अपन कविता पाठसँ प्रभावित केलनि। अनेक तरहक समाचारसभ कहैत रहलथि। हुनकासँ भेंट नहि भेल,मुदा मोनमे ई निर्णय भए गेल जे पटना जाए जतेक जल्दी संभव होएत  हुनकासँ अबस्स भेंट करबनि।

समय बीतैत गेल,मुदा पटना जेबाक कार्यक्रम नहि बनि सकल। आखिर एहि बेरक ग्राम यात्राक बीचमे किछु दिनक लेल पटना जेबाक कार्यक्रम बनओलहुँ।फगुआसँ पहिने ‍१० मार्च २०२५ कए पटना पहुँचलहुँ। ओहिसँ एक दिन पहिने इन्द्रकान्त बाबूक फोन आएल छल। हम अपन संभावित कार्यक्रमक बारेमे कहलिअनि। ओ कहलाह-

“बहुत नीक समाचार देलहुँ। हमहूँ बहुत उत्सुक छी,अपनेसँ भेंट करबाक लेल। मुदा एगारह तारीख कए हम एकटा उपनयनक क्रममे बाबा वैद्यनाथ धाम जाएब आ  बारह तारीख कए लौटब।तकर बाद अबस्स भेंट भए सकत। ओना बारहो तारीख कए साँझक बाद भेंट भए सकत कारण हम ताधरि लौटि गेल रहब। ”

सभ बातक ध्यानमे रखैत हम तेरह तारीख कए हुनकासँ भेंट करबाक कार्यक्रम बनओलहुँ। ताहिसँ पूर्व हुनका फोन केलिअनि। ओ एक-दू बजेक अएबाक आग्रह केलनि।हम दू बजे एकटा आटोसँ हुनकर    डेरापर बिदा भेलहुँ। आटो चालक मुसलमान छलाह,मुदा रहथि बहुत नीक। ओ इन्द्रकान्त बाबूक राजेन्द्र नगर,पटना स्थित घरक लगीच धरि पहुँचा देलनि। मुदा तकर बाद हमसभ एमहर-ओमहर बौआए लगलहुँ।तकर कारण छल जे हमरा हुनकर घरक सही ठेकाना नहि छल। ने हम हुनकासँ से पुछि सकलिअनि। हमरा लग हुनकर डाक पता छलहे आ ओहि पतापर हम कैक बेर किताबसभ पठा चुकल छी। मुदा पार्सल आ मनुक्खमे फरक होइत छैक। आसपासक रोडक जनतब नहि रहबाक कारण हम करीब घंटा भरि बौआइति रहि गेलहुँ। एहि बीचमे हम हुनका अनेक बेर फोन केलिअनि। मुदा ओ फोन उठेबे नहि करथिन। फोनक घंटी बजैत-बजैत बंद भए जाइक। हम हुनकर दोसर मोबाइल नंबरपर फोन केलहुँ,हुनकर दिल्ली स्थित पुत्रक मोबाइलपर फोन केलहुँ। किछु आर गोटेकेँ सेहो फोन केलिअनि। मुदा सभ प्रयास व्यर्थ साबित भेल। हम आब बहुत परेसान भए गेल रही। लगपासमे केओ हुनकर घरक हुलिआ नहि बताबए। भेल जे आब वापस अपन डेरा लौटि जाइ कि एतबेमे हुनकर फोन आबि गेल।हुनकर ध्यान मोबाइल फोनमे हमर अनेक मिसकालपर गेलनि।ओ स्वयं हमर  पहुँचबामे भए रहल विलंबसँ चिंतित छलाह-

“रस्ता भुतला गेलिऐ की?”

“हमसभ लगीचे मे कतहु छी,मुदा अहाँक घर नहि ताकि पाबि रहल छी।”

“हमरा अंदाज लागि गेल। भारतीजी घंटा भरिसँ अहाँक प्रतीक्षा करैत-करैत चलि गेलाह। कोनो बात नहि।अहाँ फोन वाहन चालककेँ दिऔक।”

हम फोन वाहन चलाककेँ दैत छी। ओ रस्ताक सही जनतब हुनकासँ लेलक आ  पाँच मिनटक भीतरे हमरा अपन गंतव्य लग पहुँचा देलक।हम आटोसँ उतरैत छी तँ देखैत छी जे इन्द्रकान्त बाबू स्वयं गंजी-धोती पहिरने सड़कक कातमे हमर स्वागतमे ठाढ़ छथि। हुनकर बेचेनी स्पष्ट देखल जा सकैत छल। हम आटो बलाकेँ किराया दैत छी आ   अपन सामानसभक संगे हुनका पाछू-पाछू बिदा भए जाइत छी।सामनेमे रेलक आवागमन देखल जा सकैत छल।असलमे ओ स्थान राजेन्द्र नगरे रेल टीसनक पछुआर थिक।हम सामान सहित हुनकर भूतल स्थित घरमे हुनके संगे पहुँचैत छी।

भूतलपर स्थित हुनकर निवासपर  पहुँचतहि हमरा पाग,डोपटा पहिरा कए ओ स्वागत करैत छथि। हुनकर पौत्र तकर वीडियो बनबैत छथि,फोटो खिचैत छथि। तकर बाद ओ अपन लिखित पुस्तकसभ दैत छथि। हमहूँ अपन नवीनतम उपन्यास,यज्ञसेनी,हुनका देलिअनि। सभ घटनाक फोटो हुनकर खिचलथि,तकरासभकेँ बादमे   हमरो मोबाइलपर पठा देलथि। कहि नहि सकैत छी ,कतेक अपनत्व भाओसँ ओ हमरा स्वागत केलनि। रसगुल्ला,गुलाब जामुन,पेरा,खजूर खाउ,जतेक खाउ ,टेबुलपर राखल अछि। संगे हुनकर ओहूसँ बेसी मधुर व्यवहारसँ आनन्दक वर्षा भए रहल छल। करीब दू घंटा हम ओतए रहलहुँ। ओही बीच कामेश्वर चौधरीजीक फोन दिल्लीसँ आबि गेलनि। फोनपर भेल हुनकर वार्तालापपसँ सोनामे सुगंध लागि गेल। आब साँझ पड़ि रहल छल। हम हुनकासँ आशीर्वाद लए डेरा वापस बिदा भेलहुँ। ओ फेर हमरा सड़क धरि अरिआति देलनि। हुनकर विनम्रता आ सिनेहसँ हम अभिभूत छलहुँ। रस्ता भरि हुनकर ध्यान अबैत रहल।

फेसबुकपर हम आदरणीय प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ  भेंटक जनतब देलिऐक तँ अनेक विद्वानलोकनिक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देखबामे आएल जाहिमे सँ किछु एहिठाम उद्धृत कए रहल छी-

आदरणीय प्रोफेसर भीमनाथझा-

भाग्यशाली तँ अहाँ छीहे। तकर एक प्रमाण ईहो। 'मिथिलाक रवीन्द्र'सँ सम्मानित हैब सामान्य बात नहि भैलै। ताहूमे एहि रंगदिवसपर...। हम तँ हिनका 'सर्वतंत्रस्वतंत्र' बुझै छियनि, महामहोपाध्यायोसँ पैघ। भविष्यमे हमरो लोकनि द' लोक कहत, जँ कहत तँ यैह जे ईहो सभ 'इन्द्रकान्त युग'क थिका।”

आदरणीय प्रोफेसर रमण झा

“बहुत -सुन्दर! आदरणीय इन्द्रकान्त बाबू स्वयं विद्वान छथि आ विद्वानक सम्मान करए जनैत छथि-

विद्वानेव हि जानाति विद्वज्जन परीश्रमम्।

न हि वन्ध्या विजानाति गर्भिणी प्रसवव्यथाम्।।

दुनू साहित्यकारकेँ बधाइ आ शुभकामना!

आदरणीय विनोदानन्द झा

“आदरणीय इन्द्रकान्तजीक ई विनम्रता सभकेँ भावुक कऽ दैत अछि। बधाइ।

(https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=pfbid027E4AdNnvDK32X15nkHrNZv3fPVudZSGpHMyo2vH38JCymy1pb34U8hwDFJQkLfw6l&id=100007950603547&rdid=JHtSnPJf4yfbcwqP#)

भेंट-घाँटक क्रममे आदरणीय प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ हुनके रचित किछु कवितासभ सुनबाक सुअवसर भेटल। कविताक किछु प्रमुख पाँति छल-

बूढ़ छी

बुढारी मे

उर्जावान छी

आँखि कान ठीक अछि

पढ़ै छी

लिखै छी

कवि सम्मेलनमे गरजै छी

हार्ट हमर अछि बड़ मजगूत

कते बूढाकेँ

हम मरैत देखने छी

हम डरै नहि छी

कन्हा दै छी

प्रसन्न रहै छी

हमरा ने कोनो बिमारी अछि

आइ काल्हि रह रहाँ हाइब्लडप्रेसर

लो बल्डप्रेसर आ डाइबीटीज

लोक सब केँ तंग करैए

मुदा हमरासँ कोसो दूर रहैए

हम खूब प्रेमसँ पनतुआ रसगुल्ला

चाभैत रहैत छी

आनन्दक जीवन बितबै छी।

(हम बूढ़ छी पृष्ठ ६०)

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बूढ़ छी

बुढ़ारी जीवन

जीबैक सलुक

हम जानै छी,

धिया-पुताक

सब बात हम मानै छी

बंशी बजबै छी

बाँसक नहि

चैनक बंशी

जखन जे दैए

खाए लै छी

नहि दैए

लोटा भरि पानि

पीब लै छी

ढ़ेकार करै छी

ककरो विरोधमे

किछु नहि बाजै छी

हमर बिरोधमे बाजैए

सुनियो कए अन्ठबै छी

सुखमय जीवन जीबै छी

(हम बूढ़ छी, पृष्ठ ८८)

ऊपरोक्त पाँतिसभमे आदरणीय इन्द्रकान्त झाजीक जीवनमे संतुष्टि भाओ आ वृद्धावस्थोमे जीवंतता बनओने रहबाक गूण स्पष्ट झलकैत अछि। जेहने सरस आ सार्थक कवितासभ ओ लिखैत छथि,वस्तुतः तेहने आनन्दमय जीवन ओ जीबैत छथि। इएह कारण अछि जे हुनकर कवितासभ पढ़ला,सुनलासँ जीवनमे उल्लास, उत्साह बढ़ैत अछि। जीवनक रहस्य बुझबामे,गुणबामे सफल ई कवितासभ सरिपहु अद्भुत अछि। इएह सभ सोचैत हम पटनाक केन्द्र सरकारक होलीडेहोम स्थित अपन डेरा दिस बिदा भए गेलहुँ।रस्ता भरि आ डेरापर पहुँचलाक बादो बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ-  सही मानेमे जतबे महान,ततबे विनम्र ,सरल आ व्यवहार कुशल छथि ओ ।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

‍१ -५-२०२५








बुधवार, 23 अप्रैल 2025

‍श्री शिवशंकर श्रीनिवास

 

श्री शिवशंकर श्रीनिवास

१८ जनबरी २०२५क हम दिल्लीसँ मधुबनी पहुँचलहुँ। किछु दिन गामक काजसभमे लागल रहलहुँ। तकर बाद किछु स्थानीय साहित्यकारलोकनिसँ भेंट करबाक  कार्यक्रम बनाबए लगलहुँ। एही क्रममे  हम मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री शिवशंकर श्रीनिवासजी मोन पड़लथि।दूसाल पहिने एक बेर हुनकासँ दिल्ली द्वारका स्थित हुनकर जमाएक डेरापर मे हुनकासँ भेंट भेल छल।ओहि दिन  हुनकर व्यवहारसँ बहुत प्रभावित भेल रही। ओहि दिन हुनकर पत्नी अस्पतालमे भर्ती रहथिन। मुदा हमरासँ भेंट करबाक लेल ओ अस्पतालसँ डेरा आबि गेल रहथि। हुनकर बेटी,जमाएसभ हमर स्वागतमे लागल रहलथि।हम हुनका अपन किछु पोथीसभ देने रहिअनि। ओहिमे हमर उपन्यास,हम आबि रहल छी, सेहो सामिल छल। किछु दिनक बाद ओ एहि उपन्यासकेँ पढ़लनि  आ अपन बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया देलथि।हम एहि बातसँ बहुत उत्साहित भेल रही।

हम श्रीनिवासजीसँ  ह्वात्सअपपर संपर्क केलिअनि।हुनका अपन  कार्यक्रमक बारेमे कहलिअनि। ओ तुरंत अपन गाम अएबाक आग्रह केलनि,अपन पता पठा देलनि। आइ जाएब,काल्हि जाएब करैत-करैत समय बीतैत गेल। एकदिन हुनकासँ फोनपर गप्प भेल तँ ओ २४ मार्च २०२५ कए  पटना होइत दिल्ली जेबाक सूचना देलनि। आब तँ किछुए  दिन बाँचल छल। हम दोसरे दिन हुनका लोहना जेबाक लेल टैक्सीक ओरिआनमे लागि गेलहुँ।मधुबनीमे टैक्सीक व्यवस्था नीक नहि अछि। जे से किराया लैत अछि,ओहूपर सँ कतेक तरहक असुविधाक संभावना बनले रहैत अछि। समयक कोनो पाबंदी नहि,व्यवहारक कोनो मर्यादा नहि,किछु बाजि सकैत छथि।एहिसँ नीक आटो बला सभ अछि जे सुभ्यस्तो होइत अछि आ सामान्यतः विनम्रो। मुदा लोहना जेबाक लेल आटो भेटल नहि।आखिर एकटा टैक्सी बलासँ बात तय भेल।ओकरा अपन गंतव्य आ समय बतओलिऐक। सभ बात बुझलाक बात ओ अपन स्वीकृति देलक।

‍१९ अप्रैल २०२५ कए नियत समयपर टैक्सी आबि गेल। टैक्सी बला ओना ठीक-ठाक लोक बुझेलाह,मुदा हुनका लोहना जेबाक मार्गक स्पष्ट जानकारी  नहि छलनि।हम हुनका श्रीनिवासजीसँ गप्प करा देलिअनि। ओ मधुबनीसँ लोहना जेबाक रस्ताक सही जनतब हुनका देलखिन।मधुबनीसँ रामपट्टी-भगवतीपुर-बिरौल चौक-(दक्षिण दिस मुड़ि जाउ) -रैमा-रुपौली आ तकर बाद लोहना।ओना हम एहि इलाकामे एक बेर बरिआतीक क्रममे गेल रही। मुदा रातिक समय रहैक,कोनो बहुत जानकारी नहि भए सकल छल। एहि बेर बाध-बोन देखैत-सुनैत करीब घंटा भरिमे हम लोहना पहुँचि गेलहुँ। लोहना  पहुँचबासँ पहिने हुनकर फोन कैक बेर आबि गेल छल। जखन हमसभ हुनकर घर लग पहुँचलहुँ तँ ओ अपन दनानसँ सटले रोडेपर हमर प्रतीक्षा कए रहल छलाह।हम टैक्सीसँ उतरलहुँ आ हुनका नमस्कार करैत हुनके संगे हुनकर घरक ओसारापर पहुँचि गेलहुँ।

हमसभ आपसमे गप्प-शप्प कइए रहल छलहुँ कि एकटा शोधार्थी सेहो आबि गेलाह।बीच-बीचमे हुनकर शोधपत्रपर अपन टिप्पणी आ ओहिमे  सुधारक संभावित विषयपर सेहो ओ मार्गदर्शन दैत रहलखिन।हमर भातिज  प्रसिद्ध कवि आदरणीय श्री राज किशोर मिश्रजी आ हुनकर साहित्यिक कृतिक चर्चा सेहो ओ केलनि।प्रसिद्ध कथाकार श्री अशोकक चर्चा सेहो भेल। कहलथि जे ओ गाममे रहितथि तँ अबस्स अबितथि आ सभगोटे संगे बतिबितहुँ। असलमे अशोकजी हुनकर अभिन्न मित्र आ ग्रामीण छथिन। दुनूगोटे एक्के विधा,कथामे लिखैत छथि, संगे समीक्षको छथि।हुनका लोकनिक आपसी सिनेहक चर्चा पहिनहु सुनने छी। बादमे अशोकजी ह्वात्सअपपर हमर एहि यात्राक चर्चा केलनि  प्रसन्नता व्यक्त केलनि।

श्रीनिवासजीक सरलता,विनम्रता आ अपनत्व भाओ ककरो मोहित कए सकैत अछि। ओहिठाम पहुँचितहि लगैत छल जे कोनो अपन आदमीसँ भेंट भए रहल अछि।

बरषहि जलद भूमि नियराए,जथा नबहि  बुध विद्या पाए।

 तुलसी रामायणक उपरोक्त कथन सद्य प्रमाणित भए रहल छल। विश्वास नहि भए रहल छल जे मैथिलीक एहन प्रसिद्ध आ सफल कथाकार, साहित्यक एतेक पैघ विद्वानसँ भेंट भए रहल अछि। अतिसय सहज आ स्वाभाविक मुस्कान हुनकर व्यक्तित्वक आभाकेँ चमत्कृत कए रहल छल। सही मानेमे हुनका संग बिताओल गेल प्रत्येक क्षण आनन्ददायी छल। एहन विलक्षण व्यक्तित्वक लोकसँ भेंट कए हम सरिपहु बहुत आनन्दित भेल छलहुँ।

 लगभग दू घंटा हम हुनका ओहिठाम रहलहुँ।हुनकर श्रीमतीजी ताधरि जलखैकक ओरिआनमे लागल रहलीह।कहि नहि सकैत छी जे कतेक स्वादिष्ट छल ओ भुजल चूरा आ आलूक चप। कैक बेर परसन लए कए हम खाइत रहलहुँ।ओ जलखै नहि,अपितु भोजन भए गेल। रातिमे मधुबनी डेरापर वापस अएलाक बाद किछु भोजन करबाक जरुरति नहि रहि गेल।

आब साँझ पड़ि रहल छल। टैक्सी बलाक संग तय समय सीमाक अधीन वापस हेबाक छल। हम सभ चाह पीलहुँ।श्रीनिवासजीकेँ आ ओतए उपस्थित शोधार्थीकेँ अपन लिखल उपन्यास  देलिअनि।तकर बाद हम ओहिठामसँ बिदा हेबाक लेल हुनकासँ आज्ञा लेलहुँ। फेर ओएह रस्ता,ओएह बाध-बोन। मुदा एहि बेर दुबिधा नहि छल,तेँ सुगम लागि रहल छल। सूर्यास्त भए रहल छल।भगवान सूर्यकेँ मोने-मोन प्रणाम केलहुँ ।मोनमे बहुत संतुष्टिक भाओसँ हम वापस मधुबनी स्थित अपन डेरापर पहुँचि गेलहुँ।हमरा बहुत प्रसन्न देखि श्रीमतीक उत्सुकता बढ़लनि।हुनका सभटा बात कहलिअनि।ओ कहलीह-

“अपन समाजमे  अखनहु एहन लोकसभ छथि,से बहुत गौरवक बात।”

 हम दुनू बेकती बड़ी काल धरि आजुक यात्रापर चर्चा करैत रहि गेलहुँ।



 

रविवार, 9 मार्च 2025

प्राणक भीख मगैत मिमिआइत छागर आ वलिप्रदान

 

प्राणक भीख मगैत मिमिआइत छागर आ वलिप्रदान

हम किछु दिन पूर्व उच्चैठ भगवतीक दर्शनक लेल गेल रही। मधुबनीसँ कारसँ भोरे उच्चैठ हम दुनू बेकती बिदा भेलहुँ। हम तँ कैक बेर उच्चैठ गेल छी। मुदा हमर श्रीमतीजी पहिल बेर ओतए जा रहल छलीह।अस्तु,हुनका बहुत दिनसँ ओतए जेबाक अभिलाषा छलनि जे आइ संभव भए रहल छल। असलमे बहुत दिन बाहर रहि गेलासँ अपना ओहिठामक बहुत रास तीर्थ  महत्वपूर्ण स्थानसभ देखबासँ छुटि गेल अछि जे आब बेरा-बेरी पूरा भए रहल अछि। एहि क्रममे हमसभ आइ उच्चैठ बिदा भेल छी।आब अड़ेर माने हमरसभक गाम आबि रहल अछि। दुबगली नव-नव मकान,नव-नव दोकान खुजि गेल अछि। अड़ेर थानासँ जेना-जेना आगू बढ़ब सड़कक काते-काते अनेक प्रकारक दोकानसभ देखबामे अबैत अछि जे अंततः धकजरीमे जा कए मिलि जाइत अछि।

आब हमसभ भदुली पहुँचि रहल छलहुँ। ओतए  पहुँचितहि पुरान बातसभ मोन पड़ि जाइत अछि।एहि ठाम हमर परिवारक खेत,कलम सभ छलनि। बेर-कुबेर हमहूँ ओहि ठाम जाइत छलहुँ। ओहिठाम भोजो खाइत छलहुँ। आब तँ ने ओ रामा ने ओ खटोला। कनीके आगू बढ़लापर धकजरी आबि जाइत अछि। ओहिठाम बामा कात  धकजरीमे लालबाबूक ड्योढ़ी देखाइत अछि जतए हुनकर पुत्र,नन्हकू बाबू कैक मंजिलक फ्लैटनुमा घर बनओने रहथि। ओहि समयमे हुनकर धाजा फहराइत छल। लालबाबू स्कूटरपर चलैत छलाह।कैक बेर ओ अड़ेर चौकपर ठाढ़ होइतथि।स्कूटरमे सिकार कएल बगेरीसभ रखने रहितथि। अड़ेर चौकपर पान खइतथि ,गप्पसप्प करितथि। हुनका देखि कए हमरा सन-सन कैकटा बच्चासभ सेहो जमा भए जाइत छल।बादमे जखन नन्हकू बाबूक समय अएलनि तखन ओहो बरोबरि देखैतथि। देखबामे अपूर्व सुंदर।माथपर लालठोप केने।हुनकर बड़ीटा परिवार छलनि। ओहि समयमे साम्यवादी किसान आन्दोलनमे ओ सभ बहुत दिक्कतिमे पड़ि गेल रहथि। हुनकर बहुत रास जमीनसभपर झंझटि होइत रहैत छलनि। ई सभ बात हमसभ गाममे सुनियैक।

धकजरीक बाद बेनीपट्टी आएल। बेनीपट्टी बहुत पहिने हमरा सभक थाना छल। बादमे हमरे गाममे थाना बनि गेल।बेनीपट्टीमे जमीन रजिष्ट्रीक पुरान कार्यालय अछि।कैक बेर हमहूँ बाबूक संगे ओतए गेल छी,मधुर खेने छी। ओतए बहुत रास दोकानसभ देखबामे आएल। कार आगू बढ़ैत गेल आ थोड़बे कालमे हमसभ उच्चैठ पहुँचि गेलहुँ।

उच्चैठमे शुरूएमे गेटे लग एक गोटे फूल,प्रसाद बेचि रहल छलाह।पुछलिअनि-

“कतेक दाम छैक?”

“छोटका बीस,बड़का साठि।”

“साठि बला दए दिऔक।”

ओ तर दए फुलडालीमे सभ किछु सड़िआबए लगलाह, ओहीक्रममे बजलाह-

“एक सए बला आर नीक छैक।”-से कहि फुलडाली पकड़ा देलनि।हम किछु बजितहु,बुझितहुँ ताहिसँ पहिने ओ अपन काज कए चुकल रहथि।साठि टकाक बदला दाम आब एक सए भए गेल छल। भोरुका पहर छलैक,भगवतीक पूजा करबाक रहए।तेहनमे मोनमे विक्षोभ उत्पन्न नहि बढ़बैत  हुनका एक सए दए आगू बढ़ि गेलहुँ। तकर बाद तँ एहन फूल-प्रसाद बेचनिहारक भीड़ लागल छल। हम पछताइ जे अनेरे शुरूएमे ई सभ कीनि लेलहुँ। मंदिर लग पहुँचैत-पहुँचैत एकटा पंडितजी भेटलाह-

“दर्शन करबैक?”

“हँ,हँ।”

“हमरा संगे चलू।हम सभटा नीकसँ करा देब।”

“टका कतेक लेबैक।”

“चलू ने। जे अपनेक श्रद्धा।जे मोन होअए से दए देबैक।”

हमसभ उच्चैठ भगवतीक मंदिरक बगले पोखरिमे जा कए पैर धोलहुँ।पोखरिक पानि तेहन छल जेकुरुर करबाक तँ प्रश्ने नहि छल? हमर श्रीमतीजी संगे रहथि। हुनका कालीदाससँ जुड़ल स्मृतिशेष देखबाक बहुत जिज्ञासा छहनि।

ओ एहि विषयक अनेक प्रश्न पुछि रहल छलीह-

“ओ स्थान कतए छैक?”

“ओ पुस्तकालय कहाँ छैक?”

“धार देखबाक मोन करैत अछि।”

हमसभ मंदिर अबैत काल लोकसभकेँ एहि विषयक जनतब देबाक आग्रह करैत रहलिऐक। मुदा ककरोसँ स्पष्ट जानकारी नहि भेटए। सोचलहुँ जे पहिने दर्शन कए ली। तकर बाद देखल जेतैक।भगवतीक दर्शन केलाक बाद पंडितजीकेँ दक्षिणा देबाक समय छल। हम एक सए टाका जेबीसँ निकालि रहल छलहुँ कि ओ बजलाह-

“एक सए टाका तँ अदना-पदना दैत छैक। अपने तँ,,।”

“हमरा अदने बुझू।”-से कहि हुनका एकसए टाका दए हमसभ मंदिरसँ आगू बढ़ि गेलहुँ।पंडितोजी कोनो आन ग्राहकक फिराकमे चलि गेलाह।कम सँ कम पुरीक मंदिरमे महिला पुजारी जकाँ गारि पढ़ैत नहि देखेलाह। भगवती मंदिरक बाहर छोट-छोट छागरसभ मेमीआइत छल। ओकरासभकेँ स्नान करा कए वलिप्रदानक लेल आनल गेल छल। एहन क्रूड़ता माता कोना बरदास करैत छथि?ओ सभ मिमिआइत रहल।संभवतः कहि रहल छल-

“हे माते! हमर रक्षा करू। ई राक्षससभ हमर हत्या कए देत।”

“कतेक अफसोचक बात अछि जे जाहि जगदंबाक हमसभ अपन आ शृष्टिक कल्याणक लेल प्रार्थना करैत रहैत छी,तिनके प्रसन्न करबाक लेल हुनके एकटा संतानक वलिप्रदान करैत छी। ई कुप्रथा तुरंत बंद हेबाक चाही।विद्वान लोकनिकेँ एकर विरुद्ध अबाज उठेबाक चाही।”

हम इएहसभ सोचैत रहि गेलहुँ। कहि नहि केओ एहिपर ध्यान दए सकताह की नहि?भगवतीक दर्शनक बाद हमसभ बाहर भेलहुँ ।भूख लागि गेल रहए। बगलेमे कैकटा जलखैक दोकानसभ देखाएल। बहुत कम दाममे गरम-गरम जलखै केलहुँ।

 हमसभ आब कालीदासक स्मृतिशेष तकबामे लागि गेल रही।मुदा ओहिठाम उपस्थित केओ व्यक्ति स्पष्ट नहि कहि पाबथि। मिथिलाक एहन प्रसिद्ध तीर्थ जे कालीदास सन विद्वानसँ सेहो जुड़ल होअए ततए कोनो गाइड,किंवा सुयोग्य व्यक्तिक अभाव बुझाएल। अंततोगत्वा हम अपन भातिज,चंदनकेँ फोन केलिअनि। ओ वाहनचालककेँ आवश्यक जनतब देलखिन।तकर बादे हमसभ कालीदास स्मारक कालेजसँ सटले ओहि धारकेँ देखलहुँ ।कहाँ दनि कालीदास ओही धारकेँ हेलि कए भगवतीकेँ करिखा लगबैत रहथि कि ओ हुनका रोकलखिन आ अपेक्षित वरदानो देलखिन।तकर बाद कालीदास रातिभरिमे पुस्तकालयमे राखलसभटा किताब उन्टा गेलाह आ से सभ हुनका कंठस्थ होइत गेलनि। कालीदास संगे भेल ई घटना हम बच्चेसँ सुनैत आबि रहल छी। मुदा एकर प्रमाणिकतापर तँ शोधकर्ते किछु कहि सकैत छथि। जे से।एतेक महत्वपूर्ण पर्यटनस्थलमे जे प्रसिद्ध तीर्थो अछि,उचित सुविधाक अखनहु बहुत अभाव अछि।

सामनेमे कालीदास स्मारक महाविद्यालय,उच्चैठक भवन देखाएल। हम एतए अबितहि थोड़े काल मौन भए गेलहुँ। एही कालेजमे हमर पितिऔत आ अभिन्न मित्र लालबच्चा(डाक्टर विष्णुकान्त मिश्र)  रसायन शास्त्रक विभागाध्यक्ष छलाह। सेवामे रहितहि हुनकर मृत्यु भए गेलनि। बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ। एक-दूटा फोटो खिचलहुँ।फेर कारपर बैसलहुँ  गाम वापस बिदा भए गेलहुँ।

क्रमशः

रबीन्द्र नारायण मिश्र

९।३।२०२५